रामधारी सिंह दिनकर: जिनकी कविताएं आज भी रगों में उबाल पैदा कर देती है

By अंकित सिंह | Sep 23, 2018

अपनी कविताओं के जरिए लोगों के दिलों में राष्ट्रवाद पैदा करने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की आज 110 वीं जयंती है। दिनकर का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में 23 सितंबर 1908 को हुआ था। दिनकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई की। बाद में उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया। दिनकर अपनी कविताओं में राष्ट्र चेतना को जगाए रखते थे। 

दिनकर वीर रस के कवि थे जो स्वतन्त्रता से पहले विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि का दर्जा मिला। दिनकर की कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार रहती थी पर यह भी सच है कि उन्होंने कोमल श्रृंगारिक भावनाओं को भी व्यक्त किया है। शुरूआत में दिनकर मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे। जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया। दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे।

 

इसके बाद उन्होंने भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया। बाद में भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने। सन 1959 ई० में भारत सरकार ने इन्हें “पदमभूषण” से सम्मानित किया। भागलपुर विश्वविद्यालय ने सन 1962 में उन्हें डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की। दिनकर जी ने अपनी रचनाओं के जरिए सामाजिक चेतना भी पैदा किए। 

 

दिनकर को भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया था। संस्कृति के चार अध्याय के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। 24 अप्रैल, 1974 को उनका देहावसान हो गया।

 

प्रमुख रचनाएं:

 

काव्य

 

रेणुका (1935)

हुंकार (1938)

द्वंद्वगीत (1940)

कुरूक्षेत्र (1946)

धूप-छाँह (1947)

बापू (1947)

रश्मिरथी (1952)

उर्वशी (1961)

परशुराम की प्रतीक्षा (1963)

रश्मिलोक (1974)

 

गद्य

 

मिट्टी की ओर (1946)

चित्तौड़ का साका (1948)

अर्धनारीश्वर (1952)

रेती के फूल (1954)

हमारी सांस्कृतिक एकता (1955)

भारत की सांस्कृतिक कहानी (1955)

संस्कृति के चार अध्याय (1956)

 

 

लोकप्रिय रचनाएं:

 

 

1- रे रोक युधिष्ठर को न यहाँ, जाने दे उनको स्वर्ग धीर

पर फिरा हमें गांडीव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर 

 

 

2- ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो ,

किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?

किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,

भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?


कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?

तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान


फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले !

ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले!

सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है,

दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है 

 

3- क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो;

उसको क्या जो दन्तहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो।

 

4- वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो

चट्टानों की छाती से दूध निकालो

है रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ो

पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो

 

5- तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ?

मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ?

किसको नमन करूँ मैं भारत ? किसको नमन करूँ मैं ?

भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ?

 

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