जरूरतमंदों को मदद ही है ईद की असल खुशी

By मोहम्मद शहजाद | May 14, 2021

रोज़ेदारों को माहे-रमजान में की गई नेकियों और इबदतों का सिला ईद की खुशियों के तौर पर नसीब होता है। अलबत्ता कोरोना की महामारी ने मीठी ईद के नाम से जानी जाने वाली ईद-उल-फितर की रौनकों को फीका कर दिया है। यही स्थिति पिछली ईद पर थी। तब भारत में देशव्यापी लॉकडाउन था। इस बार भी ईद ऐसे दौर में पड़ी है जब कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर है। इसके सबब कहीं पूर्ण तो कहीं आंशिक तौर पर लॉकडाउन लगा हुआ है। ऐसे में काबिलेगौर बात यह है कि मुसलमानों को ऐसी ईद में को किस तरह मनाना चाहिए और उन्हें क्या करना चाहिए?


हम सब जानते हैं कि पूरे साल में रमजान महीने का मुसलमानों के लिए क्या महत्व है। इस पूरे महीने मुसलमान अपने रब की खुशी के लिए भूखा-प्यासा रहता है और ऐसा करके वह गरीबों की लाचारी का एहसास करता है। इसमें उनकी इबादतें और अधिक से अधिक पुण्य कमाने की इच्छा भी बढ़ जाती है। लोग इबादत के लिए दिन-रात मस्जिदों में रहते हैं। यही वजह है कि रमजान-उल-मुबारक में मस्जिदें हर वक्त आबाद रहती हैं। इफ्तार और सेहरी में लोग खाने-पीने का विशेष बंदोस्त करते हैं। इफ्तार पार्टी और सामूहिक दावतों का भी खूब इंतेजाम होता है। लोग इस महीने दिल खोल कर पैसे खर्च करते हैं और गरीबों एवं जरूरतमंदों की खूब मदद करते हैं। इसके सबब इस महीने को नेकियों की वसंत ऋतु कहा जाता है। हालांकि पिछली बार की तरह इस बार भी माहे रमजान एक ऐसे समय में पड़ा जब कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे भारत में अपना कहर ढा रखा है। इसके सबब मुसलमानों को काफी हद तक मस्जिदों में इबादत करने से दूर रहना पड़ा। रमजान में होने वाली विशेष नमाज तरावीह (पूरे कुरान का पाठ) से भी इस बार वह महरूम रहे। शारीरिक दूरी की वजह से उन्हें इफ्तार पार्टियों और सामूहिक दावतों से भी दूरी बनानी पड़ी।

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मुसलमानों ने जिस तरह पूरे रमजान में सब्र और संयम से काम लिया, उसे अपना यही रवैया ईद के मौके पर भी बनाए रखना है। इसमें कोई शक नहीं कि ईद मुसलमानों का सबसे बड़ा त्यौहार है। यह खुशी उसे रमजान के पूरे महीने रोजे रखने और नेकियों के बदले अल्लाह की तरफ से इनाम के तौर मिलती है। यही वजह है कि मुसलमान दिल खोल कर ईद का जश्न भी मनाता है। नए-नए कपड़ों की खरीदारी करता है। ईद के दिन बनने वाले तरह-तरह के पकवानों की तैयारियों में कई दिन पहले से लग जाता है। क्या बच्चे और क्या बड़े, सभी इसकी तैयारी जोर-शोर से करते हैं। यही वजह है कि ईद से चंद दिन पहले तक बाजारों में खूब चहल-पहल रहती है। लोग जमकर खरीदारी करते हैं। 


अलबत्ता दो बार से ईद कोरोना संकट की ऐसी घड़ी में पड़ रही है जब हर तरफ आर्थिक और कारोबारी गतिविधियां थमी हुई रहीं। इसकी वजह से गरीब और मजबूरों के साथ-साथ दिहाड़ी मजदूर भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। सरकारी स्तर पर उनको सहायता मिल भी रही है तो वह नाकाफी है। देश के शहरों से प्रवासी मजदूरों का पलायन जारी है। ऐसी नाजुक परिस्थितियों को नजरअंदाज करके अगर हम ईद की खुशियों में लग जाएं तो यह हमें शोभा नहीं देगा। हम स्वयं नए कपड़ें पहनें और लोगों को असहाय छोड़ दें? क्या इससे हमारा रब हमसे राजी हो जाएगा? ऐसा करने से जाहिर है हमारी रमजान के पूरे महीने की कमाई हुई नेकियां बेकार हो सकती हैं। 


पैगम्बर मोहम्मद ने फरमाया कि जिसने किसी की ऐसी जायज जरूरत को पूरा किया जिससे वह खुश हो जाए तो उसने मुझे खुश किया और जिसने मुझे खुश किया तो उसने अपने रब को खुश किया। उक्त हदीस की रौशनी में अगर देखा जाए तो कोरोना संकटकाल ने हमें खुदा को राजी करने का बेहतरीन अवसर प्रदान किया है। इस समय जरूरमंदों को तलाश भी नहीं करना पड़ेगा। आपके आसपास ही बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे जिन्हें वाकई सहायता की आवश्यकता है। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें कोरोना वायरस की वजह से जारी लंबे लॉकडाउन ने बेरोजगार कर दिया है। विशेषकर दिनभर मेहनत-मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालने वालों के पास तो कुछ नहीं बचा है। उनमें ऐसे लोग भी जिनकी गैरत उन्हें किसी के सामने हाथ फैलाने से रोक रही है। वह हमारी मदद से असल हकदार हैं। ईद के दिन अदा की जाने वाली फितरे की रकम के लिए भी इस बार हकदारों को तलाश करने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। इससे अल्लाह राजी भी होगा और समाज में आपसी भाईचारे की मिसाल भी कायम होगी। 


मुसलमान को इस ईद पर नए कपड़े खरीदने और बनवाने से परहेज करना चाहिए। उसकी जगह वह घर में पहले से मौजूद सबसे अच्छे कपड़े को पहन कर इस बार सादगी से ईद मनाएं। कोरोना प्रोटोकॉल की वजह से ईदगाह और मस्जिदों में ईद की नमाजें भी नहीं होंगी। लॉकडाउन के सबब ईद के मौके पर मुसलमानों को इस बार ज्यादा एक दूसरे के घर जाने और दावतें देने-लेने से भी परहेज करना चाहिए। कपड़ों और ईद की खरीदारी से परहेज करने से जो रकम बचे उसे मजबूर, लाचार और भूखे लोगों की मदद करने में खर्च करेंगे तो यह ईद सबसे अच्छी और अल्लाह की पसंदीदा होगी।


- मोहम्मद शहजाद

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