By संतोष उत्सुक | Jun 07, 2025
हम उत्सव धर्मी लोग हैं पूरी प्रतिबद्धता से अपना उत्सव प्रेम दिखाते हैं। सरकारें भी प्रेम उत्सवों में राजनीति के साथ शामिल होती हैं। अभी एक दिन पहले ही पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में हमने पर्यावरण पर खूब प्यार लुटाया। एक सरकार ने लाखों स्कूली बच्चों को पानी पीने के लिए स्टील की बोतलें देने की घोषणा की। सिंगल यूज़ प्लास्टिक बैन कर रखा है लेकिन सचमुच प्रयोग हो रहा है। अभी तक तो समझ नहीं आया कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक में क्या क्या शामिल है।
हम आयोजन प्रेमी भी हैं। आयोजन के बैनर विनायल के बनाए जाते हैं, जो पीवीसी से बनता है। इसे ‘पाली विनायल क्लोराइड’ कहते हैं। ज़्यादा समझना चाहें तो पिघला हुआ प्लास्टिक इसमें शामिल होता है। यह कठोर मौसम में भी टिकाऊ होता है। कपड़े से सस्ता होता है। इसका रखरखाव, सफाई, पोंछना आसान है भला हम इसे कैसे छोड़ सकते हैं। इस पर छपे रंगीन आकर्षक बैनर्ज के सामने खड़े होकर भाषण दिए गए। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग, पर्यावरण और जीवतंत्र को हो रहे नुकसान पर चिंता व्यक्त की। आमजन को जागरूक करने की महत्ता पर बल दिया। पर्यावरण सरंक्षण और संवर्धन में सशक्त भूमिका निभाने की वचनबद्धता दोहराई गई।
कार्यक्रम में समझाया गया कि पर्यावरण दिवस एक तारीख नहीं बल्कि पर्यावरण के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी और जागरुकता का प्रतीक है। हमें प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूक रहना है। कार्यक्रम में विजेताओं को बड़े आकार के चैक और प्रमाण पत्र भी ऐसे ही सामग्री पर छापकर दिए गए। मुख्य अतिथि को भेंट किया गया गुलदस्ता भी नर्म चमकते प्लास्टिक में ही लिपटा हुआ रहा। जागरूकता रैली में अधिकांश बैनर और साइन बोर्ड कपड़े या कागज़ के नहीं विनाइल शीट के ही रहे। दूसरा मैटिरियल इतना बढ़िया यूजर्स फ्रेंडली नहीं होता।
पर्यावरण से निश्छल प्रेम भी तो, एक मानवीय कोमल भावना ही है लेकिन प्रकृति पोषण और पर्यावरण संरक्षण की शपथ भी बहुत ज़रूरी है। लघु नाटिका से भी पर्यावरण संरक्षण का सन्देश दिया करते हैं और पर्यावरण बचाने के लिए विशाल नाटक करते रहते हैं। अबुद्धिजीवी लोग हर कहीं कूड़ा करकट फेंकते रहते हैं और बुद्धिजीवी उठवाते रहते हैं। एक बेहद संजीदा सलाह दी गई है कि ऐसे इंजेक्शन बना लिए जाएं जो कूड़ा फेंकने वालों को लगाए जाएं ताकि उन्हें कूड़ा कचरा फेंकने की आदत छूट जाए। इस इंजेक्शन को प्लास्टिक और प्लास्टिक सम्बन्धी उत्पाद बनाने वाली कम्पनियां दान कर सकती हैं और अपने विज्ञापन बजट को डेबिट कर सकती हैं।
पर्यावरण दिवस, प्लास्टिक से पर्यावरण को हो रहे नुक्सान पर, बहुत ज्यादा गहरी चिंता बार बार जताने का उचित अवसर भी होता है। एक सेवानिवृत उच्च वनअधिकारी ने बताया कि पौधे लगाने की औपचारिकता निभाने के लिए अब पौधे वहीँ लगाए जा रहे हैं जहां जगह नहीं बची। असली उद्देश्य तो कम पौधे लगाकर उनके बारे ज्यादा छपवाना है पौधे बचाना नहीं। कम होते जा रहे पानी की दुनिया में यह काम मुश्किल होता जा रहा है।
इस बार नेताजी ने अपनी गाडी पौधे लाने के लिए नहीं दी कहा, पिछले साल बहुत गंदी हो गई थी। पर्यावरण दिवस कार्यक्रम के बाद नेताओं ने राजनीति करने का कर्तव्य पूरा किया क्यूंकि यह उनका स्थायी कर्तव्य है।
- संतोष उत्सुक