सद्बुद्धि चाहिए तो करें गणेश-गायत्री का स्मरण

By डॉ. प्रणव पण्ड्या | Sep 05, 2016

हमारे देश में गणेश चतुर्थी का पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इसे पर्व का रूप देने का श्रेय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं समाज सुधारक लोकमान्य बालगंगाधर तिलक को जाता है। इन्होंने ही इसे पर्व का रूप प्रदान किया। इसके पीछे उनका उद्देश्य था, देश के युवाओं को एकत्रित और संगठित करना तथा देश, धर्म और संस्कृति के लिए सभी को एक सूत्र में बाँधना। यह उद्देश्य सफल भी हुआ। तब देश पर अंगरेजी हुकूमत थी। श्री तिलक ने संगठित युवाशक्ति को उसके खिलाफ उपयोग कर देश की आजादी में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पर तब से गणेश पूजन ने उत्सव का रूप ले लिया और अब तक उसी रूप में मनाया जा रहा है। महाराष्ट्र में इसे प्रमुख रूप से मनाया जाता है।

 

श्रीगणेश जी का जन्म भाद्र शुक्ल चतुर्थी को होने से इसे उसी दिन मनाया जाता है। कहते हैं कि श्रीगणेश जी की निष्ठा से पूजा करके जो कार्य किया जाता है, वह अवश्य सफल होता है। श्रीरामचरित मानस के बालकाण्ड के १००वें दोहे में प्रसंग आता है-

 

मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि। कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि॥

 

‘गणेश’ शब्द का अर्थ होता है- जो समस्त जीव-जाति के ईश अर्थात स्वामी हों-गणानां जीवजातानां यः ईशः सः गणेशः। श्री मानसपूजा में गणेश जी को प्रणव (ओंकार) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग-गणेश जी का मस्तक, नीचे का भाग-उदर, चन्द्रबिन्दु-लड्डू और मात्रा-सूँड़ प्रतीक है। समस्त सृष्टि उन्हीं के उदर में अवलम्बन पाने से वे लम्बोदर कहलाते हैं। उनके बड़े-बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति तथा छोटी आँखें सूक्ष्म दृष्टि को दरसाती हैं। लम्बी नाक दूर की सुगन्ध को सूँघ लेने, यानि दूर की बातों को जान लेने वाली प्रखर बुद्धि की प्रतीक है।
 
गायत्री की ही तरह गणेश बुद्धि प्रदाता हैं। बुद्धि की विकृति के कारण ही आज संसार में नाना प्रकार के उपद्रव हैं। इसे ठीक करना सद्बुद्धि से सम्भव है जो गणेश और गायत्री की प्रेरणाओं को जीवन में उतारने से होगा। गणेश पूजन के शुभ अवसर पर सद्बुद्धि जगाने का प्रयत्न सभी गणेश पूजक को करना चाहिए। जो गणेश-गायत्री का नियमित स्मरण करेगा, उसे अवश्य सद्बुद्धि प्राप्त होगी।

 

डॉ. प्रणव पण्ड्या
(गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार)

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