By Renu Tiwari | Aug 20, 2025
कर्नाटक के अविनाश देसाई ने अपने नवाचार से फिर यह साबित कर दिया कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद खेती की राह चुनने वाले अविनाश ने ट्रैक्टर्स एंड फार्म इक्विपमेंट लिमिटेड (टीएएफई) के मैसी डायनास्टार प्रतियोगिता के सीजन-दो में 16,000 से अधिक प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए पहला स्थान हासिल किया है। देसाई ने कहा कि ज्यादातर किसानों को गोबर को खाद बनाने की प्रक्रिया में समय और जगह की कमी जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है।
उन्होंने इस समस्या को ध्यान में रखते हुए पुराने तरीकों में थोड़ा बदलाव किया और एक ‘मोबाइल स्लरी डिवाटरिंग मशीन’ बनाई, जिसे टीएएफई के ट्रैक्टर से संचालित किया जा सकता है। बेलगावी जिले में रहने वाले देसाई खुद को बेलगावी जिले के रत्ता वंश के शासक कर्तव्यवीर द्वितीय के सेनापति वीरप्पा नायक से जोड़ते हैं। आज देसाई का परिवार सौदत्ती तालुका के उनके गांव चचादी में 100 एकड़ जमीन का मालिक है, जहां वे गन्ना, चना और ज्वार की खेती करते हैं। इसके अलावा वे कम से कम 20 मवेशी पालते हैं।
देसाई ने कहा, ‘‘गोबर का निपटारा करना हमेशा हमारे लिए एक बड़ी परेशानी रही है। हमने बायो-डाइजेस्टर का इस्तेमाल करने की कोशिश की, लेकिन उसमें जमा घोल इतना भारी था कि टैंक फट गया। फिर हम वापस पुराने तरीके पर आ गए, गोबर को एक गड्ढे में डालकर कम से कम एक साल तक सड़ने के लिए छोड़ दिया।’’ देसाई ने कहा कि उन्हें समझ में आ गया कि शुरुआत में बायो-डाइजेस्टर में निवेश करने वाले बड़े किसान अंत में पुराने तरीके पर क्यों लौट आते हैं। इसका कारण है कि बायो-डाइजेस्टर से निकलने वाले घोल में 70 से 80 फीसदी पानी होता है और इसे ज्यादा मात्रा में संभालना बहुत मुश्किल होता है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियर देसाई ने कहा, ‘‘बायो-डाइजेस्टर से संसाधित करने के बाद भी हमें इसे इस्तेमाल करने से पहले बाहर सुखाना पड़ता था। हां, बायो-डाइजेस्टर से समय जरूर काफी बचता है। पहले जहां गोबर को खाद बनने में करीब एक साल लगता था, वहीं अब यह काम एक महीने से थोड़ा अधिक समय में हो जाता है। लेकिन फिर भी यह तरीका पूरी तरह से सुविधाजनक नहीं है।’’
इसी समस्या को दूर करने के लिए उनकी ‘मोबाइल स्लरी डिवाटरिंग मशीन’ काम आती है। इस मशीन को ट्रैक्टर में ट्रॉली की तरह जोड़ा जाता है और यह ट्रैक्टर के पीटीओ (पावर टेक-ऑफ) से चलती है। यह मशीन एक आसान ‘स्क्रू प्रेस’ तकनीक से बायो-डाइजेस्टर से निकले घोल को तुरंत दो भागों में अलग कर देती है। एक तरफ पोषक तत्वों से भरपूर तरल खाद, और दूसरी तरफ सूखी खाद होती है। ‘स्क्रू प्रेस’ एक ऐसी तकनीक है जिसमें घूमने वाले ‘स्क्रू’ की मदद से दबाव बनाया जाता है, ताकि ठोस और तरल हिस्सों को अलग किया जा सके। देसाई ने कहा कि यह दोनों तरह से फायदेमंद है, क्योंकि किसानों को अब पोषक तत्वों से भरपूर तरल खाद भी मिल रही है, जो पहले बेकार चली जाती थी।