By नीरज कुमार दुबे | Dec 20, 2025
देश की समुद्री सीमाओं और बंदरगाहों की सुरक्षा को लेकर केंद्र सरकार ने एक बड़ा और निर्णायक कदम उठाया है। हम आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में शुक्रवार को एक उच्चस्तरीय बैठक में ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी (BoPS) के गठन की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने पर सहमति बनी। यह नया ब्यूरो देशभर में जहाजों और बंदरगाह परिसरों की सुरक्षा से जुड़े नियमन और निगरानी का शीर्ष निकाय होगा। BoPS को Bureau of Civil Aviation Security (BCAS) की तर्ज पर तैयार किया जाएगा, जो विमानन और हवाई अड्डों की सुरक्षा का नियमन करता है।
हम आपको बता दें कि BoPS की स्थापना ऐसे समय में की जा रही है जब एक माह पूर्व ही Central Industrial Security Force (CISF) को बंदरगाह सुविधाओं के लिए मान्यता प्राप्त सुरक्षा संगठन घोषित किया गया था। CISF अब बंदरगाहों की सुरक्षा ऑडिट, जोखिम मूल्यांकन और सुरक्षा योजनाओं के निर्माण की जिम्मेदारी निभाएगा।
इस बैठक में बंदरगाह, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय तथा नागरिक उड्डयन मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री भी उपस्थित रहे। गृह मंत्री ने देशभर में एक मज़बूत, समन्वित और आधुनिक पोर्ट सुरक्षा ढांचा खड़ा करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने निर्देश दिए कि सुरक्षा उपायों को ग्रेडेड और जोखिम-आधारित तरीके से लागू किया जाए, ताकि प्रत्येक बंदरगाह की संवेदनशीलता, व्यापारिक क्षमता, भौगोलिक स्थिति और अन्य प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखा जा सके।
हम आपको बता दें कि BoPS, जो Ministry of Ports, Shipping and Waterways (MoPSW) के अधीन कार्य करेगा, वह सुरक्षा से जुड़ी सूचनाओं के विश्लेषण, संग्रह और आदान-प्रदान को सुनिश्चित करेगा। इसमें साइबर सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इसके तहत एक समर्पित प्रभाग बनाया जाएगा, जो बंदरगाहों की आईटी अवसंरचना को डिजिटल खतरों से सुरक्षित रखेगा।
गृह मंत्रालय के अनुसार, BoPS का गठन नव-प्रवर्तित मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 2025 की धारा 13 के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में किया जाएगा। इस ब्यूरो का नेतृत्व एक महानिदेशक करेंगे, जो भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के अधिकारी होंगे। साथ ही, CISF को निजी सुरक्षा एजेंसियों (PSAs) को प्रशिक्षित करने और उनकी क्षमता निर्माण का दायित्व भी सौंपा गया है। इन एजेंसियों का प्रमाणन किया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि केवल लाइसेंस प्राप्त PSAs ही बंदरगाह सुरक्षा के क्षेत्र में काम करें। हम आपको बता दें कि देश में वर्तमान में लगभग 77 EXIM पोर्ट्स हैं, जिनमें 12 प्रमुख और करीब 65 गैर-प्रमुख बंदरगाह शामिल हैं। इसके अतिरिक्त लगभग 200 छोटे बंदरगाह ऐसे हैं, जहां अभी कार्गो संचालन नहीं होता।
देखा जाये तो भारत अगर इक्कीसवीं सदी की आर्थिक महाशक्ति बनना चाहता है, तो उसे यह भ्रम छोड़ना होगा कि खतरे सिर्फ़ सीमाओं पर आते हैं। आज खतरे समुद्र के रास्ते, केबल के तारों में और बंदरगाहों की लापरवाही में छिपे हैं। BoPS का गठन दरअसल इसी कड़वी सच्चाई की स्वीकारोक्ति है।
बंदरगाह भारत की आर्थिक नब्ज़ हैं। आयात-निर्यात, ऊर्जा आपूर्ति, औद्योगिक कच्चा माल, सब कुछ इन्हीं रास्तों से आता-जाता है। ऐसे में यदि पोर्ट सुरक्षा बिखरी हुई, आधी-अधूरी और प्रतिक्रियात्मक रहे, तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ सीधा खिलवाड़ है। BoPS का ढांचा इस बिखराव को खत्म करने की कोशिश है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ़ एक और “ब्यूरो” बनकर रह जाएगा या सच में दांत-नाखून वाला प्रहरी साबित होगा?
सबसे अहम पहलू है साइबर सुरक्षा। आज एक की-बोर्ड से पूरे पोर्ट को ठप किया जा सकता है। कंटेनर मूवमेंट, शिप ट्रैकिंग, कस्टम्स डेटा, सब कुछ डिजिटल है और उतना ही असुरक्षित भी। इसलिए यहाँ तकनीकी विशेषज्ञता, रियल-टाइम इंटेलिजेंस और अंतरराष्ट्रीय सहयोग, तीनों की सख्त ज़रूरत है। बहरहाल, समुद्र शांत दिखता है, लेकिन खतरे उसकी गहराइयों में पलते हैं। अब वक्त है कि भारत सिर्फ़ लंगर डाले नहीं, बल्कि कड़ा और आधुनिक पहरा भी दे।