परिणाम की बातें और बेक़रार रातें (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Dec 07, 2018

नए साल के स्वागत में बढ़ती ठंड के साथ नेताओं के शरीर में इंतज़ार की छटपटाहट धीरे धीरे घुसने लगी है। उनका जी पूरी तरह से मितलाने में अभी समय लगेगा। जहां जहां वोटिंग होती जाएगी चुनाव परिणाम के दिन तक रातें लम्बी और बेक़रार रहेंगी। बच्चों के प्लस टू के इम्तिहान व जो भी हो परिणाम के बीच अभिभावकों की उत्सुकता से भी एक हज़ार गुणा बेकरारी का समां होगा। ख़बरें तो यही बताती हैं कि वोटिंग के बाद जनाब धूप में आराम फरमा रहे हैं, गन्ने चूस रहे हैं, किन्नू काट कर सबको खिला रहे हैं। मगर, मगर, मगर उनके दिल नहीं दिमाग से भी पूछ लें तो वस्तुतः उनके लिए आराम हराम हो चुका है।

 

इन दिनों नेताओं को कुछ भी कतई नहीं भाता। उनका दिन तो सच्चे झूठे समर्थकों के साथ जैसे तैसे कट जाता है मगर रात में कितने ही रंग, किस्म व विविध व्याख्याओं वाले ख्वाब सताते हैं। वो गाना है न, दिन तो गुज़र जाएगा न जाने क्या होगा जब रात होगी। फिर वही तड़पाता दिल और दिन और अगली कयामत रात और उसमें फिर नए अर्थों, बुरे अर्थों वाले सफ़ेद, भूरे, सलेटी, काले स्वप्न। ख्वाब में कभी कुर्सी रंग बिरंगे फूलों वाली दिखती है, कभी खूनी लाल या तीखे काले बिलकुल असली कांटों वाली। कभी नदी में आम तो कभी खाई में नींबू दिखते हैं। जिन महा अनुभवियों को यह ज्ञान प्राप्त है कि जीत कर अपने ‘सपने’ पूरे करने हैं व हमेशा परेशान, निगोड़ी आम जनता के सपने पूरे करने के झूठे वायदे भूलने हैं, उन सबको भी अच्छे सपने तो नहीं आते होंगे। जनता का क्या भरोसा, जो मर्ज़ी उपहार दे दो। वादाखिलाफी भी तो नेताओं ने ही पिलाई है जनता को।

 

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परिणाम का गधा, खच्चर या घोड़ा किस सड़क पर खड़ा होगा इस बारे में सबके अपने अपने कयास हैं। मकान की छत पर धूप में बैठकर नेताजी आजकल सोच रहे हैं कि यदि वे जीत गए और उनकी पार्टी की सरकार बनी तो वारे न्यारे होने तय हैं। उनके दिमाग में स्पष्ट चल रहा है कि कहां बढ़िया कोठी बनानी है, उसमें पत्थर कहाँ से लाकर लगवाना है। नक्शा कौन से बढ़िया आर्किटेक्ट से बनवाना है। कहां बेटे के नाम से मिनरल वाटर फैक्ट्री लगानी है। लगे हाथ पत्नी की सरकारी जॉब का जुगाड़ भी करना है जिसने जैसे कैसे कर टीचर बनने की सारी योग्यताएँ हासिल की हैं। कौन कौन सा गलत अफसर चकवाना है और कौन कौन से अपने बंदे फिट करवाने हैं। पार्टी के भीतर और बाहर किसे सैट करना है। अगर पार्टी को कम सीटें मिलीं और विपक्ष में बैठना ही पड़ा तो काम करवाने के लिए अपने संपर्क पुख़्ता रखने होंगे। वे जानते हैं कि दुर्भाग्य वश यदि वे हार गए तो अपने क्षेत्र के मतदाताओं का, मुंह से धन्यवाद करने तो जाना ही पड़ेगा। उन्हें जी भर कर गालियां भी देनी होंगी। क्योंकि आम जनता होती ही इस लायक है। नेताजी को पूर्ण आत्मविश्वास है कि वे अच्छे तिकड़मबाज़, अवसरवादी, डिप्लोमेट कुल मिलाकर अच्छे अभिनेता हैं और किसी भी राजनीतिक स्थिति से निबटने में पूरी तरह सक्षम हैं।

 

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कल शाम ही उनकी पत्नी मेरी पत्नी का, उनके चुनाव प्रचार में साथ जाने के लिए धन्यवाद करने आई तो कहने लगी लोग नाहक राजनेताओं को बदनाम करते हैं। क्या बताऊँ आजकल तो इनकी नींद उड़ गई है, बेचारे इतने परेशान, कमज़ोर हो गए हैं। कल इन्हें डॉक्टर के पास लेकर जाती हूं। इन्हें विविध प्रकार का स्वादिष्ट खाना बहुत पसंद है लेकिन आजकल इनकी भूख जैसे खत्म हो गई है। मेरी पत्नी ने अच्छे अनुभवी ज्योतिषी की मानिंद घोषणा की, भाभीजी आप चिंता न करें सब ठीक हो जाएगा। नेताजी की समझदार पत्नी को भी तो पता है कि भारतीय राजनीति के परिणामों का समझदार नेताओं पर ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता। वोटिंग की शाम से परिणाम की सुबह तक बेकरारी तो रहती ही है, आखिर पाँच साल का सवाल है और करोड़ों का जवाब।

 

-संतोष उत्सुक

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