केवल नारों में ही चमक रहा है भारत, 2019 में झटका लगेगा भाजपा को

By विजय शर्मा | Apr 05, 2018

हिमाचल में भले ही अभी भाजपा के खिलाफ कोई माहौल दिखाई न दे रहा हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जिस प्रकार किसान, व्यापारी, दलित, नौकरी−पेशा और युवा वर्ग भाजपा के खिलाफ खड़ा होता दिखाई दे रहा है, उससे इस बात की आशंका बढ़ गई है कि भाजपा 2019 में भी 2014 जैसा प्रदर्शन कर पायेगी। बड़े पूंजीपतियों को छोड़ दें तो हर वर्ग में मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनता नजर आ रहा है और केन्द्र सरकार इस कदर बेपरवाह है कि उसे नाराजगी दिखाई नहीं पड़ रही है। किसानों की समस्या जस की तस बनी हुई है, रोजगार के मोर्चे पर सरकार पूरी तरह फेल है और पूंजीपतियों के दबाव में उसकी मंशा मजदूर वर्ग को शोषण के दलदल में धकेलने की है।

मजदूर वर्ग की नाराजगी को देखते हुए सरकार जब श्रम कानूनों में मनमाने बदलाव नहीं कर पा रही है तो अधिसूचना के जरिए हायर एंड फायर फायर पालिसी यानी सभी क्षेत्रों में ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा दे रही है।  खुद आरएसएस से जुड़ा संगठन भारतीय मजदूर संघ यह आरोप लगाता आ रहा है कि सरकार श्रम कानूनों को कमजोर कर रही है। पैट्रोल और डीजल पर सरकार की मनमानी जारी है जबकि पैट्रोलियम मंत्रालय ने तेल की बढ़ती कीमतों पर चिंता जाते हुए वित्त मंत्रालय से एक्साइज ड्यूटी कम करने का अनुरोध किया था लेकिन वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बजट में इसे अनसुना कर दिया। वित्त मंत्री का कहना है कि दो रूपए एक्साइज ड्यूटी घटाकर सरकार को सालाना 13 बजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है लेकिन वह यह नहीं बता रहे हैं कि भाजपानीत सरकार बनने के बाद एक लीटर तेल पर करीब 12 रूपए बढ़ाने से उसे कितने लाख करोड़ का फायदा हो रहा है। वह यह नहीं बता रहे हैं कि इससे सरकारी तेल कम्पनियों और सरकार को कितने लाख करोड़ का फायदा आम जनता की जेब काटकर हुआ है। सरकार के मंत्री दुहाई दे रहे हैं कि कल्याणकारी योजनाओं को चलाने और देश के विकास के लिए पैसा चाहिए। लेकिन वह यह भूल गये हैं कि केवल भाजपानीत सरकार ही यह नहीं कर रही है बल्कि अब तक की सभी सरकारें यही करती आई हैं।

 

कर्मचारी वर्ग को आयकर में किसी प्रकार की राहत नहीं दी गई जबकि विपक्ष समेत भाजपा के कई सांसदों ने आयकर सीमा बढ़ाने की मांग की थी। विपक्ष का आरोप है कि इवेंट मैनेजमेंट के जरिए भाजपा के नेता ऐसा माहौल बनाने की कोशिश में जुटे हैं कि केवल वही सच्चे देशभक्त हैं और उनकी सरपरस्ती में ही देश सुरक्षित है। भाजपा के आधुनिक पीढ़ी के नेता भूल गये हैं कि पिछले कई दशकों तक अलग−अलग पार्टियों की सरकारें रही हैं और कुछ अपवादों को छोड़कर सभी ने देश को आगे बढ़ाने का काम किया है। 2014 लोकसभा चुनावों के वक्त नरेंद्र मोदी ने हर वर्ष दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था जो हवा−हवाई साबित हुआ है। विदेशों से कालाधन वापस लाने और विकास दर बढ़ाकर 10 करने का वायदा किया था।

 

विदेशों में जमा कालेधन की वापसी पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने तीन साल पहले बयान दिया था कि बाहर से कालाधन लाकर हर परिवार के खाते में 15 लाख रुपये जमा करने वाला वादा एक 'जुमला' था। अब विपक्षी नेता नारा गढ़ चुके हैं जो 2019 में खूब उछलेगा, 'अबकी बार, नहीं चाहिए जुमला सरकार'। मोदी सरकार ने 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस बात का खुलासा नहीं किया है कि कितना कालाधन विदेशों से आ चुका है अलबत्ता जनता यह जान चुकी है कि बड़े−बड़े उद्योगपति और व्यापारी गरीब और मध्यम वर्ग की जनता की गाढ़ी कमाई ठगकर विदेशों को रफूचक्कर हो चुके हैं। सरकार ने यह जानते हुए उन्हें विदेश भागने का मौका दिया कि सरकारी बैंकों का लाखों−करोड़ रूपया बकाया था। अब इस बात का खुलासा हे चुका है कि करीब साल भर पहले से इन कम्पनियों तथा संदिग्ध लोगों को खिलाफ वित्त मंत्रालय और पीएमओ में शिकायतें दी जा चुकी थीं।

 

नरेंद्र मोदी का दूसरा बड़ा वादा दो करोड़ रोजगार देने का था। लेबर ब्यूरो के विभिन्न सर्वेक्षणों का औसत लेने पर पता चलता है कि आठ फीसदी की हिस्सेदारी वाले संगठित क्षेत्र में मोदी सरकार हर साल औसतन करीब 3 लाख रोजगार ही पैदा कर सकी है और अब अनुमान डेढ़ लीख से कुछ अधिक बताया गया है। नोटबंदी के बाद के हालात और खराब हए हैं। बेरोजगारी की समस्या से सरकार बेपरवाह है। एक अनुमान के अनुसार देश के करीब 34 करोड़ युवा बेहतर रोजगार की तलाश में हैं। अर्थव्यवस्था की विकास दर के बारे में नरेंद्र मोदी ने पिछले चुनाव में दावा किया था कि यह दर बढ़ाकर 10 फीसदी कर दी जाएगी। उन्होंने  कहा था कि ऐसा होने से लोगों की समृद्धि बढ़ेगी और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। लेकिन हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार वित्त वर्ष 2018−19 में देश की विकास दर मुश्किल से 7 फीसदी तक जा सकती है।

 

लोकपाल पर सरकार की लीपापोती संदेह पैदा करती है और सीबीआई का दुरूपयोग दूसरी पार्टियों की तरह विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए भाजपा भी करती आ रही है। प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्न पत्रों के लीक का मामला हो या सीबीएसई के प्रश्न पत्रों का लीक होना, यह युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ है और युवा वर्ग में इससे केन्द्र के खिलाफ भारी जनाक्रोश है। पिछले दो−तीन साल में छात्रों के बढ़े असंतोष का मुख्य कारण शिक्षा पर होने वाली खर्च में की गई कटौती है। गरीबी उन्मूलन के साथ समाज के वंचित तबकों की मजबूती के लिए खर्च होने वाली राशि में भी कोई खास बढ़ोतरी नहीं हो पायी है। देश के बीपीएल परिवारों को 5 लाख तक के इलाज की बजटीय घोषणा का खूब प्रचार किया गया है लेकिन हकीकत में इसके जमीन पर उतरने का संदेह है।

 

केंद्र सरकार अपना राजकोषीय घाटा पूरा करने और योजनाओं के लिए धन जुटाने के लिए लिए हर साल अपना खर्च लगातार घटा रही है। पिछले चार साल में केंद्र का बजट खर्च जीडीपी के 13.9 फीसदी से घटकर 12.7 फीसदी हो गया है। अब सरकार पैट्रोल−डीजल में अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी और आयकरदाताओं पर अतिरिक्त कर लगाकर लोगों को मंहगाई का झटका दे रही है। चुनावों के समय मोदी ने वादा किया था कि यदि उनकी सरकार बनी तो किसानों को फसल की लागत का डेढ़ गुना दाम दिया जाएगा। अब सरकार कह रही है कि डेढ गुणा दाम कर दिये गये हैं लेकिन उनकी फसलों को कौन खरीदेगा और लागत की गणना और मेहनत−मजदूरी का आंकलन विरोधाभासी बताया जा रहा है। दूसरे क्या किसानों के लिए सरकारी खरीद की उनके खेतों या घरों के पास व्यवस्था है या इसकी बिक्री के लिए 100−150 किलोमीटर दूर मंडियों में जाना होगा, ऐसे कई सवाल हैं जो किसानों को परेशान कर रहे हैं।

 

अगर किसान खुशहाल होते तो मोदी सरकार के कार्यकाल 2014−2017 में कृषि मंत्री के ताजा बयान के मुताबिक 36000 किसान आत्महत्या नहीं करते। इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि हम भारत को विकसित देश बता रहे हैं और अन्नदाता मर रहा है। सरकार गांवों, किसानों और युवाओं से बेखबर है। दलित और आदिवासी भाजपा से खासा ऩाराज नजर आ रहे हैं और ताजा मामला इसका उदाहरण है जहां हिंसक प्रदर्शनों में 11 से ज्यादा लोग मारे गये हैं। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने कोई कानून नहीं बदला है केवल यह कहा है कि कानून का बेजा इस्तेमाल न हो और ऐसा उच्चतम न्यायालय कई मामलों में कहता और करता आया है लेकिन राजनीतिक पार्टियां दलितों की नाराजगी को भुना कर उन्हें उकसा रही हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि मोदी सरकार भी वाजपेयी सरकार के शाईनिंग इंडिया की तरह केवल नारों में ही भारत को चमका रही है और हकीकत अलग है जिसका खामियाजा उसे 2019 में चुकाना पड़ सकता है।

 

-विजय शर्मा 

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