गुरुवायुर एकादशी पर श्रीकृष्ण के पूजन से मिलता है मनवांछित फल

By शुभा दुबे | Dec 14, 2021

गुरुवायुर एकादशी वृश्चिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर मनायी जाती है। इस एकादशी को प्रसिद्ध गुरुवायुर कृष्ण मन्दिर में धूमधाम से मनाया जाता है। गुरुवायुर एकादशी हिंदू पंचांग के हिसाब से कार्तिक अथवा मार्गशीर्ष और अंग्रेजी कैलेण्डर के मुताबिक नवम्बर या दिसम्बर माह में ही पड़ती है। इस एकादशी को देशभर के गुरुवायुर कृष्ण मंदिरों में धूमधाम से मनाया जाता है खासकर केरल के गुरुवायुर मंदिर में इस एकादशी पर तमाम तरह के आयोजन किये जाते हैं। मान्यता है कि इस एकादशी पर भगवान श्रीकृष्ण का विधि-विधान से पूजन करने पर मनवांछित फल प्राप्त होता है और सभी पापों का भी क्षय होता है।

इसे भी पढ़ें: नए साल 2022 में खूब बजेंगी शहनाइयां, शुभ मुहूर्त की भरमार

देखा जाये तो केरल के प्रधान देवता एवं कई परिवारों के कुल देवता श्रीगुरवापुरप्पा हैं जिनका अति प्राचीन मंदिर वहां स्थित है। केरल में इस तीर्थ का बहुत माहात्म्य है। गुरुवायूर तीर्थ की पौराणिक कथा अत्यन्त प्रसिद्ध है। कृष्ण ने अपने मित्र उद्धव को बृहस्पति के पास एक विशिष्ट संदेश लेकर भेजा। संदेश यह था कि द्वारिकापुरी को समुद्र कुछ काल में डुबो देगा। द्वारिकापुरी एक प्रसिद्ध मूर्ति थी जिस मूर्ति को विष्णु ने ब्रह्मा को दिया था। एक समय महाराजा सुतपा की रानी ने पुत्र प्राप्ति के लिए ब्रह्मा से आराधना की। ब्रह्मा ने यह मूर्ति महाराजा को प्रदान कर दी और महाराजा को उपासना करने को कहा। महाराजा इस मूर्ति की भक्ति पूर्वक आराधना करने लगा। आराधना से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि रानी के गर्भ से मैं स्वयं विष्णु के रूप में जन्म लूंगा। दूसरे जन्म में राजा कश्यप और रानी अदिति हुए। उस समय भगवान ने बावन रूप का अवतार लिया था। तीसरे जन्म में सुतपा वासुदेव के रूप में पैदा हुए। उनकी रानी देवकी के गर्भ से कृष्ण पैदा हुए। कंस के वध के पश्चात् इस प्राचीन मूर्ति को धौम्य ऋषि को वासुदेव ने दे दिया। उन्होंने इस मूर्ति को द्वारिका में प्रतिष्ठापित किया।


भगवान कृष्ण ने उद्धव से कहा था कि यह मूर्ति अत्यन्त असाधारण है और कलियुग में यह मूर्ति भक्तों के लिए अत्यन्त कल्याणदायक और वरदान रूप सिद्ध होगी। बृहस्पति कृष्ण का संदेश पाकर द्वारिका पहुंचे लेकिन तब तक द्वारिका समुद्र में डूब चुका था। वायु की सहायता से इस मूर्ति को समुद्र से निकाला गया। बृहस्पति ने मूर्ति को स्थापित करने के लिए उपयुक्त स्थान की बहुत तलाश की। वर्तमान समय में वहां यह मूर्ति स्थापित है। वहां एक सुंदर झील थी। इस झील के तट पर शिव व पार्वती जल क्रीड़ा करते थे। शिव की आज्ञा से बृहस्पति ने उस प्राचीन मूर्ति की वहां स्थापना की। चूंकि इसमें वायु देव ने प्राण प्रतिष्ठा की थी इसलिए उसका नाम गुरुवायूर हो गया।

इसे भी पढ़ें: साल 2022 में इन 4 राशियों के शुरू हो जाएंगे अच्छे दिन, क्या आपकी राशि है लिस्ट में शामिल?

गुरुवायूर का मंदिर अति विशाल है। कहा जाता है कि देवताओं की आज्ञानुसार विश्वकर्मा ने इस मंदिर का लकड़ी से निर्माण किया था। सन् 1970 में एक अग्निकाण्ड के कारण इसका कुछ भाग जल गया था। केरल सरकार ने अब दूसरे मंदिर का निर्माण करवा दिया है। लगभग साढ़े पांच सौ वर्ष पूर्व पांड्य देश के राजा को किसी ज्योतिषी ने कहा था कि वह सांप काटने से मर जाएगा। राजा ने तीर्थयात्रा की और गुरुवायूर पहुंचा। उस समय मंदिर ध्वस्त अवस्था में था। राजा ने उसका पुनर्निर्माण कराया। कहते हैं कि निश्चित अवधि बीत जाने पर भी राजा की मृत्यु नहीं हुई। राजा ने ज्योतिषी से उसका कारण पूछा। ज्योतिषी ने कहा कि मंदिर के निर्माण में राजा इतने व्यस्त थे कि उन्हें सर्प काटने का आभास नहीं हो सका। मंदिर के पुनर्निर्माण के पुण्य का फल है कि सांप काटने से उनकी मृत्यु नहीं हुई। इसके बाद मंदिर का कई बार निर्माण व पुनर्निर्माण होता रहा।


गुरुवायूर जगत्गुरु आदि शंकराचार्य की जन्मस्थली है। वे यहां रहा करते थे। वर्तमान में गुरुवायूर की जो पूजा होती है उनकी पद्धति आज के शंकराचार्य द्वारा जारी की गई है। गुरुवायूर मंदिर के निकट ममीपूर नामक बस्ती है जहां एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस मंदिर में अत्यन्त प्राचीन मूर्ति की स्थापना धर्मराज ने की थी। इस शिव को ममीपुरप्पन् भी कहा जाता है।


-शुभा दुबे

प्रमुख खबरें

पवन सिंह को लॉरेंस बिश्नोई ने धमकी नहीं दी, गैंगस्टर हरि बॉक्सर ने कहा- हम तो उन्हें जानते तक नहीं

ED ने महाराष्ट्र में ISIS से जुड़े मॉड्यूल के 40 से अधिक ठिकानों पर की छापेमारी, 9.7 करोड़ रुपये जब्त

Delhi AQI: गंभीर स्थिति में पहुंची दिल्ली की वायु गुणवत्ता, CAQM ने लगाया GRAP 4

Goa Nightclub Fire Tragedy : नियमों की अनदेखी पड़ी भारी, गोवा के दो नाइट क्लब सील