By अनन्या मिश्रा | Jul 29, 2025
हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। यह दिन धरती पर बाघों के संरक्षण और उनके महत्व के प्रति लोगों को जागरुक किया जाता है। बता दें कि साल 2010 में इंटरनेशनल टाइगर डे मनाए जाने की शुरूआत की गई थी। यह हमारी सृष्टि का एक महत्वपूर्ण जीव है। इस दिन बाघों की संख्या बढ़ाने और उनके संरक्षण के लिए अलग-अलग तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वहीं भारत सरकार साल 1973 से प्रोजेक्ट टाइगर चला रही है। तो आइए जानते हैं इंटरनेशनल टाइगर डे का इतिहास, महत्व और थीम के बारे में...
साल 2010 में अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाए जाने की शुरूआत रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुई थी। उस दौरान बाघों की संख्या में काफी ज्यादा गिरावट देखी जा रही थी। विश्व वन्यजीव कोष के मुताबिक 20वीं सदी में 97% जंगली बाघ विलुप्त हो चुके थे। इस चिंताजनक स्थिति को देखते हुए सेंट पीसर्सबर्ग टाइगर समिटि में 13 बाघ रेंज वाले देशों ने हिस्सा दिया। इस सम्मेलन के बाद हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाए जाने का फैसला लिया गया। जिससे कि लोगों में बाघ संरक्षण के प्रति जागरुकता को बढ़ाया जा सके।
बता दें कि इस सम्मेलन में एक लक्ष्य Tx2 रखा गया। इसका उद्देश्य साल 2022 तक जंगली बाघों की संख्या को बढ़ाकर दोगुना करना था। लेकिन यह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सका था। हालांकि भारत में बाघों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली थी।
बाघ सिर्फ एक खूबसूरत जीव नहीं बल्कि यह जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र का एक अहम हिस्सा भी रहे हैं। यह शिकारी के रूप में जंगल में शाकाहारी जानवारों की आबादी को कंट्रोल करते हैं। इससे जंगल की वनस्पति और अन्य प्रजातियों का भी संतुलन बना रहता है। अगर बाघ नहीं होंगे, तो जंगल का संतुलन बिगड़ सकता है, जिसका असर पर्यावरण पर भी देखने को मिल सकता है।
बाघों का सबसे बड़ा घर भारत है। यहां पर विश्व के करीब 70% बाघ रहते हैं। साल 2010 में भारत के बाघों की संख्या सिर्फ 1,706 थी, जोकि साल 2018 में बढ़कर 2,967 हो गई। भारत सरकार ने साल 1973 में विश्व वन्यजीव कोष के साथ मिलकर 'प्रोजेक्ट टाइगर' शुरू किया था। इसका उद्देश्य बाघों की घटती आबादी को बचाना और उनके लिए सुरक्षित आवास बनाना था।