रोबोट अगर जनप्रतिनिधि बन गये तो? (व्यंग्य)

By दीपक गिरकर | Dec 19, 2017

वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला कृत्रिम बुद्धि वाला राजनीतिज्ञ विकसित किया है उसे 2020 में न्यूजीलैंड में होने वाले आम चुनाव में उम्मीदवार बनाया जायेगा। इस आभासी राजनीतिज्ञ का नाम सैम (एस ए एम) रखा गया है। रोबोट की विशेषता है कि वह कभी भी विवाद में नहीं पड़ता है और कभी भी अपने बयान नहीं बदलता है। इसलिए आजकल लोगों का विश्वास रोबोट पर बढ़ रहा है। आने वाले समय में संसद और विधानसभाओं में रोबोट ही रोबोट दिखेंगे। आजकल आटोमेशन और डिजिटलीकरण पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

संसद और विधानसभाओं में रोबोट्स के होने से संसद और विधानसभाओं के सारे सत्रों में व्यवस्थित काम-काज होंगे और समय पर होंगे। अपने काम न्यायालयों के पाले में नहीं ढकेलेंगे। संसद और विधानसभाओं में शालीन वातावरण रहेगा। रोबोट्स संसद और विधानसभाओं में बंदरों की भांति उछल-कूद भी नहीं करेंगे क्योंकि बंदर उनके पूर्वज नहीं हैं।

 

जब जनप्रतिनिधि रोबोट होंगे तो यह तो तय है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका में भी रोबोट्स ही रहेंगे। तब क्या वास्तविक आंकड़ों और सरकारी आंकड़ों में अंतर नहीं रहेगा? क्या आभासी लोगों द्वारा किया गया विकास आभासी नहीं होगा वास्तविक विकास होगा? लोग कभी भी घोटाले, भ्रष्टाचार एवं कालाबाजारी नहीं करेंगे? क्या सरकार को जांच आयोग भी नहीं बिठाने पड़ेंगे? क्या सीबीआई का काम कम हो जायेगा? क्या रोबोट सभी धार्मिक स्थलों पर दर्शन के लिए जायेंगे? ऐसा कुछ भी नहीं होगा क्योंकि रोबोट को संचालित करने वाला रिमोट रोबोट के हाथ में नहीं होगा। रिमोट तो उन हाथों में ही रहेगा जिन लोगों के हाथों में आज तक रहा है ये वही लोग है जो ऊंट पर बैठकर बकरियां चराते हैं।

 

वैसे हमारे देश की संसद और विधानसभाओं में आजादी के बाद से ही कई जनप्रतिनिधियों ने रोबोट की ही भूमिका निभाई है। जनप्रतिनिधियों की तो मजबूरी होती है क्योंकि वे तो अपनी पार्टी के पदाधिकारियों के रिमोट से संचालित होते हैं लेकिन दुख तब होता है जब देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे हुए राजनीतिज्ञ भी रोबोट की तरह देशी या विदेशी रिमोट से संचालित होते हैं। वैसे कार्यपालिका और न्यायपालिका के काफी महानुभावों को तो रिमोट से संचालित होते हुए देखा है।

 

वैसे रोबोट भी काफी परेशान रहते हैं। रोबोट का दर्द किसी को दिखता नहीं है। रोबोट केवल एक ही रिमोट से संचालित हो तो उसे ज्यादा दर्द नहीं होता है लेकिन यदि वह एक से अधिक रिमोट से संचालित होता हो तो उसे ज्यादा दर्द होता है। वैसे रोबोट कितनी भी नैतागिरी सीख जाएं ये राजनीतिज्ञ नहीं बन सकते। रोबोट राजनीतिज्ञों के हाथों की कठपुतली ही बने रहेंगे। रोबोट कितना भी ज्ञान अर्जित कर लें वे रहेंगे रोबोट के रोबोट।

 

- दीपक गिरकर

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