इंटरनेट की दुनिया में खोता जा रहा है बचपन, क्या कोई ध्यान देगा ?

By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Dec 27, 2019

यह आंकड़ा वास्तव में चेताने वाला है कि खेलने−कूदने की उम्र के साढ़े छह करोड़ बच्चे इंटरनेट की दुनिया में डूबे रहते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इंटरनेट ज्ञान का भंडार है पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ज्ञान का यह भंडार सतही अधिक है। हालांकि यह सब कुछ होते हुए भी बड़े−बूढ़े, ज्ञानी−ध्यानी तक गूगल बाबा की सहायता लेने में कोई संकोच नहीं करते है पर बच्चों में इंटरनेट की लत पड़ने को किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता है। इससे सीधे सीधे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर असर पड़ रहा है। सबसे चिंतनीय यह है कि इंटरनेट की लत के चलते बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर अधिक पड़ रहा है। भारत इंटरनेट 2019 की हालिया रिपोर्ट में उभर कर आया है कि देश में 45 करोड़ के लगभग इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं। हालांकि इसमें हम चीन से थोड़ा पीछे हैं पर चिंतनीय यह है कि देश में 5 से 11 साल की उम्र के बच्चों में साढ़े छह करोड़ बच्चे नियमित रुप से इंटरनेट का उपयोग करते हैं। यह कुल उपयोगकर्ताओं का करीब 15 फीसदी है। हालांकि बदलते परिदृश्य में पांच साल से कम उम्र के बच्चों के इंटरनेट के उपयोग के आंकड़ों को और जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा और अधिक ही होगा।

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दरअसल स्मार्टफोन ने सबकुछ बदल कर रख दिया है। क्या बच्चे, क्या बड़े−बूढ़े धडल्ले से मोबाइल फोन का उपयोग कर रहे हैं। पीसी हो या लेपटॉप या फिर स्मार्टफोन, बच्चे इंटरनेट का उपयोग करने में आगे हैं। कारण चाहे कोई भी माने पर इतनी बड़ी संख्या में बच्चों द्वारा इंटरनेट का उपयोग और यदि यह कहा जाए कि उपयोग ही नहीं लत है तो यह अपने आपमें गंभीर है। भले ही पक्षधर कुछ भी कहें पर इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि इंटरनेट की लत से बच्चों को स्वाभाविक सामाजिक−मानसिक स्थिति पर विपरीत असर पड़ रहा है। बच्चों का जो स्वाभाविक विकास होना चाहिए वह नहीं हो रहा है और यह कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इंटरनेट के अत्यधिक उपयोग के दुष्परिणाम सामने आते जा रहे हैं। दरअसल पूरा सामाजिक ताना−बाना बिगड़ता जा रहा है। बच्चों की मिलनशीलता और संवेदनशीलता खोती जा रही है। शारीरिक मानसिक विकास के परंपरागत गेम्स अब वीडियो गेम्स में बदलते जा रहे हैं। परंपरागत खेलों से होने वाला स्वाभाविक विकास अब वीडियो गेम्स के बदला लेने, मरने मारने वाले गेम्स लेते जा रहे हैं। यही कारण है कि बच्चे तेजी से आक्रामक होते जा रहे हैं। समूह में रहना या यों कहे कि दो लोगों के साथ रहने, आपसी मेलजोल को यह इंटरनेट खत्म करता जा रहा है। पड़ोस की तो दूर घर में ही बच्चे स्मार्टफोन पर गेम्स या यूट्यूब के वीडियो में इस तरह से खोए रहते हैं कि आपस में बात करने तक की फुर्सत नहीं दिखती। बच्चों में मोटापा बढ़ता जा रहा है। चिड़चिड़ापन आता जा रहा हैं, अपने में खोए रहने की आदत बनती जा रही है।

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इसमें कोई दो राय नहीं कि आज के बच्चे अधिक स्मार्ट होते जा रहे हैं। मोबाइल फोन के फंक्शंस को आपरेट करने में बड़ों से भी आगे हैं। अन्य जानकारियां भी खूब होती जा रही हैं पर दिमाग पर बोझ इस कदर बढ़ता जा रहा है कि शारीरिक और मानसिक रुप से बच्चे प्रभावित होते जा रहे हैं। खेल कूद के मैदानों की जगह टेलीविजन, कम्प्यूटर और मोबाइल लेते जा रहे हैं। चार बच्चों के साथ खेलने घूमने की जगह अब नए गेम्स और मायावी दुनिया में हो रही गतिविधियां चर्चा का विषय बन रही हैं। यह कहना बेमानी होगा कि केवल शहरी बच्चे ही इस लत के शिकार हैं। बल्कि रिलायंस का शुरुआती विज्ञापन ही वीरेन्द्र सहवाग को लेकर फिल्माया गया था और संदेश था कर लो दुनिया मुठ्ठी में आज साकार हो गया है। बच्चों−बड़ों के हाथों में आज मोबाइल आम होता जा रहा है। यह नहीं भूलना चाहिए कि इंटरनेट केवल और केवल ज्ञान या मनोरंजन ही है अपितु इंटरनेट पर बहुत अधिक मात्रा में इस तरह की सामग्री परोसी हुई है जो बच्चों पर गलत असर डालने वाली है। पोर्न साइटों का अंबार लगा है तो मारधाड़ और बदला लेने के भावों को उकेरने वाली सामग्री भी कम नहीं है। बच्चों में आत्महत्या करने तक के उदाहरण सामने आ रहे हैं तो मारना पीटना, लड़ाई−झगड़ा तो आम होता जा रहा है।

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जिस तरह से रियलिटी शो के नाम पर बच्चे असमय ही बड़े होते जा रहे हैं ठीक उसी तरह से इंटरनेट और इससे जुड़ी गतिविधियां बच्चों की मानसिकता को प्रभावित कर रही हैं। इसे केवल और केवल इसी से समझा जा सकता है कि अब कहीं भी कुछ होने लगता है तो सरकार का पहला हथियार इंटरनेट सेवाओं को बाधित करना हो गया है। कहने को कुछ नहीं रह जाता बल्कि यह स्थिति अपने आप में हालातों की गंभीरता को दर्शाती है।

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ना तो इंटरनेट का विरोध है और ना ही इसकी उपयोगिता पर कोई प्रश्न उठाया जा रहा है पर इतनी अधिक संख्या में बच्चों में लत के रूप में इंटरनेट का उपयोग और समाज में दिन−प्रतिदिन दिख रहे उदाहरण अपने आप में गंभीरता की ओर इशारा कर रहे हैं। एक सीमा तक इंटरनेट का उपयोग ठीक है पर बच्चों द्वारा अत्यधिक उपयोग और एकाकी होने की प्रवृति गंभीर है और समाज विज्ञानियों और शिक्षाविदों को इस विषय में गंभीर चिंतन मनन करना होगा।

 

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

 

 

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