By Prabhasakshi News Desk | Jan 16, 2025
भारत के महान समाज सुधारकों की सूची में शामिल महादेव गोविन्द रानाडे एक प्रसिद्ध भारतीय राष्ट्रवादी, विद्वान, समाज सुधारक और न्यायविद थे। इसके अलावा उन्होंने सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों का कड़ा विरोध किया और समाज सुधार के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। रानाडे ‘दक्कन एजुकेशनल सोसायटी’ के संस्थापकों में से एक थे। एक राष्ट्रवादी होने के नाते उन्होंने ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना का भी समर्थन किया और वे स्वदेशी के समर्थक भी थे। अपने जीवन काल में उन्होंने कई सार्वजनिक संगठनों के गठन में योगदान दिया। इनमें प्रमुख थे पूना सार्वजनिक सभा और प्रार्थना समाज। उन्होंने एक एंग्लो-मराठी पत्र ‘इन्दुप्रकाश’ का सम्पादन भी किया।
रानाडे का जीवन परिचय
उनका जन्म 1842 ई. में पुणे में 'गोविंद अमृत रानाडे' के घर हुआ था। वहीं आरंभिक शिक्षा पाने के बाद रानाडे ने ग्यारह वर्ष की उम्र में अंग्रेज़ी शिक्षा आरंभ की। 1859 ई. में उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से प्रवेश परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और 21 मेधावी विद्यार्थियों में उनका अध्ययन मूल्यांकन शामिल था। आगे शिक्षा जारी रखने के लिए उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। पुणे के 'एलफिंस्टन कॉलेज' में वे अंग्रेज़ी के प्राध्यापक नियुक्त हुए थे। एल.एल.बी. पास करने के बाद वे उप-न्यायाधीश नियुक्त किए गए। वे आधुनिक शिक्षा के हिमायती तो थे ही, लेकिन भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप।
इंसानियत की मिसाल की पेश
एक दिन की बात है जब रानाडे अपने घर से न्यायालय जाने के लिए निकले। उन्होंने देखा कि एक वृद्ध महिला ने लकड़ियों का बोझ उठा रखा है। रानाडे को उस वृद्धा के शरीर की अंतिम अवस्था पर तरस आ गया और उन्होंने उससे पूछा- "क्या मैं आपकी कुछ सेवा कर सकता हूँ?" इस पर वृद्धा ने कहा- "लकड़ियों का यह गट्ठर मेरे सिर से उतार दो।" रानाडे ने गट्ठर नीचे उतार दिया। तभी रानाडे को पहचानने वाले उनके एक पड़ोसी ने उस वृद्ध महिला से कहा कि आप नहीं जानतीं, यह सेशन न्यायाधीश है और तुम इनसे ऐसा काम करवा रही हो। वृद्धा के कुछ भी बोलने के पहले ही रानाडे ने जवाब दिया- "मैं न्यायाधीश होने से पहले एक मनुष्य भी हूँ।"
तमाम समाज सुधार के किए कार्य
समाज सुधार के कार्यों में रानाडे ने आगे बढ़कर हिस्सा लिया। वे प्रार्थना समाज और ब्रह्म समाज आदि के सुधार कार्यों से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने जनता हमेशा से ही बराबर संपर्क बनाये रखा। दादाभाई नौरोजी के पथ प्रदर्शन में वे शिक्षित लोगों को देशहित के कार्यों की ओर प्रेरित करते रहे। प्रार्थना समाज के मंच से रानाडे ने महाराष्ट्र में अंधविश्वास और हानिकार रूढ़ियों का विरोध किया। धर्म में उनका अंधविश्वास नहीं था। वे मानते थे कि देश काल के अनुसार धार्मिक आचरण बदलते रहते हैं। उन्होंने स्त्री शिक्षा का प्रचार किया। वे बाल विवाह के कट्टर विरोधी और विधवा विवाह के समर्थक थे। इसके लिए उन्होंने एक समिति 'विधवा विवाह मण्डल' की स्थापना भी की थी।
राजनीतिक गतिविधि
महादेव गोविंद रानाडे ने 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना का समर्थन किया था और 1885 ई. के उसके प्रथम मुंबई अधिवेशन में भाग भी लिया। राजनीतिक सम्मेलनों के साथ सामाजिक सम्मेलनों के आयोजन का श्रेय उन्हीं को है। वे मानते थे कि मनुष्य की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक प्रगति एक दूसरे पर आश्रित है। अत: ऐसा व्यापक सुधारवादी आंदोलन होना चाहिए, जो मनुष्य की चतुर्मुखी उन्नति में सहायक हो। वे सामाजिक सुधार के लिए केवल पुरानी रूढ़ियों को तोड़ना पर्याप्त नहीं मानते थे। उनका कहना था कि रचनात्मक कार्य से ही यह संभव हो सकता है। वे स्वदेशी के समर्थक थे और देश में निर्मित वस्तुओं के उपयोग पर बल देते थे। देश की एकता उनके लिए सर्वोपरी थी।
आज ही के दिन 16 जनवरी 1901 को समाज सुधारक और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक महादेव गोविंद रानाडे का पुणे में निधन हो गया। वे एक समाज सुधारक थे, जिन्होंने बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई लड़ी, शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह के माध्यम से महिलाओं के उत्थान पर काम किया।