मुंबई आकर दर-दर भटकने को मजबूर हुए थे Javed Akhtar, आज बॉलीवुड में फिल्म लेखन के बन गए सबसे बड़े उस्ताद

By Prabhasakshi News Desk | Jan 17, 2025

आज बॉलीवुड में अपनी कलम से गीतों को जादुई अंदाज़ देने वाले जावेद अख्तर को कौन नहीं जानता। जावेद साहब का ग़जलों को एक नया और आसान रूप देने में बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने शोले, ज़ंजीर और न जाने कितनी कालजयी फ़िल्मों की पटकथा भी लिखी है।  इस जोड़ी को सिनेमा में सलीम खान और जावेद की जोड़ी बहुत प्रसिद्ध है। जावेद साहब को वर्ष 1999 को पद्म भूषण और 2007 में पद्म भूषण से नवाजा जा चुका है। जावेद अख्तर ने अपने करियर की शुरुआत सरहदी लूटेरा की थी। इस फिल्म में सलीम खान ने छोटी सी भूमिका भी अदा की थी।


प्रारम्भिक जीवन

अख्तर साहब का जन्म 17 जनवरी 1945 को ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता जान निसार अखतर प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि और माता सफिया अखतर मशहूर उर्दू की लेखिका तथा शिक्षिका थीं। उनकी माँ का इंतकाल तब हो गया था जब वे बेहद ही छोटे थे। वालिद ने दूसरी शादी कर ली और कुछ दिन भोपाल में अपनी सौतेली माँ के घर रहने के बाद भोपाल शहर में उनका जीवन दोस्तों के भरोसे हो गया।


सिनेमा, कला और साहित्य की दुनिया में जावेद अख्तर साहब का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। इसके पीछे वजह है उनकी प्रतिभा, ज्ञान और उनका नाम। वह नाम जो उन्होंने संघर्ष के कड़े दौर से गुजर कर बनाया है। इतनी बड़ी शख्सियत के बेटे होने के बाद भी जावेद अख्तर को इंडस्ट्री में पैर जमाने के लिए खूब संघर्ष करना पड़ा। कई बार तो ऐसा हुआ कि उन्हें पेड़ के नीचे सोकर अपनी रातें गुजारनी पड़ीं।


जावेद अख्तर का सफर 

'वेक अप सिड', 'वीर-जारा' और 'लगान' जैसी फिल्मों के गाने लिखने वाले गीतकार और शायर जावेद अख्तर सिनेमाई दुनिया की एक हस्ती हैं। वह जिस खानदान से ताल्लुक रखते हैं उसका भी अपना एक इतिहास है। प्रसिद्ध रससिद्ध शायर मुज्तर खैराबादी जावेद के दादा थे और मुज्तर के पिता सैयद अहमद हुसैन एक कवि थे, मुज्तर की मां हिरमां उन्नीसवीं सदी की चंद कवियत्रियों में से एक रहीं और उनके पिता फजले-एहक खैराबादी अरबी के शायर थे। परिवार की लेखन परंपरा को जावेद अख्तर ने कायम रखा है। वह ग्वालियर, लखनऊ, अलीगढ़ और भोपाल के बीच अपना सफर कायम करते रहे।


इसके बाद मायानगरी मुंबई में आकर तमाम संघर्ष से गुजरने के बाद एक सफल गीतकार और पटकथा लेखक के तौर पर खुद को स्थापित किया। इतने बड़े और नामी परिवार से होने के बाद भी उनकी डगर कठिन रही। खबरों के मुताबिक, जावेद अख्तर को मुंबई आने के छह दिन बाद ही अपने पिता का घर छोड़ना पड़ा था और दो साल तक किसी ठिकाने के लिए परेशान होते रहे। इस बीच उन्होंने सौ रुपए महीने पर डॉयलॉग लिखे और कुछ अन्य छोटे-मोटे काम किए। ऐसी भी नौबत आई कि उन्होंने चने खाकर पेट भरा और पैदल सफर किया। वे साल 1964 में मुंबई आ गए। यहां लंबे वक्त तक वह बेघरों की तरह रहे।


जावेद अख्तर ने इस दौरान कई रातें पेड़ के नीचे बिताईं। बाद में उन्हें जोगेश्वरी में कमाल अमरोही के स्टूडियो में रहने के लिए जगह मिली। जावेद अख्तर को 1969 में पहला कामयाब ब्रेक मिला और उसके बाद उनके दिन बंबई में बदल गए। बता दें कि जावेद अख्तर का असली नाम जादू था। उनके पिता जांनिसार अख्तर की नज्म 'लम्हा किसी जादू का फसाना होगा' से उनका ये नाम रखा गया था। जावेद साहब के करियर की बात करें तो सलीम खान के साथ इनकी जुगलबंदी खूब रही। सलीम-जावेद की जोड़ी ने करीब 24 फिल्मों के डायलॉग लिखे हैं। मगर, कुछ वैचारिक मतभेदों के बाद दोनों की जोड़ी अलग हो गई। इसके बाद जावेद साहब ने गीतकार के रूप में करियर को आगे बढ़ाया।


उनको मिले सम्मानों को देखा जाए तो उन्हें उनके गीतों के लिए आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 1999 में साहित्य के जगत में जावेद अख्तर के बहुमूल्य योगदान को देखते हुए उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया।  2007 में जावेद अख्तर को पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया।


शादी 

जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी थीं। जिनसे उन्हें दो बच्चे है फरहान अख्तर और जोया अख्तर उनके दोनों ही बच्चे हिंदी सिनेमा के जाने माने अभिनेता, निर्देशक-निर्माता हैं। उनकी दूसरी पत्नी हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री शबाना आजमी हैं।

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