होम और कार लोन तो होगा सस्ता लेकिन क्या सुधरेगी भारतीय अर्थव्यवस्था ?

By संतोष पाठक | Jun 06, 2019

नरेंद्र मोदी के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने पहली बार आज रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कटौती करने का ऐलान किया है। आरबीआई ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की घोषणा की है। घोषणा के मुताबिक रेपो रेट घटकर अब 5.75 प्रतिशत और और रिवर्स रेपो रेट घटकर 5.5 प्रतिशत हो गया है। देश की अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए खासतौर से जीडीपी की दर को देखते हुए आरबीआई से इसी तरह के फैसले की उम्मीद की जा रही थी। रेपो रेट में फरवरी के बाद तीसरी बार कटौती की गई है।

 

सस्ता होगा होम और कार लोन ?

 

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कटौती करने के बाद अब बैंकों पर लोन की दरें कम करने का दबाव बढ़ गया है। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में बैंक होम लोन और कार लोन की दरों में कमी का ऐलान कर सकते हैं। हालांकि बैंकों के अब तक के रवैये को लेकर आरबीआई बहुत नाराज भी हैं क्योंकि रिजर्व बैंक इससे पहले पिछले चार महीने में दो बार रेपो रेट को घटा चुका है। फरवरी के बाद से 2 बार में कुल मिलाकर आरबीआई 0.5 फीसदी तक की कटौती कर चुका है लेकिन बैंकों ने इसका पूरा लाभ आम जनता तक नहीं पहुंचाया। आरबीआई ने तो 0.5 फीसदी की राहत दी लेकिन बैंकों ने लोन की दरों में औसतन 0.05 फीसदी की ही कटौती की। ऐसे में रिजर्व बैंक के तीसरी बार रेपो रेट घटाने से उत्साहित आम लोगों की खुशी बैंकों के रवैये पर ही निर्भर नजर आ रही है क्योंकि तीनों बार की राहत को मिला दिया जाए तो रिजर्व बैंक अब तक 0.75 फीसदी की कटौती रेपो रेट में कर चुका है। अगर बैंक इस आधार पर लोन की दरों में कटौती करते हैं तो ईएमआई में 5 हजार से लेकर 20 हजार रुपये तक की सालाना बचत हो सकती है।

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अर्थव्यवस्था को है टॉनिक की जरूरत

 

देश की अर्थव्यवस्था सुस्ती के चिंताजनक दौर से गुजर रही है। 2018-2019 की अंतिम तिमाही में जीडीपी के 5.8 फीसदी के स्तर पर पहुंचने के मद्देनजर आरबीआई से इसी तरह के कदम उठाने की उम्मीद की जा रही थी। 2018-19 की चौथी तिमाही में आर्थिक विकास दर पांच साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है जिसके मद्देनजर आरबीआई पर लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था को टॉनिक देने का दबाव बढ़ता जा रहा था।  बैंकिंग सेक्टर में रुपये के प्रवाह को या यूं कहें कि तरलता बढ़ाए बिना अर्थव्यवस्था की सुस्ती को दूर नहीं किया जा सकता है। देश के सीआईआई, फिक्की और एसोचैम जैसे उद्योगपतियों के संगठन की तरफ से भी लगातार ब्याज दरों में कटौती की मांग की जा रही थी।


सुधरेगी भारतीय अर्थव्यवस्था ?

 

आरबीआई के इस कदम से भारतीय अर्थव्यवस्था में रुपये की तरलता बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है बशर्ते देश के बैंक आरबीआई की भावना के अनुसार इस फायदे को अपने उपभोक्ताओं तक पहुंचाए। हालांकि खुद आरबीआई ने रेपो रेट में कटौती करने की घोषणा करते समय 2019-20 के वित्तीय वर्ष के लिए जीडीपी विकास अनुमान में भी कटौती कर दी है। आरबीआई ने विकास के पहले के 7.2 फीसदी के अनुमान को घटाकर 7 फीसदी कर दिया है।

 

दूर होगी सुस्ती, बढ़ेगी मांग

 

माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक के इस फैसले से बैंकिंग सेक्टर में तरलता बढ़ेगी और अगर बैंकों ने रिजर्व बैंक के फैसले का पूरा लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाने का फैसला कर लिया तो फिर मांग में तेजी आएगी। लोन की दरें कम हुईं तो घर, यात्री कारों और दोपहिया वाहनों की मांग तेजी से बढ़ेगी। इसका लाभ टिकाऊ और गैर टिकाऊ सामान वाले अन्य क्षेत्रों में भी होगा। जितनी तेजी से मांग बढ़ेगी, उतनी ही तेजी से भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर होगी और रफ्तार भी बढ़ेगी।

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दुनिया को है भारत पर भरोसा

 

इतने कठिन हालात में भी दुनिया भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा जता रही है। विश्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में सकारात्मक रिपोर्ट देते हुए कहा है कि अगले तीन साल तक भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7.5 फीसदी रह सकती है। विश्व बैंक के मुताबिक महंगाई रिजर्व बैंक के लक्ष्य से नीचे है जिससे मौद्रिक नीति आसान रहेगी। ऐसे में अगर लोन का फ्लो बढ़ता रहा तो निश्चित तौर पर निजी उपभोग एवं निवेश को फायदा होगा। हालांकि यह सब तभी होगा जब देश के बैंक भारतीय रिजर्व बैंक की भावना को समझेंगे और देश की अर्थव्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर एवं आम जनता और उद्योगपतियों की मांगों को मानते हुए ब्याज दरों में कटौती करने का फैसला जल्द से जल्द करेंगे।

 

-संतोष पाठक

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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