जबरदस्त पॉपुलर हो रहा Roposo
चीनी ऐप टिक टॉक पर प्रतिबंध लग जाने के बाद रोपोसो (Roposo) काफी ज्यादा पॉपुलर हो गया है। टिक टॉक पर प्रतिबंध लगने के बाद से मंगलवार तक रोपोसो को 48 लाख से ज्यादा बार यूजर्स ने डाउनलोड किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रोपोसो के डिवेलपर्स ने तो यहां तक कह दिया कि एक दिन में ही एक करोड़ नए यूजर्स मिल सकते हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक एड टेक यूनिकॉर्न एनमोबी (Ad Tech Unicorn Inmobi) के फाउंडर और सीईओ नवीन तिवारी ने बताया कि भारतीय द्वारा चीनी ऐप्स को डिलीट किए जाने की वजह से रोपोसो (Roposo) को पिछले कुछ सप्ताह में 10 फीसदी से ज्यादा बढ़त मिली है। उन्होंने आगे कहा कि यह समय डिजिटली आत्मनिर्भर होने का समय है। क्योंकि डिजिटल कम्पनियों की कोई सीमा नहीं होती हैं। ऐसे में भारत के पास अपने डेटा का कंट्रोल और उसकी सिक्योरिटी की देखभाल का जिम्मा होना चाहिए।
टिक टॉक का ऑप्शन बना चिंगारी
रोपोसे के अलावा चिंगारी ऐप के यूजर्स भी काफी तेजी से बढ़े हैं। टिक टॉक पर प्रतिबंध लग जाने के बाद यूजर्स लगातार नए-नए विकल्प की तलाश में निकल चुके हैं। मंगलवार को हाल कुछ ऐसा था कि चिंगारी ऐप को एक घंटे में करीब एक लाख बार डाउनलोड किया जा रहा था और थोड़े ही समय बाद यह ऐप 30 लाख से ज्यादा बार डाउनलोड हो चुका था।
चिंगारी ऐप ने गूगल के प्ले स्टोर पर टॉप ट्रेंडिंग ऐप में अपनी जगह बना ली और इस ऐप को उम्मीद से अधिक ट्रैफिक मिल रहा है। चिंगारी के को-फाउंडर और चीफ प्रॉडक्ट ऑफिसर सुमित घोष ने ट्वीट कर बताया था कि चिंगारी ऐप को हर घंटे एक लाख बार डाउनलोड किया जा रहा है। साथ ही साथ कहा था कि ऐप के व्यूज आधे घंटे में 10 लाख तक बढ़ रहे हैं।
आनंद महिंद्रा ने भी डाउनलोड किया चिंगारी
एक-दो दिनों के भीतर चिंगारी ऐप इतना ज्यादा पॉपुलर हो गया कि महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने भी इसे डाउनलोड कर लिया। उन्होंने ट्वीट पर लिखा कि उन्होंने टिक टॉक को कभी डाउनलोड नहीं किया लेकिन चिंगारी ऐप को डाउनलोड कर लिया है।
चिंगारी ऐप को बेंगलुरु स्थित प्रोग्रामर बिस्वत्मा नायक और सिद्धार्थ गौतम ने पिछले साल बनाया था और इसकी खासियत है कि यह हिन्दी समेत 9 भाषाओं को सपोर्ट करता है।
चीन के साथ जारी सीमा विवाद के बीच भारत अपनी निर्भरता चीन से धीरे-धीरे कम कर रहा है। इतना ही नहीं देशभर में चीनी सामानों के बहिष्कार को लेकर प्रदर्शन भी चल रहे हैं। जिसका सीधा असर दिखाई देने लगा है। चीनी सामानों के हो रहे बहिष्कार की वजह से एक बार फिर से देश के उत्पादक की प्राथमिकताएं बढ़ी हैं और देश आत्मनिर्भरता की तरफ एक और कदम आगे बढ़ गया है।