कवि ने इस कविता के माध्यम से बताया है कि मनुष्य को जिंदगी के सफर में चलते ही रहना है। जीवन में जो भी सुख या दुःख आये उस सब को सहते हुए आगे बढ़ते रहना है। कवि ने बताया है कि जीवन में कुछ कष्ट आता है तो उसे भगवान पर छोड़ देना चाहिए। भगवान ही उस कष्ट को दूर कर देगा लेकिन हमें सफर में रूकना नहीं है।
जिंदगी घिरी, शैलाभों और चट्टानों से।
ऐ जिंदगी फिर डरना क्या, आँधियों और तूफानों से।।
विचार शून्य हो, भाव भक्ति का हो।
तो भगवान् हम सफर है, भक्त के सफर में।।
चलाचल-चलाचल जिंदगी के सफर में,
हम सफर है तो सफर से क्या डरना।।
खंजर की क्या मजाल कि तेरे अरमानो को कुचल दे।
अरमान ही क्या करे कि तू खुद खंजर बन बैठा।
चलाचल-चलाचल जिंदगी के सफर में,
हम सफर है तो सफर से क्या डरना।।
ध्यान लगा कर के तो देख, तब तू नहीं।
तेरे दर पे, भगवान् होंगे।।
कर कुछ ऐसा कि भगवान् तेरे दर पे हो हमेशा।
भाव भक्ति का कर, ध्यान प्रभु का लगा।
कट जाएगा सफर, हमसफ़र के सहारे।।
चलाचल-चलाचल जिंदगी के सफर में,
हम सफर है तो सफर से क्या डरना।।
- डॉ. शंकर सुवन सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार, विचारक एवं कवि
असिस्टेंट प्रोफेसर
शुएट्स, नैनी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)