Prabhasakshi Exclusive: AUKUS Partnership के जरिये चीन को कैसे घेरने जा रहे हैं अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन?

By नीरज कुमार दुबे | Mar 16, 2023

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) डीएस त्रिपाठी से पूछा कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने परमाणु संचालित पनडुब्बी समझौते की घोषणा की है उस पर चीन ने क्यों कड़ी प्रतिक्रिया दी है। हमने यह भी जानना चाहा कि इस समझौते का भारत के लिए क्या महत्व है और इससे चीन को कैसे घेरा जायेगा?


इसके जवाब में उन्होंने कहा कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने परमाणु संचालित पनडुब्बी समझौते की घोषणा की है, जिसका मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रवैये का मुकाबला करना है। समझौते के तहत, ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका से कम से कम तीन परमाणु संचालित पनडुब्बियां प्राप्त होंगी। दरअसल तीनों देशों का गठबंधन ऑकस 2021 में अस्तित्व में आया और इसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल है। ऑकस का मकसद हिंद-प्रशांत में चीन के आक्रमक रवैया से निपटना है। पनडुब्बी करार इन तीनों देशों के बीच सुरक्षा समझौते का एक भाग है। उन्होंने कहा कि जहां तक इस करार की बात है तो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने अमेरिका के सैन डिएगो में एक शिखर सम्मेलन के बाद यह घोषणा की। यह कदम हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ‘‘स्वतंत्र व मुक्त’’ रखने के लिए उठाया गया है। उन्होंने बताया कि अल्बनीज और सुनक के साथ सैन डिएगो में बाइडन ने कहा, ‘‘2030 के दशक की शुरुआत में कांग्रेस के समर्थन और अनुमोदन के साथ अमेरिका तीन वर्जीनिया-श्रेणी की पनडुब्बियों को ऑस्ट्रेलिया को बेचेगा, अगर जरूरत हुई तो दो और पनडुब्बियां बेचेगा...।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह अत्याधुनिक पारंपरिक रूप से सशस्त्र परमाणु-संचालित पनडुब्बी... ब्रिटेन की पनडुब्बी प्रौद्योगिकी व डिजाइन को अमेरिकी प्रौद्योगिकी से जोड़ती है।’’ उन्होंने कहा कि बाइडन ने कहा कि ‘एसएसएन-एयूकेयूएस’ एक अत्याधुनिक मंच होगा, जिसे तीन देशों से पनडुब्बी प्रौद्योगिकी का सर्वोत्तम लाभ उठाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।


ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) डीएस त्रिपाठी ने कहा कि ‘एसएसएन-एयूकेयूएस’ ब्रिटेन की अगली पीढ़ी के एसएसएन डिजाइन पर आधारित होगा, जिसमें अत्याधुनिक अमेरिकी पनडुब्बी प्रौद्योगिकियों को शामिल किया गया है और इसे ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन दोनों द्वारा बनाया और तैनात किया जाएगा। एसएसएन से तात्पर्य परमाणु संचालित पनडुब्बी है और एयूकेयूएस (ऑकस) ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच हिंद प्रशांत के लिए किए सुरक्षा समझौते को कहा जाता है। उन्होंने बताया कि समझौते के ऐलान के समय बाइडन ने कहा, ‘‘ऑस्ट्रेलिया के कर्मचारी अमेरिका और ब्रिटेन के कर्मचारियों के साथ नौकाओं पर और हमारे स्कूलों तथा शिपयार्ड में अड्डों पर आएंगे। हम ऑस्ट्रेलिया में अपने बंदरगाह दौरे भी बढ़ाना शुरू करेंगे। अभी जब हम यहां बात कर रहें तब भी एक परमाणु-संचालित पनडुब्बी यूएसएस एशविले पर्थ में एक बंदरगाह पर पहुंच रही है।’’ 

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उन्होंने बताया कि अल्बनीज ने भी तीन देशों के बीच संबंधों में इसे एक नया अध्याय बताते हुए कहा कि यह एक ऐसी दोस्ती है जो उनके साझा मूल्यों, लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता तथा शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य के समान दृष्टिकोण पर आधारित है। उन्होंने कहा कि ऑकस समझौता ऑस्ट्रेलिया की रक्षा क्षमता में सबसे बड़ा एकल निवेश है, यह क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय सुरक्षा तथा स्थिरता को मजबूत करता है। कौशल, रोजगार और बुनियादी ढांचे में रिकॉर्ड निवेश के साथ ऑस्ट्रेलिया को बेहतर रक्षा क्षमता प्रदान करता है।


उन्होंने बताया कि इस समझौते के ऐलान के समय ऋषि सुनक ने कहा, ‘‘60 साल पहले, यहां सैन डिएगो में राष्ट्रपति केनेडी ने एक उच्च उद्देश्य ‘स्वतंत्रता, शांति और सुरक्षा का संरक्षण’ की बात की। आज हम फिर उसी मकसद के लिए एकसाथ खड़े हैं। यह स्वीकार करते हुए कि इसे पूरा करने के लिए, हमें नयी तरह की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए तरह के रिश्ते बनाने होंगे जैसा कि हम हमेशा से करते आए हैं।’’ 


उन्होंने कहा कि दूसरी ओर, चीन ने परमाणु संचालित पनडुब्बी करार की निंदा करते हुए कहा है कि यह समझौता परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का उल्लंघन है और तीनों देश ‘‘खतरनाक और गलत रास्ते पर जा रहे हैं।’’ समझौते की घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ऑकस संधि के तहत परमाणु पनडुब्बियों और अन्य अत्याधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी पर सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए तीन देशों के प्रयास एक ‘‘शीत युद्ध की मानसिकता’’ थी, जो हथियारों की होड़ को बढ़ावा देगी और क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता को नुकसान पहुंचाएगी। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि चीन इस समझौते का विरोध करता रहेगा।

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