By Prabhasakshi News Desk | Sep 13, 2024
कांग्रेस और भूपेंद्र हुड्डा के उस दौर को हरियाणा की जनता भुगत चुकी है, जब सरकार को राज्य के कुछ ही इलाकों से मतलब था। राज्य के बाकी हिस्सों की उसने कभी भी खास चिंता नहीं की। अधिकतर क्षेत्र और वहां की जनता को पूरी तरह से उपेक्षित छोड़ दिया गया था। पक्षपात का खुल्लम-खुल्ला खेल मुख्यमंत्री के स्तर से चलता था। जिस तरह से तब हरियाणा का एक समाज कांग्रेस शासन पर हावी था। बिल्कुल उसी तरह से सरकार के खजाने एक क्षेत्र विशेष के लिए खोल दिए गए थे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रदेश के संसाधनों को व्यवस्थित तरीके से सिर्फ एक इलाके की ओर ही मोड़ रखा था। हरियाणा का यह वो इलाका था, जहां वे अपने राजनीतिक हित साध सकते थे। उस समय सरकार के लिए यह बात मायने नहीं रखती थी कि प्रदेश की अधिकतर आबादी मुंह ताक रही है। उनको तो बस अपने पसंदीदा इलाके से ही मतलब था।
राज्य सरकार जिस जनता से वसूलती थी रकम, उसके लिए खर्च नहीं कर पाती थी
हरियाणा में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार की इस अलोकतांत्रिक और भेदभावपूर्ण हरकत का सबसे बड़ा उदाहरण गुड़गांव में एक्सटर्नल डेवलपमेंट चार्जेज के नाम पर वसूले गए 5,000 करोड़ रुपए में से 1,000 करोड़ रुपए से अधिक का कुप्रबंधन है। हुड्डा सरकार ने यह रकम गुड़गांव के निवासियों से वसूले थे और अदालत के सामने कबूल किया था कि इतनी बड़ी रकम विकास और कल्याणकारी कार्यों पर वह नहीं खर्च कर सकी।
रोहतक को मॉडल गांव देने में भी सबसे ज्यादा प्राथमिकता
भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार इस कदर आंखें मूंद कर क्षेत्रवाद में लिप्त थी कि जब 65 गांवों को मॉडल गांवों के तौर पर नाम देने की बारी आई तो महेंद्रगढ़, सिरसा और पंचकूला जिलों को दरकिनार करके सबको हैरानी में डाल दिया था। उससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये थी कि इसमें से भी 36% मॉडल गांव मात्र दो ही जिलों से लिए गए थे। उनमें से भी हुड्डा का गृह जिला रोहतक सबसे बड़ा लाभार्थी था।
राजनीतिक विरोधियों के इलाकों के साथ सरकार ने किया सौतेला बर्ताव
कांग्रेस सरकार को जरा भी नहीं लगता था कि इस तरह से खुल्लम-खुल्ला सत्ता का दुरुपयोग किसी की भी आंखों को चुभ सकता है। सरकार उनकी थी और उनकी जो मर्जी में आया वही करते रहे। अब सिरसा से चौटाला परिवार का नाता जुड़ा है, इससे इस बात का संदेह और गहराता है कि पूरा फैसला राजनीति और भेदभाव से प्रभावित था। इस क्षेत्र के लोगों का विकास सरकार की थोड़ी सी भी प्राथमिकताओं में शामिल नहीं था।
हरियाणा में जनता से वसूली में चुस्त, खर्च करने में भी भेदभाव
2004-05 से 2013-14 के बीच जो हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (HUDA) की ओर से संसाधन जुटाए गए थे। उनके आवंटन में भी जमकर बंदरबांट किया गया। उन जिलों को चुन-चुनकर नजरअंदाज करने की कोशिश की गई, जो कांग्रेसी इकोसिस्टम में फिट नहीं बैठ पाए थे। इसका परिणाम ये रहा कि महेंद्रगढ़, जींद, हिसार, फतेहाबाद, रेवाड़ी,चरखी, दादरी, भिवानी, कैथल, सिरसा और यमुनानगर जिलों में प्रगति के नाम पर मुश्किल से ही कभी भी कुछ नजर आया।
अपनी ही सरकार से उम्मीद आम जनता के लिए रह गई थी बेमानी
विकास की जितनी भी घोषणाएं कांग्रेस के दौर में हुईं। उन्हें मूलरूप से एक खास क्षेत्र तक की ही सीमित रखा गया और पूरे राज्य को उनके हाल पर उपेक्षित छोड़ दिया गया था। कांग्रेस की इस प्रवृत्ति से न सिर्फ हरियाणा में एक खास समाज और क्षेत्र को ही प्राथमिकता मिलती रही, बल्कि व्यवस्थित तरीके से राज्य के अधिकतर इलाकों और ज्यादातर आबादी को मायूसी का जीवन जीने के लिए उनकी हाल पर छोड़ दिया गया था। जहां, उन्हें अपनी ही सरकार से किसी भी तरह की उम्मीद करना बेमानी हो चुका था।