बाल दिवस की सार्थकता तभी होगी जब बच्चों पर दबाव नहीं डालें

By हेमा पंत | Nov 14, 2018

किसी ने सही कहा था बचपन एक बार गुजर गया तो लौटकर कभी वापस कभी नहीं आता है। बचपन का हर पल सुहावना था, क्योंकि आखिरकार वो बचपन था। आज 14 नवंबर का दिन बच्चों के लिए समर्पित है। यह दिन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की याद में मनाया जाता हैं क्योंकि वह बच्चों से बेहद प्यार करते थे। उनका मानना था कि बच्चे ही देश का उज्ज्वल भविष्य हैं। नेहरू जी का बच्चों के  प्रति इतना प्रेम होने के कारण ही बच्चे उन्हें प्यार से चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे। उनका मानना था कि बच्चे गुलाब के समान बेहद ही कोमल होते हैं। लेकिन आज के दौर में वही गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरती और मुरझाती जा रही हैं।

 

दिन पर दिन बच्चों का बचपन उनसे छीना जा रहा है। अपनी पीठ पर बढ़ते बोझ के कारण वह किसी गुमनाम जिंदगी में बस जीये जा रहे हैं। जहां उन्हें शुरुआत से ही किताबों के बोझ तले दबा दिया जाता है।  इस बोझ का सफर कुछ खास नहीं होता बस तय करना पड़ता है। यही कारण है कि उनका बचपन कहीं खो सा गया है। कहना गलत नहीं होगा कि आज का दौर पूरी तरह से आधुनिक हो गया है। इसी श्रेणी में इस आधुनिकीकरण ने सबसे ज्यादा बच्चों के बचपन को प्रभावित किया है। प्रभावित कुछ इस कदर कि आजकल बच्चे अपना पूरा दिन स्मार्ट फोन पर गुजार देते हैं। जिस उम्र में उनके हाथ में अच्छी-अच्छी किताबें, बल्ला गेंद होना चाहिए उस उम्र में वह अपना पूरा समय स्मार्ट फोन, टीवी, वीडियो गेम नामक उपकरण पर बिता देते हैं। यह क्या होता जा रहा हैं आजकल के बच्चों को ? लेकिन इसके पीछे हम सिर्फ बच्चों को दोषी नहीं ठहरा सकते। जी हां इन सब का कारण कहीं न कहीं बच्चों के माता-पिता भी हैं, जो सिर्फ उनकी हाई क्लास पढ़ाई पर ही ज्यादा ध्यान देते हैं। इसके अलावा उन्हें बाहर खेलने की बजाय उनके हाथो में स्मार्ट फोन थमा देना ही उनके खुशनुमा और यादगार बचपन को कहीं गायब करता जा रहा है।

 

इसके अलावा एक तरफ वो बचपन भी है जो अपने गुजारे के लिए अपने हाथों में किताब की बजाय सामान बेचकर अपना बचपन गुजार रहा है। साथ ही में भारत में करीब 1.20 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी के कारण अपना बचपन खोते जा रहे हैं। लेकिन अगर आज चाचा नेहरू जिंदा होते तो वह भारत के किसी भी गुलाब के फूल को इस तरह मुरझाने नहीं देते। हम सबको 14 नंवबर के दिन यह प्रण लेना होगा कि हमें बच्चों को उनका असली बचपन लौटाना होगा, जहां वह खूब पढ़े-लिखें, खूब खेलें और मस्ती करें। तभी यह दिन असली मायने में बाल दिवस कहलाएगा।

 

- हेमा पंत

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