वीरे की वेडिंग में जाने से दर्शकों को कोई फायदा नहीं होगा

By प्रीटी | Mar 05, 2018

इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म 'वीरे की वेडिंग' में पहले ही सप्ताह जब बाराती (दर्शक) नहीं आये तो निर्माता-निर्देशक को समझ आ गया होगा कि उनसे कहां-कहां गलतियां हो गयीं। फिल्म की कहानी में कोई नयापन नहीं है और शुरुआत में ही कहानी पटरी से ऐसे उतरी है कि अंत तक उस पर वापस नहीं आ पायी। पिछले दिनों शादी की थीम पर कुछ बेहद कम बजट वाली फिल्में आईं और सफल रहीं तो निर्माताओं को लगा कि शादी के नाम पर दर्शकों को कुछ भी परोसा जा सकता है।

फिल्म की कहानी वीर (पुलकित सम्राट) और गीत (कृति खरबंदा) के इर्दगिर्द घूमती है। वीर दिल्ली में रहता है और एक बिजनेसमैन का लड़का है। वीर दिलफेंक युवक है और कभी इस लड़की से तो कभी उस लड़की से इश्क लड़ाता रहता है लेकिन उसमें एक खास बात भी है कि वह जरूरत पड़ने पर लोगों की मदद भी करता है। उसके पिता परेशान रहते हैं कि ना जाने वीर कब अपनी जिंदगी को लेकर गंभीर होगा। वह उसकी शादी कराने का फैसला करते हैं लेकिन वीर अब गीत से प्यार करता है लेकिन यह बात अपने घर वालों को बताने से डरता है क्योंकि उसके घर वाले प्रेम विवाह के लिए तैयार नहीं होंगे। गीत भी यह बात अपने परिवार वालों को बताने से डरती है। हालात ऐसे हो जाते हैं कि मार पिटाई की नौबत आ जाती है अब तो गीत के घरवाले जब सब कुछ जान जाते हैं तो उन्हें यह कतई पसंद नहीं कि मार पिटाई करने वाले लड़के से शादी की जाये। अचानक कहानी में वीर के चचेरे भाई बल्ली (जिमी शेरगिल) की एंट्री होती है। बल्ली वीर और गीत को मिलाने के लिए क्या कुछ करता है आगे की कहानी में यह सब दिखाया गया है।

 

अभिनय के मामले में पुलकित सम्राट प्रभाव छोड़ने में बिलकुल विफल रहे हैं। वह सलमान खान को कॉपी करते नजर आते हैं और यहीं अपना सब कुछ खो बैठते हैं। जिम्मी शेरगिल का काम अच्छा रहा। वह जब-जब पर्दे पर आये छा गये। कृति का काम ठीकठाक है। सतीश कौशिक टाइप्ड से लगे हैं। अन्य सभी कलाकार सामान्य हैं। फिल्म का गीत-संगीत निष्प्रभावी है। निर्देशक आशु त्रिखा की इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे देखने के लिए समय और पैसा लगाया जाये।

 

कलाकार- पुलकित सम्राट, जिमी शेरगिल, कृति खरबंदा, युविका चौधरी, सतीश कौशिक और निर्देशक आशु त्रिखा।

 

प्रीटी

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