By संतोष उत्सुक | Nov 06, 2025
उन्होंने शुभचिंतकों की बैठक में हाथ जोर जोर से लहरा कर कहा, बहुत नाइंसाफ़ी है, विधानसभा की कुल सीटों की आधी से एक सीट भी ज़्यादा आ जाए तो भव्य सरकार निर्माण के लिए ईंट, सीमेंट, रेत और सरिया इक्कठा हो जाता है। निर्दलीय या स्वतंत्र, जिन्होंने आर्थिक, शारीरिक और दिमागी जान मारी हो जीतकर भी निढाल हो जाते हैं। अब देश में टू पार्टी सिस्टम लागू होना ही चाहिए। मज़ा आ जाए जब एक पार्टी को अस्सी प्रतिशत सीटें मिलें।
इनके सौ में से इक्यावन प्रतिशत आ जाएं तो सरकार बन जाती है। मंत्री अपने, ठेकेदार अपने, अफसर अपने। सब कुछ अपना ही अपना, दूसरों के लिए सपना, बहुत बेइनसाफ़ी है। सरकारों में ऐसे लोग शामिल होते हैं जिनपर बलात्कार, अपहरण व हत्या जैसे संगीन मामले लटक रहे होते हैं। सख्त कानून के अनेक पेंच खुले होते हैं तभी तो गिरफ्त इनसे दूर भागती है। चंद लोग करोड़ों लोगों को अपनी पसंद के फैसलों की जेल में रखते हैं। ये लोग आम तौर पर जाति, संप्रदाय, धर्म, बल, धन और मीठी बातों के दम पर जीतते हैं लेकिन लाखों का कर्ज़ लेकर डिग्री हासिल करने वालों को नौकरी नहीं मिलती।
इनकी तनख्वाह भी मनमानी और पेंशन पर आयकर भी नहीं लगता। दूसरे पेंशनर्स की कमाई एक नंबर की होती है तो भी कर वसूला जाता है। ताक़त का रास्ता निरंकुशता की ओर जाता है। सब के लिए मतदान ज़रूरी हो, जाति खत्म कर हम सिर्फ भारतीय रह जाएं, क्रमांक के आधार पर पहचाने जाने लगें, तब सरकार बने । आरक्षण खत्म हो तो समानता और एकता स्थापित हो।
उनका भाषण खत्म हुए ज़्यादा देर नहीं हुई थी, खबर मिली उनके समर्थकों ने ही उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया। टूटी टांग और सिर पर ढाई दर्जन पट्टियाँ बांधनी पड़ी। डाक्टर ईलाज करते हुए घबरा रहे थे। बीमार पत्नी पास बैठी हुए उन्हें लगातार बुरा और बुरा कह रही थी। बेहद सकारात्मक बात यह रही कि उन्होंने अभी सिर्फ अभ्यास करने के लिए कुछ लोगों के सामने पहली बार मुंह खोला था। उनका चुनाव में खड़ा होना, जीतना और सरकार में शामिल होना चार सौ बीस मील दूर था.......
इतना लंबा सपना उनके शरीर से सहा नहीं गया, हड़बड़ाकर उठ गए और सोचने लगे कि दिमाग़ क्या क्या गलत बातें सोच रहा था। कैसे कैसे ख़्वाब दिखा रहा था। सरकार भी कहीं ऐसे बनती है। अभी उनकी पत्नी ज़ोर से खर्राटे ले रही थी। उन्हें याद आया आज से नया सप्ताह शुरू हो रहा है, सुबह की चाय बनाने की ड्यूटी उनकी है। उनकी घरेलू सरकार सुबह सुबह गिरने से बच जाए इसलिए उन्होंने उठने में देर नहीं की, अपना चेहरा धोकर, चाय बनाने की तैयारी में जुट गए।
- संतोष उत्सुक