गांधी का धर्म दीवारें खड़ी नहीं करता, उससे प्रेरणा लेने की जरूरत

By प्रज्ञा पाण्डेय | Jan 31, 2018

गांधी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार हमारे साथ हैं। 30 जनवरी के दिन ही उनकी हत्या हुई थी। इसी दिन शांति का अग्रदूत हमेशा हमेशा के लिए काल के गाल में समा गए। उन्होंने न केवल देश को गुलामी से आजाद कराया बल्कि दुनिया को भी अहिंसा का पाठ पढ़ाया। 

गांधी ने सत्य और अहिंसा जैसे विचारों का न केवल निजी जीवन में प्रयोग किया बल्कि राजनीति में भी इन आदर्शों को शामिल करने का प्रयास किया। साथ ही राजनीति में भी उन्होंने साध्य और साधन की शुचिता पर बल दिया। उनका मानना था कि साध्य ही नहीं बल्कि साधन भी महत्वपूर्ण है। समकालीन समाज में अगर साधन की पवित्रता पर ध्यान दिया जाए तो साध्य अपने आप ही सर्वोत्तम होंगे। उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र शिक्षा, दर्शन, राजनीति, समाज के क्षेत्र में आदर्श स्थापित किए और देशवासियों को उन आदर्शों का पालन करने के लिए प्रेरित किया। 

 

जब हम गांधी के धर्म की बात करते हैं तो देखते हैं कि उनका धर्म पारंपरिक धर्म नहीं है बल्कि उससे अलग है। उनका धर्म लोगों के बीच दीवारें खड़ी नहीं करता, उन्हें तोड़ने का काम नहीं करता बल्कि जोड़ता है। आज धार्मिकता कट्टरता और आतंकवाद के दौर में गांधी का धर्म प्रासंगिकता और सद्भाव पैदा करने वाला है। साथ ही गांधी सत्याग्रह के समर्थक थे। सत्याग्रह का अर्थ है सत्य पर अडिग रह कर अपना कर्तव्य करना। आज के समाज में सत्याग्रह की आवश्यकता समाज को बेहतर बनाने, नए मूल्यों को गढ़ने और सद्भाव बनाने में जरूरी है। 

 

वैश्वीकरण के दौर में गांव के लोग शहरों की ओर भाग रहे हैं। शहरों की ओर लोग रोजगार और अपनी जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए भाग रहे हैं। शहरों की ओर अधिकाधिक पलायन से हमारे शहरों पर बोझ बढ़ रहा है इससे मुश्किल खड़ी हो रही है। गांधी कहते हैं अगर हम अपने गांवों को इतना आत्मनिर्भर बनाएं कि अपनी जरूरतें पूरा करने के लिए किसी को बाहर जाने की आवश्यकता न हो। गांधी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमारे समाज की अनेक समस्याओं का हल प्रस्तुत करते हैं।

 

- प्रज्ञा पाण्डेय

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