अमेरिका-ईरान के बीच तनाव से भारत को भी नुकसान होगा

By डॉ. वेदप्रताप वैदिक | May 12, 2018

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आखिरकार ईरान के खिलाफ मोर्चा खोल ही दिया। जुलाई 2015 में हुए बहुराष्ट्रीय परमाणु-समझौते से अमेरिका ने हटने की घोषणा कर दी। यह समझौता इसलिए किया गया था कि ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोका जाए। इस समझौते पर ईरान के अलावा अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने दस्तखत किए थे। इस समझौते से अमेरिका को बाहर निकलवाने का संकल्प ट्रंप अपने चुनाव के दौरान दोहराते रहे थे।

इस समझौते के पहले अमेरिका की पहल पर कई राष्ट्रों ने ईरान के विरुद्ध जो प्रतिबंध लगा रखे थे, उन्हें उठा लिया था। लेकिन ट्रंप ने अब उन प्रतिबंधों को फिर से लगाने की घोषणा कर दी है। ट्रंप का तर्क यह है कि इस समझौते की शर्तें ही अपने आप में ऐसी हैं कि 10-15 साल बाद ईरान बेखटके परमाणु हथियार बनाना शुरु कर देगा।

 

इन शर्तों में फेर-बदल करने के चार सुझाव पिछले दिनों फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मेकरों ने भी दिए थे। हालांकि ट्रंप के कदम का समर्थन अन्य किसी भी हस्ताक्षरकर्त्ता राष्ट्र ने नहीं किया है और ईरान के नेताओं ने ट्रंप को कड़ी चेतावनी भी दी है। यह तय है कि उत्तर कोरिया की तरह ईरान के घुटने टिकवाना असंभव है लेकिन यह संभव है कि सभी संबद्ध राष्ट्र इस परमाणु-समझौते में सर्वमान्य संशोधन करवा दें। यदि यह मामला उलझ गया और तूल पकड़ गया तो सारे पश्चिम एशिया में काफी उथल-पुथल मच सकती है।

 

इजराइल और सउदी अरब-जैसे राष्ट्र ट्रंप की घोषणा से खुश होंगे लेकिन भारत-जैसे तटस्थ राष्ट्रों को काफी नुकसान हो सकता है। तेल के दाम तो बढ़ ही जाएंगे, ईरान के चाहबहार बंदरगाह में भारत के निर्माण-कार्य पर भी असर पड़ेगा। हमारे विदेश मंत्रालय का तटस्थता का बयान तो ठीक है लेकिन वह नाकाफी है। यदि हमारे देश में आज कोई बड़ा नेता होता तो अमेरिका और ईरान के बीच भारत एक सफल मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता था।

 

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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