By प्रज्ञा पाण्डेय | Aug 07, 2024
आज हरियाली तीज है, इस दिन महिलाएं पति के लिए उपवास रखकर शिव-गौरी की पूजा करती है। सुहागन स्त्रियां झूला झूलती हुए सुरीले स्वर में सावन के गीत-मल्हार गाती हैं। यह त्योहार दांपत्य जीवन में प्याग बढ़ता है, तो आइए हम आपको हरियाली तीज व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें हरियाली तीज के बारे में
हिंदू धर्म में हरियाली तीज पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व हर साल श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है। इस विशेष दिन पर भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना का विधान है। शास्त्रों के अनुसार हरियाली तीज त्योहार को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक माना जाता है। इस विशेष दिन पर पूजा-पाठ और स्नान-दान करने से विशेष लाभ मिलता है। हरियाली तीज का पवित्र त्योहार इस वर्ष 7 अगस्त को मनाया जा रहा है। इस शुभ दिन पर महिलाएं अपने घर की सुख-समृद्धि के लिए, व्रत रखती हैं।
हरियाली तीज के व्रत के बारे में धार्मिक मान्यता है कि, यह व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए किया था। अक्सर लोग मानते हैं कि ये व्रत सुगहागिनों के द्वारा ही क्या जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने देवों के देव महादेव को अपने पति के रूप में पाने के लिए लंबे समय तक कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या को शिव जी ने सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को स्वीकार किया था। इस शुभ दिन पर कुंवारी लड़कियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं और विवाहित महिलाएं सुख-समृदि में वृद्धि के लिए महादेव की पूजा-अर्चना करती हैं। इसलिए हरियाली तीज का त्योहार मनाया जाता है।
हरियाली तीज व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
पंडितों के अनुसार हरियाली तीज उत्सव को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इस कड़ी तपस्या से माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। कथा के अनुसार, माता गौरी ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर पुनर्जन्म लिया था। माता पार्वती बचपन से ही शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने कठोर तप किया। एक दिन नारद जी पहुंचे और हिमालय से कहा कि पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं। यह सुन हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। दूसरी ओर नारद मुनि विष्णुजी के पास पहुंच गये और कहा कि हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह आपसे कराने का निश्चय किया है। इस पर विष्णुजी ने भी सहमति दे दी।
नारद इसके बाद माता पार्वती के पास पहुंच गए और बताया कि पिता हिमालय ने उनका विवाह विष्णु से तय कर दिया है. यह सुन पार्वती बहुत निराश हुईं और पिता से नजरें बचाकर सखियों के साथ एक एकांत स्थान पर चली गईं। घने और सुनसान जंगल में पहुंचकर माता पार्वती ने एक बार फिर तप शुरू किया। उन्होंने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और उपवास करते हुए पूजन शुरू किया। भगवान शिव इस तप से प्रसन्न हुए और मनोकामना पूरी करने का वचन दिया। इस बीच माता पार्वती के पिता पर्वतराज हिमालय भी वहां पहुंच गये। वह सत्य बात जानकर माता पार्वती की शादी भगवान शिव से कराने के लिए राजी हो गये। शिव इस कथा में बताते हैं कि, बाद में विधि-विधान के साथ उनका पार्वती के साथ विवाह हुआ। शिव कहते हैं, ‘हे पार्वती! तुमने जो कठोर व्रत किया था उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह हो सका। इस व्रत को निष्ठा से करने वाली स्त्री को मैं मनवांछित फल देता हूं।
हरियाली तीज का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 06 अगस्त को रात 07 बजकर 52 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 07 अगस्त को रात 10 बजकर 05 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 07 अगस्त को हरियाली तीज मनाई जाएगी।
हरियाली तीज के दिन ऐसे करें पूजा
पंडितों के अनुसार इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र-आभूषण पहनें। फिर एक स्वच्छ स्थान पर पीला वस्त्र बिछाकर वहां एक चौकी पर माता गौरी और भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। पूजा विधिपूर्वक शुरू करें, जिसमें सबसे पहले भगवान शिव और माता गौरी की पूजा की जाती है। इस अवसर पर हरे रंग की सजावट करें और हरे पत्ते चढ़ाएं। फल, मिठाई और अन्य भोग अर्पित करें, विशेषकर फल, मेवे, और हरी चूड़ियां अर्पित की जाती हैं। पूजा के बाद हरियाली तीज की कथा सुनें या पढ़ें। अंत में, पूजा समाप्त करने के बाद परिवार के साथ प्रसाद वितरित करें । यह पूजा माता गौरी की कृपा प्राप्त करने और घर में सुख-समृद्धि लाने के लिए की जाती है।
तीज के दिन हरे रंग की है खास महत्ता
सावन के महीने को प्रकृति की सौंदर्यता के तौर पर देखा जाता है। धर्मग्रंथों में स्त्री को भी प्रकृति के समतुल्य ही माना गया है। प्रकृति की हरियाली की तरह स्त्रियों से भी जीवन में ख़ुशी और स्फूर्ति बनी रहती है। हरा रंग, खुशहाली, समृद्धि, उत्कर्ष, प्रेम, दया, पावनता, पारदर्शिता का प्रतीक है। सुहागिन महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां,परिधान अपने पति की खुशहाली,तरक्की, दीर्घायु और सेहतमंद जीवन के लिए पहनती हैं। मान्यता है कि हरा रंग पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास को बढ़ाता है व इस माह में ये रंग पहनने से शिव-पार्वती की कृपा बनी रहती है। इसलिए तो हरियाली तीज या हरियाली अमावस्या जैसे त्योहारों में हरे रंग के कपड़े व हरी चूड़ियां पहनने की परंपरा है।
हरियाली तीज का धार्मिक महत्व है खास
हरियाली तीज का धार्मिक महत्व विशेष रूप से हिंदू धर्म में है। इसे भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन की खुशी में मनाया जाता है। शास्त्रों में वर्णन है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया,उससे प्रसन्न होकर शिव ने श्रावण शुक्ल तीज के दिन ही मां पार्वती को अपनी पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसलिए, इस दिन को माता पार्वती के पूजा का दिन मानते हुए, महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना करती हैं। यह त्योहार विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने घर के सुख-समृद्धि के लिए और सुहागन के रूप में जीवन बिताने के लिए मनाती हैं। वहीं इस दिन कुंवारी कन्याएं व्रत रखकर अपने लिए शिव जैसे वर की कामना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो सुहागन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं,उनको सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- प्रज्ञा पाण्डेय