चरित्र की ज्वलंत वेदी पर (कविता)

By भ्रमिका कश्यप | Apr 13, 2018

हिन्दी काव्य संगम की ओर से प्रेषित कविता 'चरित्र की ज्वलंत वेदी पर' की रचयिता भ्रमिका कश्यप जी हैं। इस कविता में उन्होंने महिला के चरित्र पर अकसर उठने वालों सवालों का बेबाकी से जवाब दिया है।

मेरी 'पवित्रता' सिद्ध करने की, 

हो रही प्रतीक्षा है फिर से, 

चरित्र की ज्वलंत वेदी पर, 

होनी एक अग्निपरीक्षा है फिर से !

 

पर क्या सत्य ही मेरा अस्तित्व, 

इन सुलगते प्रश्नों का अधिकारी है? 

मेरे सम्मान से ज्यादा क्यों पलड़ा

संदेह का इतना भारी है? 

चलो पुनः मेरे द्वारा अग्नि का 

आवाह्न भी निश्चित तय होगा, 

निस्संदेह चलूँगी अनल पर मैं,

मुख पर न किञ्चित भय होगा।

 

पर यदि मैं अपवित्र तो ये बोलो, 

संसार पवित्र हुआ कैसे? 

मेरे ही गर्भ से जन्मी सकल सृष्टि 

शुद्ध कोई और चरित्र हुआ कैसे?

 

मेरी परीक्षा लेनी हो यदि तो

सृष्टि का हर कर्मकांड जला दो, 

हाँ, मेरी अग्निपरीक्षा से पहले, 

तुम समग्र यह ब्रह्मांड जला दो!

 

-भ्रमिका कश्यप

इटावा, उत्तर प्रदेश

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