इस बेस्वाद दुनिया में मैंने भी अपनी जगह बना ली है (कविता)

By गुलज़ारियत | Mar 03, 2018

मुंबई के शायर समूह गुलज़ारियत की ओर से लिखी गयी यह नज़्म पाठकों को पसंद आयेगी। इसमें बड़े ही अलग अंदाज में इश्क से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर नजर डाली गयी है।

 

नज्म

 

मेरी नज़्म उड़ना चाहती है

इन्हें कुछ आज़ादी चाहिए

 

पंख लगा कर हौसलों के ये

दुनिया भर में फिरना चाहती है

 

ज़रा सा चाँद और थोड़े से तुम

कहती है इस सफर में इतना काफी है

 

ज़रूरत से ज़्यादा रख लो

तो मुसाफिर बीच राह थक जाता है

फिर मैं क्या करूँगी "ज़्यादा" का

तुम ही रख लो इसे. . . मुझ पर हंस दी।

 

उम्मीदों के वार का असर जानती है, मुझे सबसे ज़्यादा तो यही समझती है।

इस नन्हीं सी नज़्म ने जब से मेरी उंगली थामी है

इस बेस्वाद दुनिया में मैंने भी अपनी जगह बना ली है।

 

- गुलज़ारियत

 

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