By प्रज्ञा पांडेय | Oct 18, 2025
दीवाली से पहले छोटी दीवाली आती है, इसे नरक चतुर्दशी और रूप चौदस भी कहा जाता है। साथ ही कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। नरक चतुर्दशी पर सुबह के मुहूर्त में अभ्यंग स्नान करने का विधान है, इस दिन स्नान व दीपदान से पाप मिटते हैं और सौभाग्य बढ़ता है तो आइए हम आपको नरक चतुर्दशी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
दीवाली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को हिंदू धर्म में बहुत पवित्र और शुभ तिथि माना गया है। इसे रूप चौदस या छोटी दीवाली भी कहा जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था और उसके बंधन में फंसी 16 हजार महिलाओं को मुक्त कराया था। इस साल नरक चतुर्दशी 19 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इसी कारण यह दिन अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 1 बजकर 51 मिनट से शुरू होगी और 20 अक्टूबर 2025 को दोपहर 3 बजकर 44 मिनट तक रहेगी। इस आधार पर नरक चतुर्दशी का पर्व 19 अक्टूबर (रविवार) को मनाया जाएगा, जबकि अभ्यंग स्नान का शुभ मुहूर्त 20 अक्टूबर (सोमवार) की सुबह रहेगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नरक चतुर्दशी पर स्नान करने से सभी पाप मिट जाते हैं और शरीर व मन शुद्ध होते हैं। इस दिन यमराज के लिए दीपदान करना बहुत शुभ माना जाता है। शाम के समय 14 दीए जलाने की परंपरा है। इनमें से एक सरसों के तेल का दीपक यमराज के नाम से जलाया जाता है, जबकि बाकी 13 दीपक घी के होते हैं। इससे अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। नरक चतुर्दशी पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति आती है। यह दिन न केवल शारीरिक शुद्धि का प्रतीक है बल्कि आध्यात्मिक जागरण का भी अवसर देता है।
नरक चतुर्दशी को पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बना हुआ है। सर्वार्थ सिद्धि योग में किए गए कार्य सफल होते हैं और यह एक शुभ योग है। नरक चतुर्दशी पर अमृत सिद्धि योग शाम को 5 बजकर 49 मिनट से अगले दिन 20 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 25 मिनट तक है। उस दिन इंद्र योग भी प्रात:काल से लेकर देर रात 02:05 ए एम तक है। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र प्रात:काल से लेकर शाम 05 बजकर 49 मिनट तक है, उसके बाद से हस्त नक्षत्र है।
पंडितों के अनुसार नरक चतुर्दशी की रात मिट्टी का चौमुखी दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना गया है। इसमें सरसों का तेल डालकर चार दिशाओं की ओर चार बत्तियां लगाई जाती हैं। इस दीपक को ‘यम दीप’ कहा जाता है, जो मृत्यु के देवता यमराज को समर्पित होता है। इसे घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा की ओर रखकर जलाया जाता है।
“मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह, या त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति॥”
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घर के सबसे वरिष्ठ सदस्य को यह दीपक जलाना चाहिए और जलाने के बाद दीपक को पलटकर नहीं देखना चाहिए। उस उपाय से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और घर में सुख-शांति का वातावरण बना रहता है।
नरक चतुर्दशी को काली चौदस भी कहा जाता है। इस दिन मां काली की पूजा करने से व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा, भय और संकटों से मुक्ति मिलती है। पूजा के समय लाल गुड़हल के फूल अर्पित करें और “ॐ क्रीं कालिकायै नमः” मंत्र का जप करें। यह साधना शत्रु नाश और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्ति का माध्यम मानी जाती है।
1. दीपक- एक मिट्टी का चौमुखी दीपक लें। इसमें सरसों का तेल भरें और चार अलग-अलग दिशाओं की ओर मुख करके चार बत्तियां लगाएं।
2. सही समय पर जलाएं दीपक - यह दीपक शाम या रात के समय जलाया जाता है, जब घर के सभी सदस्य भोजन करके सोने की तैयारी कर रहे हों।
3.दीपदान की दिशा का भी है महत्व- दीपक को घर के बाहर मुख्य द्वार के पास दक्षिण दिशा की ओर मुख करके रखें। दक्षिण दिशा यमराज की मानी जाती है।
4.करें ये काम, मिलेगा लाभ- यह 'यम दीपक' घर का सबसे बड़ा सदस्य ही जलाता है। दीपक को रखने के बाद उसे पलटकर नहीं देखना चाहिए और घर के अंदर के सदस्यों को बाहर आकर उसे देखना नहीं चाहिए।
भगवान राम के प्रिय भक्त हनुमान जी को तो हर कोई जानता है। जब हनुमान सिर्फ एक शिशु थे, तो उन्होंने सूर्य को देखा और इसे एक अद्भुत फल समझकर इसे निगल लिया, जिससे पूरी दुनिया घोर अंधकार में डूब गई। काली चौदस के दिन सभी देवी-देवताओं ने हनुमान से सूर्य को मुक्त करने के लिए विनती की, लेकिन हनुमान नहीं माने, इसलिए भगवान इंद्र ने अपने वज्र से उन पर प्रहार किया, जो हनुमान के मुंह पर लगा और सूर्य निकल आया और फिर वहां दुनिया में फिर से प्रकाश था।
एक अन्य कथा के अनुसार राजा बलि सबसे उदार राजाओं में से एक थे और उन्होंने इसके लिए बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की, लेकिन प्रसिद्धि उनके सिर चढ़ गई और वह बहुत अहंकारी हो गए। उसने अपने पास भिक्षा के लिए आने वाले लोगों का अपमान और अपमान करना शुरू कर दिया, इसलिए भगवान विष्णु ने उसे सबक सिखाने का फैसला किया और वामन अवतार में एक बौने के रूप में आए। जब बलि ने उससे कहा कि वह जो चाहे मांग ले तो भगवान वामन ने उसके तीन पग के बराबर भूमि मांगी। यहोवा ने पहले पग से सारी पृथ्वी को, और दूसरे पग से सारे आकाश को नाप लिया। फिर उसने बाली से पूछा कि वह अपना तीसरा कदम कहां रखे। एक विनम्र बाली ने झुककर भगवान से अपना अंतिम कदम उसके सिर पर रखने का अनुरोध किया, जिससे उसे मोक्ष प्राप्त हुआ। इसलिए इस दिन लालच को भगाने के लिए काली चौदस मनाई जाती है।
पंडितों के अनुसार पांच दिनों तक चलने वाला दीवाली उत्सव धनत्रयोदशी के दिन शुरू होता है और भाई दूज पर समाप्त होता है। दीवाली के दौरान तीन दिन यानी चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा के दिनों में अभ्यंग स्नान का सुझाव दिया गया है। नरक चतुर्दशी पर अभ्यंग स्नान सबसे महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि जो लोग इस दिन अभ्यंग स्नान करते हैं वे नरक जाने से बच सकते हैं। अभ्यंग स्नान के समय उबटन के लिए तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
1. काली चौदस की विधि के अनुसार घी और शक्कर के साथ तिल, लड्डू और चावल का प्रसाद चढ़ाएं।
2. पूरे दिन और विशेष रूप से मुहूर्त के दौरान देवी काली को समर्पित भक्ति गीत गाएं।
3. काली चौदस के दिन नहाते समय सिर धोएं और आंखों में काजल लगाएं, इससे नकारात्मक ऊर्जा और बुरी आत्माएं दूर होती हैं।
1. लाल कपड़े से ढके बर्तन, चौराहे पर रखे कुछ फल या काली गुड़िया पर कदम रखने या पार करने से सख्ती से बचें।
पंडितों के अनुसार नरक चतुर्दशी पर काली पूजा से पुरानी बीमारियां, लाइलाज बीमारियां, काले जादू के बुरे प्रभाव, वित्तीय ऋण, नौकरी या व्यापार में रुकावटें, शनि और राहु के दुष्प्रभाव और अनजान लोगों से अपमान जैसी समस्याओं से मिलता है छुटकारा।
- प्रज्ञा पाण्डेय