कोरोना से लड़ाई के बीच ही देश के समक्ष आ खड़ी हुईं हैं अनेकों चुनौतियाँ

By ललित गर्ग | Jun 16, 2020

निश्चय ही इस समय भारत गंभीर खतरों से घिरा हुआ है, कोरोना महाव्याधि से जूझते हुए हमारे खतरों की धार तेज होती जा रही है। क्या कारण है कि जन्मभूमि को जननी समझने वाला भारतवासी आज अपनी समस्याओं से सामना करते हुए उन्हें निस्तेज करने की बजाय उनकी उपेक्षा कर रहे हैं। कोरोना महामारी, राष्ट्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था ऐसी ज्वलंत समस्याएं हैं, जिनका सामना संकीर्णता से ऊपर उठकर राष्ट्रीयता की भावना से करने की अपेक्षा है। क्या कारण है कि शस्य श्यामला भारत भूमि पर आज अशांति, आतंक, भूख और कोरोना का ताण्डव हो रहा है? कारण है- शासन, सत्ता, संग्रह और पद के मद में चूर कुछ ताकतें, जिन्होंने जनतंत्र द्वारा प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग किया और जनतंत्र की रीढ़ को तोड़ दिया है।

 

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कोरोना महामारी, सीमा सुरक्षा और अर्थव्यवस्था से उबरने के लिए राष्ट्रीय सहमति की तत्काल जरूरत है, इसके लिए समूचे विपक्ष व सत्तारूढ़ दल को एक मेज पर बैठ कर सर्वसम्मति से देश हित में हल ढूंढ़ना चाहिए। बड़ा संकट राष्ट्रीय सुरक्षा का है और दूसरा अर्थव्यवस्था का जबकि तीसरा तो कोराना वायरस का चल ही रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के मुद्दे भी ऐसे हैं जो दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर उसी प्रकार देखे जायेंगे जिस प्रकार कोरोना का संकट, परन्तु चीन का विषय सबसे अधिक गंभीर है क्योंकि चीन खुल्लमखुल्ला भारत-चीन समझौते का उल्लंघन कर रहा है, रह-रह कर अपना रंग दिखा रहा है। चीन को करारा जवाब सीमाओं पर ही नहीं देश के भीतर भी देना है, देश की रगों में समाये चीनी सामान का बहिष्कार करके हर व्यक्ति को चीन के मनसूबों को नाकाम करना है। सीमाओं पर तनाव बरकरार रखने के साथ-साथ चीन ने पाकिस्तान एवं नेपाल आदि पड़ोसी देशों को हमारे खिलाफ खड़ा किया है। उसकी तरफ से तो तैयारी और भी खतरनाक रूप में होती रही है कि वह अपनी कुछ कम्पनियों को भारत में स्थापित करके पुनः एक उपनिवेश बनाए जाने की कोशिशों के रूप में तेजी के साथ सर उठाता रहा है, लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार की सर्तकता एवं सावधानी से उसके ये षड़यंत्र साकार नहीं हो सके। नेपाल से भारत के विशिष्ट दोस्ताना सम्बन्ध रहे हैं जिन्हें अतुलनीय एवं प्रगाढ़ कहा जा सकता है। चीन के साथ उसे जोड़ना अनावश्यक रूप से चीन का पलड़ा भारी करना होगा। अतः इस मुद्दे पर भी राष्ट्रीय सहमति की आवश्यकता है कि नेपाल के साथ रिश्तों की गर्मजोशी कैसे बदस्तूर जारी रहे और उसे अपनी गलती सुधारने का मौका किस रूप में दिया जाये। इसके लिये सकारात्मक वातावरण की पहल में समूचे विपक्ष को सहयोग करना चाहिए।


कोरोना महासंकट के कारण भारत की अर्थ-व्यवस्था रसातल में चली गयी है। कोरोना वायरस के भारत में पहुंचने से पहले ही देश की अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक थी। कभी दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था की विकास दर अब छह सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी है। साल 2019 में भारत में बेरोजगारी 45 सालों के सबसे ज्यादा थी और पिछले साल के अंत में देश के आठ प्रमुख क्षेत्रों से औद्योगिक उत्पादन लगभग ठप्प पड़ा है। यह बीते 14 वर्षों में उत्पाद एवं बेरोजगारी की सबसे खराब स्थिति है। भारत की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब हालत में थी और कोरोना ने तो उसकी कमर ही तोड़ दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अब कोरोना वायरस के प्रभाव की वजह से जहां एक ओर लोगों के स्वास्थ्य पर संकट छाया है तो दूसरी ओर पहले से कमजोर अर्थव्यवस्था को और बड़े झटके मिल रहे हैं। यह स्वीकार करना ही होगा कि भारत की अर्थव्यवस्था का पैमाना केवल शेयर बाजार का सूचकांक नहीं हो सकता बल्कि इसका अन्दाजा शहरों के बाजारों और फैक्टरियों की हालत और आम जनता की आर्थिक गतिविधियों एवं तथ्यों को देख कर ही लगाया जा सकता है। जब उत्पादन से लेकर व्यापार-वाणिज्य और वित्त के मोर्चे तक तरफ गिरावट ही गिरावट है और मध्यम व लघु उत्पादन इकाइयां माल की मांग न होने की वजह से बैंक ऋण लेने के स्थान पर अपनी फैक्टरियां ही बन्द करने या कर्मचारियों की छंटनी करके खर्चे कम करने की राह पर चल रही हैं तो भविष्य हमारे सामने भयानक चेहरा लेकर खड़ा हो रहा है। जिसे हम अनदेखा नहीं कर सकते।

 

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जब बैंकों से कर्ज उठाने वाले ही गायब हो रहे हैं तो हम किस बूते पर औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि की कल्पना कर सकते हैं। जब लॉकडाउन ने 12 करोड़ लोगों को बेरोजगार बना डाला है तो संगठित क्षेत्र से लेकर असंगठित क्षेत्र में कौन-सी जादुई छड़ी निवेश को बढ़ावा दे सकती है। विघटन की कगार पर खड़े राष्ट्र को बचाने के लिए राजनीतिज्ञों को अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति को त्यागना होगा। संकट गंभीर है इसका हल राष्ट्रीय स्तर पर ढूंढ़ा जाना चाहिए।


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन गंभीर संकटों से भारत की सुरक्षा के लिये 20 लाख करोड़ रुपए का एक पैकेज, 2020 में देश की विकास यात्रा को, आत्मनिर्भर भारत अभियान को एक नई गति देने के लिये घोषित किया है। यह आर्थिक पैकेज आत्मनिर्भर अभियान की अहम कड़ी के रूप में कार्य करेगा। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिए, इस पैकेज में लैंड, लेबर, लिक्विडिटी और लॉ, सभी पर बल दिया गया है। ये आर्थिक पैकेज हमारे कुटीर उद्योग, गृह उद्योग, हमारे लघु-मंझोल उद्योग, हमारे एमएसएमई के लिए है, जो करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन है, जो आत्मनिर्भर भारत के हमारे संकल्प का मजबूत आधार हैं। ये आर्थिक पैकेज देश के उस श्रमिक के लिए है, देश के उस किसान के लिए है जो हर स्थिति, हर मौसम में देशवासियों के लिए दिन-रात परिश्रम कर रहा है। यह आर्थिक पैकेज भारतीय उद्योग जगत के लिए है जो भारत के आर्थिक सामर्थ्य को बुलंदी देने के लिए संकल्पित है। आज से हर भारतवासी को अपने लोकल के लिए वोकल बनना ही होगा, न सिर्फ लोकल प्रॉडक्ट खरीदने हैं, बल्कि उनका गर्व से प्रचार भी करना है। तभी चीन को भी माकूल जवाब दे पायेंगे और तभी अर्थ-व्यवस्था की मंद गति को भी रोक पाएंगे। आज हमारी व्यवस्था चाहे राजनीति की हो, सामाजिक हो, पारिवारिक हो, धार्मिक हो, औद्योगिक हो, शैक्षणिक हो, चरमरा गई है, संकटग्रस्त हो गई है। उसमें दुराग्रही इतना तेज चलते हैं कि गांधी बहुत पीछे रह जाता है। जो सद्प्रयास किए जा रहे हैं, वे निष्फल हो रहे हैं। विपक्षी दलों ने, प्रगतिशील कदम उठाने वालों ने और समाज सुधारकों ने अगर व्यवस्था सुधारने में मुक्त मन से सहयोग नहीं दिया तो इन संकट के घने बादलों की छंटनी होनी मुश्किल है।


-ललित गर्ग

लेखक, पत्रकार, स्तंभकार


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