दवा कंपनियों के पास है कितनी ताकत, किसी मिलेगी जिंदगी और किसके हिस्से आएगी मौत सबकुछ यहीं से तय होता है

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 10, 2022

आपको क्या लगता है कि आप जिएं या मरें, यह कौन तय करता है। आप में से अधिकांश लोगों का जवाब नियती पर आकर अटक जाएगा। लेकिन अब महामारी की दुनिया में वैक्सीन और दवा बनाने वाली कंपनियों का समूह तय करता है कि कौन जिएगा है या कौन मरेगा। प्रमुख दवा निर्माताओं और आपूर्तिकर्ताओं के पास कीमतें निर्धारित करने, नियामकों को प्रभावित करने की शक्ति है। बिग फार्मा एक शब्द है जिसका इस्तेमाल वैश्विक दवा उद्योग को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। इसमें व्यापार समूह, फार्मास्युटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरर्स ऑफ अमेरिका भी शामिल है। बड़ी फार्मा और मेडिकल डिवाइस कंपनियां हर साल अरबों डॉलर कमाती हैं। 

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डेराप्रिम को मलेरिया से लड़ाई में एक महत्वपूर्ण हथियार माना जाता है। एक वक्त था जब इसकी कीमत साढ़े तेरह डॉलर के करीब हुआ करती थी। जिसके बाद मार्टिन शकरेली ने इसमें अपना कदम रखा और डेराप्रिम के लिए लाइसेंस प्राप्त किए। जिसके बाद इस दवा की कीमतों में 5 हजार प्रतिशत का इजाफा हुआ। साढ़े तेरह डॉलर वाली दवा 750 डॉलर में बिकने लगी। मरीज से लेकर आम लोग सभी ने इसका विरोध किया। लेकिन शकरेली इन बातों से बेपरवाह दिखे। हालांकि बाद में को निवेशकों को धोखा देने लिए, दवा कंपनी के स्टॉक मूल्य को बढ़ाने की कोशिश सात साल की जेल की सजा हुई । दवा के दाम बढ़ाने पर उनका कहना था कि हां, मैंने अधिक लाभ कमाने के लिए कीमत अधिक बढ़ा दी।

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शकरेली ऐसे सिस्टम का चेहरा हैं जो मुनाफें को लोगों की जिंदगी से ऊपर रखते हैं। एक ऐसा सिस्टम जो बीमारी से बस पैसा बनाना जानता है।  ओपिओइड ऐसे पदार्थ हैं जो मॉर्फिन जैसे प्रभाव पैदा करने के लिए ओपिओइड रिसेप्टर्स पर कार्य करते हैं। मुख्य रूप से दर्द से राहत के लिए उपयोग किए जाते हैं। यह आपको हिरोइन की तरह ही प्रभाव डालता है। दर्द की भावना को रोक देता है। पहले ये गहन डॉक्टरी सलाह पर भी ली जाती थी। लेकिन 1990 के दौर में इसमें बिग फार्मा की एंट्री हुई। उन्होंने कहा कि ओपिओइड लत नहीं लगती। बिग फार्मा के मेडिकल रिप्रजंटेटिव पूरे अमेरिका में ओपिओइड को डॉक्टरों द्वारा परामर्शित करने की योजना में लग गए। इस खेल का सबसे बड़ा मास्टर प्रड्यू फार्मा रहा। जिसके ओपिओइड दवा का नाम ओक्सीकांटेंन । 1997 में 67000 पर्चाों में इस दवा को लिखा गया और 2002 तक ये आंकड़ा 6.2 मिलयन तक आ पहुंचा। 

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