डोकलाम पठार पर चीनी सरकार का दिल आखिर क्यों आया है

By अनीता वर्मा | Dec 04, 2017

डोकलाम पठार इन दिनों चर्चा में बना हुआ है। वस्तुतः डोकलाम पठार भारतीय राज्य सिक्किम, भूटान और तिब्बत (चीन) के मिलन बिंदु पर स्थित है। ज्ञात हो कि चीन, भारत-चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में लगातार आधारभूत संरचना का निर्माण का निर्माण कर रहा है। इसी क्रम में सिक्किम से लगा इलाका जो भूटान के भूभाग का हिस्सा है वहाँ चीनी सैनिकों द्वारा सड़क निर्माण के कार्य को भारतीय सैनिकों ने भूटान के अनुरोध पर रुकवा दिया है क्योंकि भारत सरकार का भूटान सरकार के साथ सुरक्षा समझौता है। जिसके परिणामस्वरूप सिक्किम सीमा पर भारत और चीन के मध्य विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। दरअसल चीन की मंशा भूटान के संदर्भ में उचित प्रतीत नहीं होती है। वरना भूटान की संप्रभुता को चुनौती देकर 21वीं सदी में चीन द्वारा भूटान की जमीन को हड़पने का प्रयास नहीं किया जाता। चीन शायद भूल रहा है कि जो अन्य देशों के भूभागों को हड़पने के कारनामे भूतकाल (तिब्बत, भारत का अक्साई चीन) में उसने किए हैं वैसे कार्य करना अब आसान नहीं होगा। 1959 में तिब्बत पर कब्जा कर चीन ने वहाँ के नागरिकों को दूसरे देशों में शरणार्थी बनने पर विवश कर दिया।

प्रश्न उठता है कि डोकलाम पठार पर चीन ने अपनी कुदृष्टि क्यों डाली है? दरअसल डोकलाम की भौगोलिक स्थिति रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। डोकलाम वह स्थान है जहाँ भारत (सिक्किम), भूटान और तिब्बत की सीमाएं मिलती हैं। ऐसे में यह स्थान भारत के लिए सामरिक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। चीन इसे अपने लिए वरदान की तरह देख रहा है क्योंकि यदि चीन इस इलाके में सड़क निर्माण करने में कामयाब हो जाता है तो भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) तक सामरिक बढ़त ले लेगा। जो शेष भारत को उत्तर पूर्व से जोड़ने का एक मात्र मार्ग है और यदि किसी कारण से भारत चीन के मध्य युद्ध होता है तो ऐसी स्थिति में चिकन नेक के माध्यम से उत्तर पूर्व के राज्यों से संपर्क को भंग कर सकता है। जिसके परिणामस्वरूप एक तरफ भूटान को चारों तरफ से घेराबंदी करने में कामयाब होगा तो दूसरी ओर पूर्वोत्तर के राज्यों में भी भारत के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करने में सफल हो जाएगा।

 

चीन द्वारा दूसरे की जमीन हड़पने की भूख इतनी प्रबल है कि वह एक विवादास्पद नक्शे को जारी कर भूटान के भूभाग को अपना बता रहा है और इसके लिए 1890 की संधि का हवाला दे रहा है। चीन का कहना है कि जिस जमीन पर वह सड़क बनाने का कार्य कर रहा है वो उसके इलाके में आता है और भारतीय सैनिकों ने उसकी जमीन में घुसकर उसके सड़क निर्माण कार्य को बाधित किया है। अर्थात एक प्रकार से स्वयं को पीड़ित बताने का प्रयास कर रहा है। लेकिन वास्तव में वह जमीन भूटान की है। जिसे भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया है। मंत्रालय के अनुसार, डोकलाम के जिस इलाके को चीन अपना बताकर सड़क निर्माण कर रहा है वह न तो चीन है और न ही भारत का है बल्कि वह भूटान का भूभाग है।

 

दरअसल भूटान सरकार के कहने पर ही भारतीय सैनिकों ने उस इलाके में सड़क निर्माण के कार्य को रुकवा दिया है। इससे स्पष्ट है चीन अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीति के तहत भूटान की धरती पर खड़े होकर भारत को धमका रहा है और इतिहास से सीखने की बात कर रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने सबूतों के साथ चीन की पोल खोली है। मंत्रालय के अनुसार चीनी सेना सिक्किम सेक्टर में चुंबी घाटी के डोकलाम में जबरन घुसी। सिक्किम से सटा डोकलाम का इलाका भूटान का हिस्सा है। वहाँ चीन ने जबरन सड़क निर्माण करने की कोशिश की जिसका विरोध भूटान के राजदूत ने 20 जून को भारतीय दूतावास के जरिये किया। अतः स्पष्ट है कि चीन भूटान की जमीन को हड़पने का प्रयास कर रहा है। भूटान के राजदूत ने अपने 28 जून के बयान में कहा है कि "हाल में चीन की सेना ने भूटानी सेना के शिविर की दिशा में सड़क निर्माण कार्य शुरू किया था। जो दोनों देशों के बीच समझौते का उल्लंघन है। डोकलाम एक विवादित क्षेत्र है और भूटान के साथ चीन का लिखित समझौता है। इस सीमा का अंतिम समाधान लंबित रहने तक इलाके में शांति सौहार्द कायम रहना चाहिए।"

 

चीन की विस्तारवादी नीति विश्व के समक्ष छुपी नहीं है। चाहे वो 1959 में तिब्बत पर कब्जे का मामला हो, 1962 में जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जे का मामला हो, भारतीय प्रदेश अरुणाचल प्रदेश के इलाकों को अपना बनाने हेतु नक्शा जारी करने का मामला हो, वन वेल्ट वन रोड के माध्यम से विश्व पर अपना वर्चस्व स्थापित करने का मामला हो या दक्षिण चीन सागर पर अपना आधिपत्य जमाने का मामला हो। भारत चीन की पैंतरेबाजी को अच्छी तरह समझ रहा है। यही कारण है कि भारत भी चीन की सीमा से सटे इलाके में आधारभूत संरचना के निर्माण में तेजी ला रहा है। चाहे वो अरुणाचल का इलाका हो या लेह का। जैसे अरुणाचल के पश्चिमी सियांग जिले के यारज्ञाप नदी घाटी में मेचुका के एडवांस्ड लैंडिंग को अपग्रेड किया गया है और अरुणाचल के मेचुका एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड पर पहली बार वायुसेना के शक्तिशाली सी ग्लोबमास्टर विमान को 3 नवंबर 2016 पर पहली बार उतारा। यह स्थान चीन की सीमा से लगभग 29 किलोमीटर दूर है। इससे अरुणाचल प्रदेश की दुर्गम पहाड़ियों पर तुरंत एयरलिफ़्ट की क्षमता में वृद्धि के साथ साथ आपदा की स्थिति में सामग्री उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।

 

ज्ञातव्य है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित मेचुका 1962 के भारत चीन युद्ध के समय रणनीतिक ठिकानों से एक था। अरुणाचल और असम को जोड़ने वाले भूपेन हजारिका महासेतु का चीन के संदर्भ में सामरिक महत्व है। जम्मू और कश्मीर के लद्दाख को भी रेल मार्ग से जोड़ने का काम भारत ने तेज कर दिया है। इस रेल मार्ग के तहत हिमाचल के बिलासपुर से मनाली होते हुए जम्मू कश्मीर के लेह तक नई ब्राडगेज रेलवे लाइन बिछाने हेतु फाइनल लोकेशन सर्वे को मंजूरी दे दी गई है। लद्दाख के क्षेत्र में भी कनेक्टिविटी आवश्यक है जिससे कम समय में भारतीय सैनिकों की सीमावर्ती इलाकों में आसान पहुंच हो सके। चीनी सैनिकों ने 2 नवंबर 2016 को लद्दाख के लेह से लगभग 250 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व में स्थित डोमचोक में घुसकर मनरेगा योजना के तहत सिंचाई हेतु नहर खुदवाने का काम रुकवा दिया। ऐसे में भारतीय सीमावर्ती इलाकों तक आसान पहुंच बनाने में लेह का रेल मार्ग महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगा।

 

मानसरोवर यात्रा को ढाल बनाकर चीन ने भारत पर दबाव बनाने का प्रयास किया जिसे भारत ने अपनी रणनीतिक दृष्टि से विफल कर दिया। दरअसल भारत ने सिक्किम स्थित नाथुला दर्रे से कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर रोक लगा दी है। इस साल यह यात्रा उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे के माध्यम से संपन्न होगी। चीन की नीयत भारत को लेकर कभी भी अच्छी नहीं रही है। पहले 1962 में एकतरफा हमला, तो वर्तमान में पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत में अशांति फैलाने में वह सहयोग कर रहा है। यही वजह है कि मसूद अजहर जैसे कुख्यात आतंकी को संयुक्त राष्ट्र में वीटो कर आतंकवादी घोषित होने से बचाया और जब हाल में अमेरिका ने कश्मीर में आतंकवाद फैलाने वाले सैयद सलाउद्दीन को आतंकी घोषित किया तो चीन ने पाकिस्तान से सहानुभूति जताते हुए कहा कि पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ बेहतर तरीके से लड़ रहा है।

 

अतः भारत को प्रयास करना चाहिए कि डोकलाम क्षेत्र में किसी प्रकार का निर्माण कार्य न हो। वरना भारत और भूटान दोनों के हितों पर कुठाराघात होगा क्योंकि डोकलाम में सड़क निर्माण से पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) तक सामरिक बढ़त हासिल करने में चीन कामयाब हो जाएगा। ऐसे में पूर्वोत्तर के राज्यों और भूटान के समक्ष गंभीर खतरे उत्पन्न होंगे। ज्ञात हो कि चीन अपने दावे की पुष्टि करने हेतु कुतर्क करने से भी बाज नहीं आता है। जैसे स्वयं द्वारा विवादास्पद नक्शे को लेकर हाजिर हो जाना। यह ठीक उसी प्रकार का दावा है जैसे दक्षिण चीन सागर में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कार्य जारी है जिससे अपनी समुद्री जल वाले क्षेत्रों को और आगे तक दिखाया जा सके जिससे दक्षिण चीन सागर की वर्चस्व की लड़ाई लड़ने में और सुविधा हो। चूंकि क्षेत्रीय सागर पर संबंधित राष्ट्र का पूर्ण अधिकार होता है और सामान्यतः 12 नाटिकल मील तक होता है, ऐसे में दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों के माध्यम से चीन को अन्य तटीय देशों से बढ़त मिल जाएगी। इस प्रकार दक्षिण चीन सागर में भी अंतरराष्ट्रीय नियमों की अवहेलना करते हुए उसकी विस्तारवादी नीति जारी है।

 

ऐसे में आवश्यक है कि चीन की गतिविधियों पर डोकलाम में अंकुश लगाया जाए। रही बात भारत को इतिहास से सबक लेने कि तो शायद चीन भूल रहा है कि भारत ने लगातार सैन्य क्षेत्रों में अपने को सुदृढ़ किया है। ऐसे में चीन के लिए आसान नहीं होगा कि भारत पर 1962 की तरह एक तरफा कार्रवाई कर सके। बेहतर होगा चीन भूटानी जमीन पर अपनी कुदृष्टि न डालकर अपनी सीमा में सड़क बनाए और डोकलाम के माध्यम से हिमालय की गोद में बसे हुए भूटान को कमजोर समझकर उसकी संप्रभुता को चुनौती देना बंद करे।

 

अनीता वर्मा

(लेखिका अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार हैं।)

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