Prabhasakshi NewsRoom: इस्तीफे के बाद पहले भाषण में Jagdeep Dhankhar ने RSS को जमकर सराहा, Congress की सारी थ्योरी धरी की धरी रह गयी

By नीरज कुमार दुबे | Nov 22, 2025

चार महीने पहले स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने वाले जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को पहली बार सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया और मंच पर लौटते ही अपना राजनीतिक रुख साफ कर दिया। आरएसएस के संयुक्त महासचिव मनमोहन वैद्य की पुस्तक “हम और यह विश्व” के विमोचन समारोह में धनखड़ ने न सिर्फ संघ के विचारों की खुलकर प्रशंसा की, बल्कि भारत की सांस्कृतिक शक्ति और सभ्यतागत आत्मविश्वास को वैश्विक नेतृत्व का आधार बताया।


कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि भारत को अपनी जड़ों से जुड़े रहकर दुनिया के साथ संवाद करना चाहिए। उन्होंने पुस्तक को “दिमाग का टॉनिक” करार दिया और कहा कि यह भारतीय सभ्यताओं की निरंतरता और शक्ति को समझने का अवसर देती है। अपना संबोधन हिंदी में शुरू करने के बाद उन्होंने अंग्रेज़ी में बोलने का फैसला यह कहकर किया कि, “जो लोग समझना ही नहीं चाहते, उन्हें उनकी ही भाषा में जवाब देना पड़ेगा।”


पुस्तक की चर्चा करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि भारत के पास छह हजार वर्षों के सांस्कृतिक अनुभव के कारण अशांत दुनिया का मार्गदर्शन करने की अद्वितीय क्षमता है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आरएसएस मुख्यालय दौरे पर हुए विवाद का भी उल्लेख किया और इस विवाद को “सुनियोजित नैरेटिव” बताया। हम आपको बता दें कि हमेशा की तरह अनुशासन और कर्तव्य को लेकर धनखड़ का लहजा तीखा था। मंच पर ही किसी ने उन्हें 7:30 बजे की फ्लाइट की याद दिलाई, जिस पर उन्होंने कहा, “मैं फ्लाइट पकड़ने के लिए अपनी ड्यूटी नहीं छोड़ सकता और मेरा हाल का अतीत इसका सबूत है।”

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देखा जाये तो धनखड़ के इस कार्यक्रम में शामिल होने से कांग्रेस का वह दावा कमजोर पड़ता दिख रहा है कि भाजपा ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद छोड़ने के लिए मजबूर किया था। यदि ऐसा होता, तो धनखड़ का पहला सार्वजनिक मंच संघ का कार्यक्रम नहीं होता और न ही उनका संबोधन इतना विचारात्मक, आत्मविश्वासी और संघ-समर्थक लहजे में होता। कांग्रेस इस उम्मीद में थी कि इस्तीफे के बाद धनखड़ भाजपा और संघ परिवार पर तीखे हमले करेंगे और उनके “असंतोष” को राजनीतिक हथियार बनाया जा सकेगा। लेकिन शुक्रवार का दृश्य उलटा रहा— धनखड़ ने संघ के कार्यक्रम को चुना, संघ की विचारधारा की सराहना की और भाजपा के विमर्श को मजबूती दी।


इससे कांग्रेस की उस राजनीतिक उम्मीद को सीधा झटका लगा है, जिसमें वह यह सोचकर बैठी थी कि धनखड़ आगे चलकर एनडीए के आलोचक बनेंगे। बल्कि उनका रुख तो यह संकेत देता है कि उन्होंने वास्तव में स्वास्थ्य कारणों से ही इस्तीफा दिया था और भाजपा-संघ के साथ उनकी वैचारिक दूरी जैसी कोई बात नहीं है। देखा जाये तो कांग्रेस ने जहां धनखड़ के इस्तीफे में राजनीतिक षड्यंत्र खोजने की कोशिश की, वहीं धनखड़ ने संघ के मंच पर जाकर साफ कर दिया कि वह अब भी उसी वैचारिक धुरी के साथ खड़े हैं। संघ के कार्यक्रम में धनखड़ की यह दमदार मौजूदगी भाजपा के साथ उनके मजबूत जुड़ाव का खुला राजनीतिक संदेश भी मानी जा रही है।


दूसरी ओर, कांग्रेस को चूंकि धनखड़ के भाषण से निराशा हाथ लगी तो अब वह दूसरे एजेंडे पर उतर आई है। पार्टी नेता दिग्विजय सिंह ने भाजपा पर हमला करते हुए कहा है कि हवाई अड्डे पर एक भी भाजपा नेता धनखड़ को रिसीव करने नहीं आया। उन्होंने कहा, “यह भाजपा की इस्तेमाल करो और फेंको वाली नीति है। जो उसके काम का नहीं, उसे छोड़ दो।'' हम आपको याद दिला दें कि धनखड़ ने अपने कार्यकाल के बीच में ही इस साल 21 जुलाई को अचानक इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से वह सार्वजनिक रूप से सिर्फ उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन के शपथ समारोह में ही नजर आये थे।


धनखड़ के संबोधन की बड़ी बातें


जहां तक संघ के कार्यक्रम में धनखड़ के संबोधन की बात है तो उन्होंने कहा, "हमें अंदरूनी आत्मविश्वास और सभ्यतागत ताकत के साथ दुनिया से जुड़ना चाहिए।” उन्होंने कहा कि यह किताब इस सोच को बढ़ावा देने और भारत की सांस्कृतिक नींव में विश्वास को मज़बूत बनाने के लिए "दिमाग के टॉनिक" की तरह काम करती है। धनखड़ ने कहा, "पुस्तक हमें यह एहसास करने पर मजबूर करती है 6,000 से अधिक वर्षों के सतत सभ्यतागत ज्ञान के माध्यम से आकार ले रहे भारत के पास अशांति में दुनिया का मार्गदर्शन करने की अद्वितीय क्षमता है।" धनखड़ ने कहा कि यह किताब मुश्किल और जटिल वर्तमान को समझने और भविष्य के लिए प्रेरणा देने का एक ज़रिया है। उन्होंने कहा, "यह आठ साल में लिखे गए लेखों का संग्रह है। इसीलिए प्रणब दा (पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी) पर दो लेख हैं। हम निश्चित रूप से अपनी सांस्कृतिक बुनियाद और जड़ों को महसूस करेंगे।"


पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी के नागपुर में संघ के मुख्यालय जाने और उससे जुड़े विवाद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "जून 2018 में डॉ. प्रणब मुखर्जी के नागपुर में संघ मुख्यालय के दौरे ने कई लोगों को हैरान किया और तीखी प्रतिक्रियाएं दीं, कुछ लोगों ने तो इस दौरे को ईशनिंदा तक कहा।” धनखड़ ने कहा, "निंदा की हद और बड़ाई बहुत ज़्यादा लग रही थी। इसे एक, 'नैरेटिव' के तौर पर सामने लाने के लिए बनाया गया था ताकि राष्ट्रवादी रुख को कमजोर किया जा सके। फिर भी, अपने समय के सबसे बड़े नेताओं में से एक, प्रणब दा ने संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के जन्मस्थान पर अतिथि पुस्तक में यह कहकर पूरे विवाद को शांत कर दिया, "आज मैं यहां भारत माता के एक महान सपूत को सम्मान और श्रद्धांजलि देने आया हूं,"। उन्होंने दर्शकों की हंसी के बीच कहा कि हाल ही में उनके बारे में भी एक विमर्श बनाया गया था। लेकिन उन्होंने इस पर और बात नहीं की।


धनखड़ ने कहा, “एक खिलते हुए भारत को आकार देने की मुख्य ज़िम्मेदारी उसके लोगों की है। नागरिकों में ही आर्थिक राष्ट्रवाद की एक मज़बूत भावना को गढ़ने, सुरक्षा का एक मज़बूत इकोसिस्टम बनाने और एक गहरे सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देने की बहुत ज़्यादा क्षमता होती है।” 

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