शिक्षक जब हमारे कान पकड़ते थे (कविता)

By प्रतिभा तिवारी | Sep 05, 2018

युवा कवयित्री प्रतिभा तिवारी की ओर से शिक्षक दिवस पर प्रेषित यह कविता उन दिनों को दर्शाती है जब छात्र और शिक्षक के बीच बड़ा सहज सा रिश्ता हुआ करता था लेकिन आज ऐसा नहीं दिखता।

 

शिक्षक और शिक्षा के सम्मान की बहस,

आज जाने कहां खो गयी है

 

शिक्षक का सम्मान और शिक्षा से समाज का उत्थान, 

शिक्षक का वो कान पकड़ना, 

आंखों से ही डराना,

बच्चों के घर शिकायत भेजना,

 

फिर दादी, दादा का स्कूल पहुंच जाना 

और फिर शिक्षक को ही डांट लगाना, 

फिर शिक्षक द्वारा हम सभी को समझाना, 

 

जाने कहां गईं ये छोटी छोटी प्यारी बातें 

जिनमें ना कोई मनमुटाव, ना गुस्सा, ना था ताव, 

किसी भी परिस्थिति में 

बस शिक्षक के सम्मान में होते थे

हमारे हर हाव भाव,

 

अब तो शिक्षक का विद्यार्थी को 

प्यार भरी डाँट भी

विवाद का विषय बन जाती है, 

शायद अब हम शिक्षा का महत्व 

और शिक्षक का दायित्व ही खोते जा रहे,

 

शिक्षक हमेशा से भगवान से ऊपर है 

और शिक्षा हमारा जीवन, 

शिक्षा से ही बना मन, शिक्षा से जन-जन, 

शिक्षित हो स्वतंत्र हो,

शिक्षा ही है सबसे बड़ा धन।

 

-प्रतिभा तिवारी

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