Prabhasakshi NewsRoom: पहली बार America से LPG खरीदेगा India, एक साल के लिए हुआ करार, मजबूत हुई Modi-Trump की दोस्ती

By नीरज कुमार दुबे | Nov 17, 2025

भारत–अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर जारी वार्ता के सकारात्मक दिशा में बढ़ने के संकेतों के बीच दोनों देशों ने ऊर्जा क्षेत्र में एक नया करार कर द्विपक्षीय संबंधों को और सहज तथा सहयोगपूर्ण बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। हम आपको बता दें कि केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने घोषणा की है कि भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने पहली बार अमेरिका से तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) आयात करने के लिए एक वर्ष का दीर्घकालिक करार किया है। केंद्रीय मंत्री ने इसे भारत के एलपीजी बाज़ार के लिए एक "ऐतिहासिक पहल" बताया है। हम आपको बता दें कि इस करार के तहत इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम मिलकर अमेरिका के गल्फ कोस्ट से लगभग 2.2 मिलियन टन प्रतिवर्ष (MTPA) एलपीजी आयात करेंगी। यह भारत के वार्षिक एलपीजी आयात का लगभग 10 प्रतिशत है। खरीद को माउंट बेलव्यू बेंचमार्क पर आधारित किया गया है, जो वैश्विक एलपीजी कीमतों का प्रमुख निर्धारक माना जाता है।


मंत्री ने बताया कि सरकारी तेल कंपनियों की टीमों ने हाल के महीनों में अमेरिका जाकर प्रमुख उत्पादकों के साथ बातचीत की थी। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को सस्ता एलपीजी उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। हम आपको बता दें कि पिछले वर्ष वैश्विक कीमतों में 60% वृद्धि के बावजूद उपभोक्ता कीमतों को 500–550 रुपये प्रति सिलेंडर तक रखने के लिए मोदी सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये से अधिक का बोझ वहन किया।

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देखा जाये तो अमेरिका से दीर्घकालिक एलपीजी आयात समझौता सिर्फ एक वाणिज्यिक सौदा नहीं है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा की लंबी और जटिल यात्रा में एक महत्वपूर्ण सामरिक पड़ाव है। विश्व के सबसे तेज़ी से बढ़ते एलपीजी उपभोक्ता देशों में भारत की गिनती होती है और घरेलू जरूरतों, विशेषकर उज्ज्वला योजना के करोड़ों लाभार्थियों के लिए स्थिर और किफायती ऊर्जा आपूर्ति किसी भी सरकार की प्राथमिकता है। एलपीजी स्रोतों के विविधीकरण के इस प्रयास का समय अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब वैश्विक कीमतें अनिश्चितता के दौर से गुजर रही हैं; बीते वर्ष 60% वृद्धि के बावजूद भारत ने घरेलू उपभोक्ताओं को महंगाई से बचाने के लिए भारी सब्सिडी का बोझ स्वयं संभाला। ऐसे में अमेरिका से 2.2 MTPA का नया करार सप्लाई चेन को अधिक सुरक्षित, विविध और प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में अहम भूमिका निभा सकता है। यह भारत के कुल एलपीजी आयात का लगभग 10% है।


देखा जाये तो भारत और अमेरिका के बीच हुए इस करार का सामरिक महत्व भी है। विश्व राजनीति में ऊर्जा एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आर्थिक हित भू-राजनीतिक समीकरणों से गहरे जुड़े होते हैं। वर्तमान समय में अमेरिका और रूस के बीच बढ़ता तनाव पूरी वैश्विक ऊर्जा संरचना को प्रभावित कर रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर "बहुत कड़ी पाबंदियां" लगाने की चेतावनी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती लेकर आती है। विशेषकर तब, जब भारत रूस से रियायती दर पर कच्चा तेल खरीदकर अपने ऊर्जा खर्च को नियंत्रित करने में सक्षम रहा है। ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत पर पहले ही 50% तक शुल्क लगाया जाना और रूसी तेल खरीद पर अतिरिक्त 25% शुल्क जोड़ना दर्शाता है कि आने वाले महीनों में ऊर्जा कूटनीति और भी जटिल होने वाली है। प्रस्तावित “रूस प्रतिबंध अधिनियम 2025” यदि लागू हो जाता है, तो इसका असर भारतीय तेल कंपनियों के लिए गहरा हो सकता है।


इसी पृष्ठभूमि में अमेरिकी एलपीजी समझौते को समझना आवश्यक है। यह भारत की ऊर्जा रणनीति में तीन प्रमुख संकेत देता है। पहला, भारत किसी एक क्षेत्र या देश पर निर्भरता को सीमित करने के लिए दृढ़ है। दूसरा- भारत अमेरिका के साथ ऊर्जा सहयोग के नए अवसर खोल रहा है, जिससे उच्च राजनीतिक तनाव की स्थिति में भी आपूर्ति बाधित न हो। तीसरा- यह भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” की नीति को मजबूत करता है, जहां वह विभिन्न शक्तियों से अपने-अपने हितों के अनुसार व्यवहार करता है, बिना किसी सैन्य या आर्थिक ब्लॉक का हिस्सा बने।


यह सही है कि ऊर्जा क्षेत्र में भारत का संतुलन बनाना कठिन होता जा रहा है। एक तरफ अमेरिका का बढ़ता प्रतिबंधात्मक रुख, दूसरी ओर रूस से सस्ती ऊर्जा का आकर्षण, ये दोनों मिलकर भारत की ऊर्जा कूटनीति को एक जटिल संतुलनकारी खेल बना देते हैं। परंतु भारत की आर्थिक जरूरतें, विकास के लक्ष्य और सामाजिक कल्याण योजनाएं यह मांग करती हैं कि ऊर्जा सुरक्षा को बहु-स्रोत, बहु-दिशात्मक और लचीली रणनीति के तहत ही आगे बढ़ाया जाए।


अमेरिका से एलपीजी आयात का यह नया करार इसी व्यापक रणनीति का हिस्सा है, यह एक ऐसा कदम है जो आने वाले वर्षों में भारत को ऊर्जा बाज़ार की अनिश्चितताओं से अधिक सुरक्षित कर सकता है। यह अवसर भी है और चुनौती भी। अवसर इसलिए है कि यह भारत के लिए मूल्य स्थिरता और आपूर्ति सुरक्षा सुनिश्चित करता है; चुनौती इसलिए है कि बदलते वैश्विक शक्ति-समूहों के बीच भारत को और भी संतुलित, विवेकपूर्ण और दूरदर्शी ऊर्जा कूटनीति अपनानी होगी।


बहरहाल, यह करार साबित करता है कि भारत अब ऊर्जा सुरक्षा को केवल आयात–निर्यात के नजरिए से नहीं देख रहा, बल्कि इसे दीर्घकालिक वैश्विक रणनीति का हिस्सा मानकर आगे बढ़ रहा है। यह कदम आने वाले वर्षों में भारत की सामरिक स्वायत्तता, ऊर्जा लचीलापन और आर्थिक स्थिरता, तीनों को मजबूती देगा।

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