Ustad Bismillah Khan Birth Anniversary: देश के आजाद होने पर बिस्मिल्लाह खान ने लाल किले पर किया था परफॉर्म, धुन से लोगों को बना देते थे दीवाना

By अनन्या मिश्रा | Mar 21, 2024

आज यानी की 21 मार्च को भारतीय शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान की बर्थ एनिवर्सरी है। बिस्मिल्लाह खान का बिहार के शाहाबाद में 21 मार्च 1916 को बिस्मिल्लाह खान का जन्म हुआ था। इनका असली नाम कमरूद्दीन खान था और इन्हें उस्ताद नाम से भी पुकारा जाता था। बिस्मिल्लाह खान के परिवार का संगीत से गहरा संबंध था। इनके पिता पैगम्बर बख्श खान एक कोर्ट म्यूजिशियन थे। वह कोर्ट ऑफ महाराजा केशव प्रसाद डुमरांव में काम किया करते थे। इनके परिवार में अधिकतर लोग शहनाई वादक थे। बिस्मिल्लाह के दादा भी शहनाई बजाया करते थे।


इन देशों में किया परफॉर्म

महज 6 साल की उम्र में वह अपने मामा अली बख्श के साथ शहनाई की शिक्षा के लिए वाराणसी चले गए। बिस्मिल्लाह खान ने स्टेज शो से अपने कॅरियर की शुरूआत की थी। उनको पहला ब्रेक ऑल इंडिया म्यूजिक कॉन्फ्रेंस के दौरान साल 1937 में मिला। इस परफॉर्मेंस के बाद उन्होंने खूब लाइमलाइट और प्रशंसा बटोरी थी। इसके बाद बिस्मिल्लाह खान ने कई देशों में परफॉर्मेंस दी थी। उन्होंने यूएसए, कनाडा, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, वेस्ट अफ्रीका जैसे देशों में शहनाई वादन किया। 


बिस्मिल्लाह खान शहनाई की धुन से लोगों को अपना दीवाना बना लेते थे। उन्होंने अपने बेहद शानदार कॅरियर के दौरान कई प्रमुख कार्यक्रमों में हिस्सा लिया था। इसमें कान कला महोत्सव, मॉन्ट्रियल में विश्व प्रदर्शनी और ओसाका व्यापार का मेला शामिल है।

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लाल किला पर किया था परफॉर्मे

बिस्मिल्लाह खान एक भारतीय संगीतकार थे। साथ ही उस्ताद को शहनाई को लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है। वह इतनी शिद्दत से शहनाई बजाया करते थे कि वह देश के शास्त्रीय संगीत कलाकार बन गए थे। हांलाकि वह मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखते थे, लेकिन इसके बाद भी वह न सिर्फ मुस्लिम बल्कि हिंदू सेरेमनी में भी परफॉर्म किया करते थे। जिसके कारण उनको एक धार्मिक प्रतीक भी माना जाता था। 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी पर बिस्मिल्लाह खान ने लाल किले पर परफॉर्म किया था।


बाला साहब भी थे मुरीद

प्राप्त जानकारी के अनुसार, राजनेता बाला साहब ठाकरे को भी बिस्मिल्लाह खान ने अपना मुरीद बना लिया था। जब उनकी पहली बार बाला साहब ठाकरे से मुलाकात हुए, तो उन्होंने उस्ताद से शहनाई की धुन में बधैया सुनने की इच्छा जाहिर की। जिसके बाद बिस्मिल्लाह खान ने करीब 40 मिनट तक शहनाई बजाई थी। शहनाई की धुन सुनने के बाद बाला साहब भी उनके मुरीद बन गए थे।


मृत्यु

बिस्मिल्लाह खान का जीवन बहुत सादा था और वह एक साधारण व्यक्ति थे। बताया जाता है कि गंगा घाट पर वह शहनाई का रियाज किया करते थे और गंगा की लहरों के साथ तान मिलाकर शहनाई बजाते थे। वह इंडिया गेट पर परफॉर्म कर शहीदों को श्रद्धांजलि देना चाहते थे। वहीं 21 अगस्त 2006 को बिस्मिल्लाह खान का कार्डियक अरेस्ट के चलते निधन हो गया।

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