अन्तर्मन (कविता)

By डॉ. दीपा जोशी धवन | Feb 18, 2019

हिन्दी काव्य मंच 'हिन्दी काव्य संगम' की ओर से प्रेषित कविता 'अन्तर्मन' में कवयित्री डॉ. दीपा जोशी धवन ने अपने मन के उद्गार व्यक्त किये हैं।

 

अतुलित सम्पदा एवं साम्राज्य विराट

जन जन में लोकप्रिय यशस्वी सम्राट

यशोधरा भार्या सुशीला, पुत्र नवजात

तज कर सर्वस्व सुख स्वयं अकस्मात 

जब अंतर्मन की संवेदना पर मनन करते है

तब सिद्धार्थ रूपी देह से बुद्ध जन्म लेते हैं

 

केशव कान्हा गिरधारी बने द्वारिकाधीश

श्रद्धा भाव तीनों लोक नवा रहे हैं शीश

जन जन को मिलता प्रेम सिक्त आशीष

राजपाट में मगन रुक्मणि संग जगदीश

जब अंतर्मन गुहार सुन मित्र मोहन दौड़ते हैं

तब सुदामा से स्नेह की भाषा अश्रु बोलते हैं

 

गौरवशाली राजपूती परंपरा अभिमानी 

राजपाट धन वैभव से परिपूर्ण थी रानी

कृष्णभक्ति में लीन होने की उसने ठानी

विष के सेवन से भी नहीं हुई कोई हानि

जब अंतर्मन के दर्पण में दिव्य दर्शन होता है

तब गोपाल साँवरे से मीरा का संगम होता है

 

छल प्रपंच के कार्य में यह निरन्तर रोकता

माया मोह लिप्सा त्यागो है सदा कचोटता

अज्ञानी निद्रालीन यह तो प्रतिपल जागता

असत्य भले वाणी बोले ये है सत्य बांचता

जब छद्म आवरण भेद अंतर्मन जागृत होता है

तब रे मनुज, उस क्षण जीवन सार्थक होता है

 

डॉ. दीपा जोशी धवन

आगरा (उत्तर प्रदेश)

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