By नीरज कुमार दुबे | Aug 12, 2025
जम्मू-कश्मीर का आज का पूरा परिदृश्य इस बात का सशक्त प्रमाण है कि अनुच्छेद 370 और 35-ए हटने के बाद इस केंद्र शासित प्रदेश के ज़मीनी हालात में गहरा परिवर्तन आया है। कभी जिन नेताओं की चेतावनी थी कि आर्टिकल 370 को छेड़ा तो घाटी में तिरंगा उठाने वाला कोई नहीं रहेगा, उन्हें आज की तस्वीर देखनी चाहिए, जहाँ तिरंगा न केवल सरकारी भवनों पर बल्कि हर घर पर, हर गली, हर चौक और डल झील के किनारों तक लहरा रहा है।
स्वतंत्रता दिवस से पहले जिस तरह तिरंगा यात्राओं में हर आयु वर्ग और सामाजिक पृष्ठभूमि के लोग उमड़ रहे हैं, वह केवल उत्सव का संकेत नहीं बल्कि मानसिकता में आए बदलाव का प्रमाण है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का स्वयं तिरंगा यात्रा में शामिल होना और तिरंगे की आन-बान-शान बनाए रखने का संकल्प लेना एक प्रतीकात्मक लेकिन ऐतिहासिक क्षण है। यह उस राजनीति के बदलते स्वरूप को दर्शाता है, जो पहले विशेष दर्जे की रक्षा पर केंद्रित थी, मगर अब राष्ट्रीय एकता के प्रतीकों को आत्मसात कर रही है।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का पहलगाम आतंकी हमले का बदला लेने वाले सैनिकों और सुरक्षाबलों का अभिनंदन करना इस बात को पुष्ट करता है कि सुरक्षा, राष्ट्र गौरव और जनभावना आज एक ही धारा में प्रवाहित हो रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन महादेव केवल सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि जनता के आत्मविश्वास को पुनर्स्थापित करने के प्रतीक बन चुके हैं। देखा जाये तो जम्मू-कश्मीर की ये तिरंगा यात्राएँ सिर्फ रंग-बिरंगे आयोजन नहीं, बल्कि यह संदेश हैं कि अलगाववाद और भय की राजनीति अब जगह छोड़ रही है और उसकी जगह ले रहा है एक खुला, आत्मविश्वासी और राष्ट्र से जुड़ा कश्मीर।
जहां तक प्रतिक्रियाओं की बात है तो आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज को और ऊंचाइयों तक ले जाने का प्रयास करना चाहिए और इसकी गरिमा बनाए रखने में अपना योगदान देना चाहिए। अब्दुल्ला ने तिरंगा रैली को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘यह जरूरी नहीं है कि हमें किसी काम के लिए बड़ी संख्या में लोगों की जरूरत हो। हम सभी राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान और गरिमा को बनाए रखने में अपना योगदान दे सकते हैं।’’ मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय ध्वज फहराना केवल आधिकारिक समारोहों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें राष्ट्रीय ध्वज को और ऊंचाइयों तक ले जाने का प्रयास करना चाहिए तथा उन लोगों के पदचिह्नों पर चलना चाहिए जिन्होंने इस ध्वज के सम्मान को बनाए रखने के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कुछ साल पहले राष्ट्रीय ध्वज केवल सरकारी इमारतों और निर्धारित आधिकारिक समारोहों में ही फहराया जा सकता था।''