By नीरज कुमार दुबे | Dec 18, 2025
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ओमान की राजधानी मस्कट में उस समय ऐतिहासिक सम्मान मिला, जब सुल्तान हैथम बिन तारिक ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ ओमान’ से अलंकृत किया। यह केवल एक सम्मान नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक हैसियत पर मुहर थी। हम आपको बता दें कि पीएम मोदी यह सम्मान पाने वाले दुनिया के उन गिने-चुने नेताओं में शामिल हो गए हैं, जिनमें महारानी एलिज़ाबेथ, नेल्सन मंडेला और जापान के सम्राट अकिहितो जैसे नाम शामिल हैं।
यह सम्मान ऐसे समय मिला है जब भारत और ओमान अपने कूटनीतिक संबंधों के 70 वर्ष पूरे कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा उनके तीन देशों के दौरे यानि जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान की अंतिम कड़ी थी, लेकिन महत्व के लिहाज से शायद यह यात्रा सबसे भारी थी। मस्कट पहुंचने पर प्रधानमंत्री को औपचारिक गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया, जो भारत के प्रति ओमान के सम्मान और भरोसे को साफ दर्शाता है।
इस दौरे की सबसे बड़ी उपलब्धि रही भारत-ओमान व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA), जिसने द्विपक्षीय संबंधों को एक नई ऊंचाई दी। यह समझौता इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि इसमें पहली बार भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों यानि AYUSH को औपचारिक रूप से शामिल किया गया है। ओमान ने आयुष सेवाओं और उत्पादों के लिए अपने बाजार के दरवाज़े खोल दिए हैं, जिससे खाड़ी क्षेत्र में भारत की सॉफ्ट पावर को जबरदस्त बल मिलेगा।
इसके अलावा, दोनों देशों ने संयुक्त दृष्टि दस्तावेज़ को अपनाया और समुद्री विरासत, वैज्ञानिक अनुसंधान, कौशल विकास, कृषि, नवाचार और व्यापार जैसे क्षेत्रों में कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए। ‘मैत्री पर्व’ कार्यक्रम में प्रवासी भारतीयों और छात्रों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने भारत को “तेज़ फैसले लेने वाला, समयबद्ध परिणाम देने वाला और वैश्विक मॉडल बनता देश” बताया।
देखा जाये तो प्रधानमंत्री मोदी को मिला ‘ऑर्डर ऑफ ओमान’ सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, यह उस नए भारत की अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति है जो अब झिझकता नहीं, बल्कि शर्तें तय करता है। बीते एक दशक में मोदी सरकार ने विदेश नीति को औपचारिकताओं से निकालकर रणनीति, व्यापार और सामरिक हितों की ठोस जमीन पर उतारा है। ओमान इसका ताज़ा उदाहरण है। हम आपको बता दें कि ओमान भले ही आकार में छोटा देश हो, लेकिन उसका सामरिक महत्व विशाल है। अरब सागर और हिंद महासागर के संगम पर स्थित ओमान, हॉर्मुज जलडमरूमध्य के पास है, जहां से दुनिया के एक बड़े हिस्से का तेल व्यापार गुजरता है। ऐसे में भारत और ओमान के रिश्ते केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि गहरे सामरिक और सुरक्षा आयाम रखते हैं।
इसके अलावा, CEPA के ज़रिये भारत ने साफ संकेत दिया है कि वह खाड़ी क्षेत्र में केवल ऊर्जा का उपभोक्ता बनकर नहीं रहना चाहता, बल्कि निवेश, स्वास्थ्य, तकनीक और नवाचार का भागीदार बनना चाहता है। आयुष को समझौते में शामिल करना भारत की सभ्यतागत ताकत का प्रदर्शन है। यह संदेश है कि भारत अब केवल दवाइयाँ नहीं, जीवनशैली भी निर्यात करेगा।
इसके अलावा, रक्षा और समुद्री सुरक्षा के मोर्चे पर ओमान भारत का भरोसेमंद साथी रहा है। भारतीय नौसेना को ओमान के बंदरगाहों तक रणनीतिक पहुंच, हिंद महासागर में भारत की निगरानी क्षमता को कई गुना बढ़ाती है। चीन जिस तरह से इस क्षेत्र में ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति के तहत अपने पैर पसार रहा है, उसके मुकाबले भारत-ओमान साझेदारी एक सटीक और संतुलित जवाब है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा एक और संदेश देता है कि भारत अब अपनी प्रवासी भारतीय आबादी को केवल भावनात्मक पूंजी नहीं, बल्कि कूटनीतिक शक्ति मानता है। ओमान में बसे भारतीय दशकों से दोनों देशों के बीच सेतु का काम कर रहे हैं और मोदी सरकार ने इस सेतु को नीति का हिस्सा बनाया है। कुल मिलाकर, ओमान में मिला सम्मान, CEPA पर हस्ताक्षर और रणनीतिक संवाद, तीनों मिलकर यह साबित करते हैं कि भारत अब वैश्विक मंच पर अनुगामी नहीं, निर्णायक भूमिका में है। यह कूटनीति दिखावे की नहीं, परिणाम देने वाली है। और यही वजह है कि आज जब प्रधानमंत्री मोदी को सम्मान मिलता है, तो वह केवल व्यक्ति का नहीं, बल्कि भारत के आत्मविश्वास का सम्मान होता है।
-नीरज कुमार दुबे