By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Sep 04, 2025
कोटा की नवोदित बाल रचनाकार पल्लवी दरक न्याति की कृति "इंद्रधनुष" की बाल कविताएं इनकी बाल मनोविज्ञान की अच्छी समझ का अहसास कराती हैं । इन्होंने बाल मन की भावनाओं को समझ कर लिखते समय इनके चिंतन में बालक ही रहा यह कविताओं से साफ झलकता है। बाल कविताओं की परिभाषा पर खरी उतरती संग्रह की 40 कविताओं में कुछ कविताएं किशोर वय के लिए भी हैं।
कविताएं बालकों का मनोरंजन तो करती ही हैं साथ ही उनमें प्रकृति प्रेम, राष्ट्र प्रेम, मानवता, प्रभु भक्ति, रिश्तों का संदेश देते हुए उन्हें ऋतु परिवर्तन बोध और जीवन परिवर्तन बोध से भी जोड़ती है। इंद्रधनुष कृति से बाल साहित्य में प्रवेश करने वाली लेखिका का कविताओं के माध्यम से यही संदेश है बच्चों से बात करें, उनके साथ खेलें, उनकी बात सुने और बच्चा बन कर बच्चों के बीच रहें। इसी वर्ष 2025 में आई प्रथम बाल काव्य कृति उनमें बाल साहित्य सृजन की अनंत संभावनाओं के द्वार खोलती है।
बाल कविताओं की शीर्षक कविता इंद्रधनुष में बाल मन के लिए सुंदर अभिव्यक्ति मन को लुभाती है........
"आओ देखो लव और कुश / आसमान में इंद्रधनुष / देख के रह जाए सब दंग / इतने सुंदर इसके रंग / बैंगनी जामुनी नीला हरा / आसमान रंगों से भरा / पीला नारंगी और लाल/ रंग हैं इसके बड़े कमाल / रंग-बिरंगा छाता बनाया / तीर कमान के जैसा भाया / जब यह नभ में छाता है /नभ सुंदर बन जाता है ।"
बच्चों के लिए राष्ट्र प्रेम की भावना जगाने से ओतप्रोत कविता तिरंगा में ये बच्चों के सामने तिरंगे को ला खड़ा करती हैं । तिरंगे को प्रेरणा का आधार बना कर कहे गए कविता के भाव देखिए.........
कितना सुंदर है यह झंडा /मेरे भारत का तिरंगा/ लहराए जैसे गंगा
हरा रंग धरती प्रतीक/ केसरिया सूरज दीप/ श्वेत शांति संतोष दे /मन में भरी उमंग /कितना सुंदर है यह झंडा
नील चक्र ज्यूं नील कमल /प्रगति द्योतक है हर पल /विश्व गुरु की ओर बढ़ रहे /भारत के कदम /कितना सुंदर है यह झंडा
नील गगन जब ये लहराएं/ सबका मन गर्वित हो जाए /याद दिलाता है हम सबको /आजादी की हर जंग/ कितना सुंदर है यह झंडा
इस झंडे की अनुपम बात /देश प्रेम की दे सौगात / इसके तले ही पाए हमने /आधुनिक सारे रंग / कितना सुंदर है यह झंडा
राष्ट्रप्रेम के साथ बच्चों में संस्कृति के प्रति प्रेम पैदा करने लिए संस्कृति की अनमोल धरोहर त्योहारों पर लिखीकविता बदलते त्यौहार के भाव कहते हैं....
बदल रहा है दीप उत्सव बदल रहा त्यौहार/ बदल रही है दीप कतारें बदल रहा उजियार/ बदल रहा है पहनावा बदल रहा श्रृंगार /बदल रहे हैं दीपक बाती बदल रहे व्यापार /बदली नहीं संस्कृति बदल गए संस्कार /बदल रहा है शोर में शांति का त्यौहार /बदल रही शुभकामना बदले सभी विचार / बदल रही संवेदना दिखावे की कतार / बदल रहे मिष्ठान सब चॉकलेट का बाजार / बदल रही है संतानें बदल रहा परिवार / बदली चकाचौंध में में बदले दिल के तार /बस इतना ही बाकी है याद रहे त्यौहार।
बच्चों की बात सुनो का संदेश देती "राजा बेटा" कविता में बाल मन के भाव देखते ही बनते हैं......
मां पास मेरे आ जाओ ना /मुझको गले लगाओ ना /कई दिनों से किया ना दुलार/ चलो घूमने आज बाजार /कुछ खिलौने लाएंगे/ बूंदी के लड्डू खाएंगे/ शरबत मुझे पिला देना /ड्रेस नई दिला देना /आज मना मत करना मां /कोई बहाना करना ना /आज बहुत है मन मेरा /मैं हूं राजा बेटा तेरा।
बच्चों को स्वर याद रखने के लिए लिखी कविता स्वर कविता का अनोखा अंदाज देखिए............
अ-अनार लाल रंग - रंगीला / आ- आम खाओ बड़ा रसीला / इ-इमली खट्टी इठलाती आई /
ई - ईख की मिठास मन भाई / उ- उल्लू रात में भरे उड़ान / ऊ - ऊँट चला है रेगिस्तान / ऋ- ऋषि पड़ा रहे हैं वेद / ए - एड़ी को धरती पर टेक/ ऐ - ऐनक लगती है शानदार / ओ - ओखली में मसाले चार / औ- औरत के हैं रूप हजार / अं - अंगूर है कुछ खट्टा-मीठा ) अः - अः तो बस खाली है बैठा ।
क्या कहने जी क्या कहने /जाड़े मौसम के क्या कहने ! /भोर का सूरज भी अलसाता /बड़ी देर से नभ में आता/ फैलाता मध्यम किरणें /क्या कहने जी क्या कहने /जाड़े मौसम के क्या कहने! / केसर दूध जलेबी भाए/ गरम कचोरी पकौड़ी खाएं/ अलबेले ठंडे महीने क्या कहने/ जी क्या कहने जाड़े मौसम के क्या कहने! /
गजक रेवड़ी मन ललचाती/ हलवा खाएं भाँति-भाँति /जीभ चटोरी के बड़े नखरे /क्या कहने जी क्या कहने/जाड़े मौसम के क्या कहने ! / बदल जाते हैं सब के भेष/ मोटे कपड़ों में लगते सेठ /स्वेटर-टोपी-मोजे पहने /क्या कहने जी क्या /पहने जाड़े मौसम के क्या कहने ! / शॉल रजाई ओढ़े खूब/ नहीं सुहाती हरी-भरी दूब /अलाव बने धरा गहने /क्या कहने जी क्या कहने/ जाड़े मौसम के क्या कहने ! / ओस कोहरे धुंध के साथ/ लगे ठिठुरने सबके हाथ /ठंडी हवा लगी बहने /क्या कहने जी / क्या कहने /जाड़े मौसम के क्या कहने ।
इंद्रधनुष जैसी रंगबिरंगी और गुलदस्ते के फूलों से महकती संग्रह की सभी बाल कविताएं बच्चों के लिए मनभावन है । बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी गुदगुदाती हैं। कविताओं के सामने के पृष्ठ पर संबंधित भावों के रेखा चित्र कृति के प्राण हैं। आवरण पृष्ठ विषयानुरूप आकर्षक है।
बाल साहित्यकार विष्णु शर्मा ' हरिहर ' भूमिका में लिखते हैं, "पल्लवी न्याती दरक का बाल रचनाएं लिखने का यह पहला प्रयास बड़ा ही सार्थक सिद्ध होगा और उन्हें धीरे-धीरे बच्चों की शारीरिक मानसिक स्थितियों को और निकट से देखने का अवसर देगा। जिसके परिणाम स्वरूप भविष्य में उनकी और अच्छी बाल कविताएं बच्चों को तथा हम सबको पढ़ने को मिलेगी। पल्लवी जी ने बाल सहित्य के क्षेत्र में अंततोगत्वा इंद्रधनुष के रूप में प्रवेश कर लिया है। मैं बाल साहित्य जगत में उनका अभिनंदन करता हूँ ।"
लेखिका अपनी बात में लिखती है," बाल कविताएं बच्चों को बहुत कुछ सिखाती है। बच्चे प्रकृति से विशेष रूप से आकर्षित होते हैं पर्वत नदी, फूल, तितली, चिड़िया आदि के बारे में उत्सुकता से बच्चों का बाल मन विकसित भी होता है और पोषित भी। बाल कविताएं बच्चों के लिए मनपसंद मिठाई की भाँति है, जिन्हें वे पसंद भी करते हैं और गुनगुना कर उनका हृदय पान भी करते हैं। बच्चों को एक पुस्तक में ही सभी विषयों का ज्ञान प्राप्त हो सकेगा और बच्चे हर विषय को अपने अंतर मन में उतार सकेंगे ।
पल्लवी का बाल -काव्य है,
रोचक इंद्रधनुषी छाता।
रंग-बिरंगा सृजन हुआ,
सबके मन को मन से भाता ।
इंद्रधनुष- बाल कविताएं
लेखक: पल्लवी दरक न्याति, कोटा
प्रकाशक: इंक जॉन
मूल्य: 299 रुपए
पेपर बैक पृष्ठ: 97
ISBN : 978 -81 -892772 -8-2
समीक्षक
- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा