श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर देखने को मिली बंद समाज की जटिलता

By विजय कुमार | Sep 06, 2018

कुछ साल पहले की बात है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व था। कई लोग इस दिन निर्जल उपवास रखते हैं। छोटे बच्चों को बालकृष्ण और राधा के रूप में सजाया जाता है। कई जगह बच्चे झांकी बनाते हैं। इससे उनमें छिपी प्रतिभा प्रकट होती है। कुछ संस्थाएं बच्चों को पुरस्कार भी देती हैं।

 

रात को मैं झांकियां देखने गया। कहीं श्रीकृष्ण सुदामा की झांकी बनी थी, तो कहीं श्रीकृष्ण और राधा की। प्रायः छोटी-बड़ी मूर्तियों को ही तरह-तरह से सजाया गया था। श्रीकृष्ण द्वारा कालिया नाग का मर्दन, वासुदेव द्वारा बालकृष्ण को गोकुल ले जाना, जेल में श्रीकृष्ण का जन्म.. आदि को देखकर बहुत मजा आया। 

 

पर एक जगह झांकी में कुछ अधूरापन था। वहां मंच पर राधा अकेली बैठी थी। मैंने एक बच्चे से पूछा, ‘‘क्यों तुम्हारे श्रीकृष्ण जी कहां चले गये ?’’

 

बच्चे ने बड़ी हताशा से कहा, ‘‘उसे रहमान अंकल ले गये।’’

 

- रहमान अंकल.. ?

 

- हां। उन्होंने कहा, हम मुसलमान हैं। हमारा बेटा कृष्ण नहीं बनेगा।

 

पूछने पर पता लगा कि उन बच्चों ने सलीम को कृष्ण बनाया था। सलीम के पिता श्री अब्दुल रहमान पिछले साल ही इस मोहल्ले में आये थे। उनके दो बच्चे हैं। तीन वर्ष का सलीम और पांच वर्ष की रेहाना। कुछ ही दिन में दोनों बच्चे मोहल्ले में घुलमिल गये। इस बार जन्माष्टमी की झांकी में बच्चों ने सलीम को बालकृष्ण बनाने का निर्णय लिया। रेहाना ने घर जाकर मां को बताया। एक बार तो उसकी मां चौंकी; पर फिर उसने बच्चों के उत्साह को भंग करना उचित नहीं समझा।

 

इस प्रकार सलीम बालकृष्ण बन गया। पीले कपड़े, सिर पर मुकुट और मोरपंख, हाथ में मुरली, पैरों में पाजेब। एक बच्चे ने उसका फोटो फेसबुक पर डाल दिया। रहमान जी कहीं बाहर गये थे। रात में आने पर जब उन्हें यह पता लगा, तो उन्होंने पत्नी को खूब डांटा और फिर झांकी में से सलीम को उठाकर ले गये। बस, बच्चे इसी से उदास थे।

 

कुछ दिन बाद रहमान जी से भेंट हुई, तो मैंने पूछा- रहमान जी, आपने सलीम को झांकी से क्यों उठा लिया ?

 

- हम मुसलमान हैं। हमारा बच्चा कृष्ण नहीं बन सकता।

 

- लेकिन फिल्मों में सलमान, आमिर, शाहरुख आदि हिन्दू देवी-देवताओं का अभिनय करते हैं। इससे वे हिन्दू तो नहीं हो जाते ?  

 

- वे बड़े लोग हैं। उन पर हाथ डालने में मुल्ला-मौलवी भी डरते हैं; पर हम छोटे लोग हैं। अगर सलीम के कृष्ण बनने की बात फैल जाती, तो हमारा जीना कठिन हो जाता।

 

- लेकिन ये तो बच्चों द्वारा बनायी गयी झांकी थी ?

 

- आपकी बात ठीक है; पर हम एक बंद समाज में रहते हैं। कई जगह ईद वाले दिन हिन्दू भाई शर्बत की छबीलें लगाते हैं। उन्हें कोई कुछ नहीं कहता; पर कांवड़ियों का स्वागत करने पर हमें काफिर कहा जाता है।

- पर इस कुरीति को दूर करने की आपकी इच्छा नहीं होती ?

 

- होती तो है; पर जिस समाज में हम रह रहे हैं, उससे लड़ नहीं सकते। हमें यहीं जीना और मरना है। दूसरों से लड़ना आसान है, अपनों से नहीं।

 

मैंने सोचा कि काश, मुस्लिम नेता अंतर्मुखी होकर अपनी शक्ति अपने समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य और जागरूकता की वृद्धि में लगाएं, तो उनका भी भला होगा और देश का भी।

 

पर यक्ष प्रश्न यह है कि क्या कभी ऐसा होगा ?  

 

-विजय कुमार

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