गणपति बप्पा की मूर्ति की स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 11, 2018

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी गणेशजी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ट दिन है। प्राचीन काल में बालकों का विद्या अध्ययन आज के दिन से ही प्रारम्भ होता था। विनायक, सिद्ध विनायक और कर्पादि विनायक भी गणेशजी के ही नाम हैं और यही कारण है कि कई नामों से इस व्रत को पुकारा जाता है। इस दिन गणपति की मूर्ति को धूमधाम से घर पर लाना चाहिए। घर में गणपति की प्रतिमा को प्रवेश कराते समय कंधे पर बैठाकर लायें और गणपति बप्पा मोरया के नारे लगाये हुए आयें। गणपति की मूर्ति को शुभ मुहूर्त में एक सजी हुई चौकी पर स्थापित करें और चौकी के पास तांबे या चांदी के कलश में जल भरकर रखें। कलश हमेशा गणपति के दाईं और रखना चाहिए। कलश पर मोली बांध दें और इसके नीचे अक्षत रखें।

 

महत्वपूर्ण समय

 

भगवान गणेशजी की मूर्ति स्थापना का समय-  11.01 से 13.35 बजे तक

12 सितम्बर को चंद्रमा को नहीं देखने का समय- 16.07 से 2..42 बजे तक

13 सितम्बर को चंद्रमा को नहीं देखने का समय- 09.33 से 21.23 बजे तक

 

ऐसे करें पूजन

 

इस दिन श्रद्धालुओं को चाहिए कि स्नानादि से निवृत्त होकर एक पटरे पर किसी धातु, पत्थर अथवा मिट्टी निर्मित गणेश जी की मूर्ति रखें। इनके अभाव में पीली मिट्टी की डली अथवा गाय के सूखे गोबर पर कलावा लपेटकर उसे भी गणेश जी मान लेते हैं। एक घड़े में जल भरकर और उसके मुंह पर सकोरा रखकर नया वस्त्र ढकने के बाद गणेश जी की प्रतिमा को उस पर स्थापित करते हैं। पूर्ण विधि विधान से सभी पूजन सामग्री का प्रयोग करते हुए गणेश जी की शोडषोपचार पूजा की जाती है।

 

गणेश जी का ध्यान करके आह्वान, आसन, अर्घ्य, पाद्य, आचमन, पंचामृत स्नान, शुद्धोदक स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, सिंदूर, आभूषण, दूर्वा, धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य, पान आदि से विधिवत पूजन करें। पूजन के समय घी से बने हुए इक्कीस पूए या इक्कीस लड्डू गणेश जी के पास रखें। पूजन समाप्त करके उनको गणेश जी की मूर्ति के पास रहने दें। दस पूए या लड्डू ब्राह्मण को दे दें और शेष ग्यारह अपने लिए रखकर बाद में प्रसाद के रूप में बांट दें। ब्राह्मण को जिमाकर गणेश जी की मूर्ति को दो लाल वस्त्रों तथा दक्षिणा समेत ब्राह्मण को दे दें।

 

कथा

 

एक दिन महादेवजी स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगावती गये। पीछे से स्नान के पहले उबटन लगाकर पार्वतीजी ने अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उसे तंत्र बल से सजीव कर आज्ञा दी कि तुम मुद्गर लेकर द्वार पर बैठ जाओ, किसी भी पुरुष को अंदर मत आने देना। लौटने पर जब शिवजी पार्वतीजी के पास भीतर जाने लगे तो उस बालक ने उन्हें रोक लिया। महादेवजी ने अपने इस अपमान से कुपित होकर बालक का सिर काट लिया और स्वयं भीतर चले गये। पार्वतीजी ने शंकरजी को क्रोधित देखकर समझा कि वे कदाचित भोजन में विलम्ब हो जाने के कारण क्रुद्ध हैं। इसलिए उन्होंने तुरंत भोजन तैयार करके दो थालों में परोसा और महादेवजी के सम्मुख रख दिया। शिवजी ने देखा कि भोजन दो थालों में परोसा गया है, तो उन्होंने पार्वतीजी से पूछा कि यह दूसरा थाल किसके लिए है। 

 

पार्वतीजी ने कहा कि यह मेरे पुत्र गणेश के लिए है, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। यह सुनकर शिवजी ने कहा कि मैंने तो उसका सिर काट डाला है। शिवजी की बात सुन पार्वतीजी बहुत व्याकुल हुईं और उन्होंने उनसे उसे जीवित करने की प्रार्थना की। पार्वतीजी को प्रसन्न करने के लिए शिवजी ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया और उसे जीवित कर दिया। पार्वतीजी अपने पुत्र गणेश को पाकर बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने पति और पुत्र दोनों को प्रेमपूर्वक भोजन कराने के बाद खुद भोजन किया। यह घटना भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को हुई थी। इसीलिए इसका नाम गणेश चतुर्थी पड़ा तभी से यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

 

आरती−

 

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता तेरी पार्वती पिता महादेवा। जय गणेश...

 

एक दन्त दयावन्त चार भुजा धारी।

माथे पर सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी। जय गणेश...

 

अन्धन को आंख देत, कोढि़न को काया।

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया। जय गणेश...

 

हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।

लड्डुअन का भोग लगे संत करे सेवा। जय गणेश...

 

दीनन की लाज राखो, शम्भु पुत्र वारी।

मनोरथ को पूरा करो, जाये बलिहारी। जय गणेश...

 

-शुभा दुबे

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