By नीरज कुमार दुबे | Dec 16, 2025
वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं, अमेरिकी टैरिफों और भारत को लेकर की गई नकारात्मक टिप्पणियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था ने ऐसा ठोस प्रदर्शन किया है, जिसने आलोचकों की बोलती बंद कर दी है। हम आपको बता दें कि नवंबर महीने में भारत के निर्यात में 19.4 प्रतिशत की जोरदार बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 38.1 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जोकि बीते तीन वर्षों में सबसे तेज़ वृद्धि है। खास बात यह है कि यह उछाल अमेरिका और चीन जैसे बड़े बाजारों में भारतीय उत्पादों की मजबूत मांग के दम पर आया है।
यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि मोदी सरकार की व्यापार और आर्थिक नीतियां न सिर्फ संतुलित हैं, बल्कि वैश्विक झटकों को झेलने में पूरी तरह सक्षम भी हैं। अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ के बावजूद नवंबर में अमेरिका को भारत का निर्यात 22.6 प्रतिशत बढ़कर करीब 7 अरब डॉलर रहा। वहीं चीन को निर्यात में तो रिकॉर्ड 90 प्रतिशत की छलांग लगाते हुए यह 2.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया। हम आपको बता दें कि नवंबर में चीन, नीदरलैंड को पीछे छोड़ते हुए भारत का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य बन गया।
वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल ने कहा कि टैरिफ के बावजूद भारत-अमेरिका व्यापार में मजबूती बनी हुई है और आयात में 38 प्रतिशत की वृद्धि भी दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्तों की गहराई को दर्शाती है। इस बीच, उद्योग जगत के जानकारों का मानना है कि त्योहारों के बाद मांग में संतुलन और आपूर्ति श्रृंखला के सामान्य होने से भी निर्यात को बल मिला है। हम आपको बता दें कि इंजीनियरिंग वस्तुएं, इलेक्ट्रॉनिक्स, रत्न व आभूषण, फार्मा, रसायन, पेट्रोलियम उत्पाद और वस्त्र क्षेत्र ने निर्यात वृद्धि में अहम भूमिका निभाई। आयात पक्ष में सोने, कच्चे तेल और खाद्य तेलों के आयात में उल्लेखनीय कमी आई, जिससे चालू खाते पर दबाव कम हुआ। सेवाओं के निर्यात में भी 11.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ यह 35.9 अरब डॉलर रहा। निर्यात संगठनों ने बेहतर लॉजिस्टिक्स, प्रतिस्पर्धी वित्त और सरकार की नीतिगत सहायता को इस सफलता का आधार बताया है।
हम आपको बता दें कि इसी पृष्ठभूमि में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत को “डेड इकॉनमी” कहे जाने के बयान का तथ्यों के साथ जवाब दिया। उन्होंने कहा कि 8.2 प्रतिशत की तिमाही वृद्धि दर, लगातार चार वर्षों से दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था होना और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों द्वारा सॉवरेन रेटिंग में सुधार, ये सब किसी भी तरह से “मृत अर्थव्यवस्था” के संकेत नहीं हो सकते। इसके साथ ही आरबीआई द्वारा FY26 के लिए जीडीपी वृद्धि अनुमान बढ़ाकर 7.3 प्रतिशत करना और सार्वजनिक ऋण अनुपात में लगातार गिरावट भी भारत की आर्थिक मजबूती की पुष्टि करता है।
देखा जाये तो डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ और बयान दोनों का जवाब भाषणों से नहीं, बल्कि नतीजों से दिया गया है और यही मोदी सरकार की सबसे बड़ी ताकत है। जहां विपक्ष और विदेशी आलोचक शब्दों के तीर चलाते रहे, वहीं भारत ने आंकड़ों की तलवार से जवाब दिया। मोदी सरकार ने कभी भी तात्कालिक बयानबाज़ी में ऊर्जा नहीं गंवाई। “डेड इकॉनमी” कहने वालों को जवाब देने के लिए न तो ट्विटर युद्ध छेड़ा गया और न ही कूटनीतिक शोर मचाया गया। इसकी बजाय सरकार ने वही किया, जो एक आत्मविश्वासी राष्ट्र करता है यानि नीतियों को दुरुस्त रखा, उद्योग को समर्थन दिया और वैश्विक बाजारों में भारत की साख मजबूत की।
अमेरिका जैसे देश द्वारा भारी टैरिफ लगाए जाने के बावजूद वहां निर्यात बढ़ना इस बात का प्रमाण है कि भारतीय उत्पाद अब गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धा के दम पर खड़े हैं, न कि रियायतों के सहारे। चीन जैसे कठिन बाजार में निर्यात का 90 प्रतिशत बढ़ना यह दिखाता है कि भारत ने केवल एक-दो बाजारों पर निर्भर रहने की पुरानी सोच को पीछे छोड़ दिया है। यह वही “मार्केट डाइवर्सिफिकेशन” है, जिसकी बात मोदी सरकार सालों से करती आ रही है।
साथ ही आयात में सोने और कच्चे तेल जैसी गैर-उत्पादक वस्तुओं की कमी और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में बढ़ोतरी यह संकेत देती है कि भारत की खपत अब अधिक समझदार और उत्पादन-उन्मुख हो रही है। यह बदलाव किसी संयोग का नतीजा नहीं, बल्कि मेक इन इंडिया, पीएलआई योजनाओं और बुनियादी ढांचे में भारी निवेश का प्रतिफल है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बिल्कुल सही कहा कि आर्थिक मजबूती का आकलन बयान से नहीं, डेटा से होता है। 8 प्रतिशत से अधिक की विकास दर, रेटिंग अपग्रेड और घटता कर्ज अनुपात यह दिखाते हैं कि भारत “फ्रैजिलिटी से फोर्टिट्यूड” की ओर बढ़ चुका है। आज भारत न सिर्फ ट्रंप के टैरिफों को झेल रहा है, बल्कि वैश्विक आर्थिक मंच पर आत्मविश्वास के साथ अपनी जगह भी बना रहा है। यह जवाब तीखा है, ठोस है और स्थायी है। शब्द भले हवा में उड़ जाएं, लेकिन विकास के आंकड़े इतिहास में दर्ज होते हैं और इस इतिहास के पन्नों पर मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां साफ़, गहरी और निर्णायक छाप छोड़ रही हैं।
-नीरज कुमार दुबे