झारखंड के सुब्रमण्यम स्वामी की नाराजगी रघुवर दास को अर्जुन मुंडा न बना दे

By अभिनय आकाश | Nov 16, 2019

महाराष्ट्र और हरियाणा के बुरे अनुभव के बाद बीजेपी झारखंड को लेकर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। दोनों राज्यों में राष्ट्रवाद का मुद्दा तकरीबन रिजेक्ट हो जाने के चलते बीजेपी चुनाव जिताने वाले कुछ और कारगर उपायों को तलाश रही है। सत्ता विरोधी फैक्टर झारखंड में भी बीजेपी की रघुवर दास सरकार पर वैसे ही लागू होता है, जैसे महाराष्ट्र और हरियाणा की हालत रही। क्योंकि राजग की मजबूती कायम रखने के लिहाज से भी झारखंड विधानसभा का चुनाव बीजेपी के लिए बेहद अहम माना जा रहा है। पार्टी अगर इस सूबे में अपनी सत्ता बरकरार नहीं रख पाई तो राजग के कुनबे में खटपट बढने की संभावना है। सहयोगी दल भाजपा पर दबाव बढ़ाने का मौका नहीं गंवाएंगे। आम चुनाव 2019 चुनाव के बाद राजग से शिवसेना के बाद आजसू की भी विदाई हो चुकी है। जबकि अकाली दल और लोक जनशक्ति पार्टी से भाजपा की खटास बढ़ी है। बिहार में तो जदयू और भाजपा का रिश्ता कभी तल्ख तो कभी नर्म वाला रहा है। ऐसे में झारखंड की अधिकांश सीटों पर उम्मीदवार घोषित होने के बाद बीजेपी चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही है।

बीजेपी के आक्रामक प्रचार की कमान अमित शाह ने खुद अपने हाथों में ली है और आगामी 21 नवंबर से चुनाव प्रचार की शुरुआत करेंगे। शाह झारखंड में डेढ़ दर्जन से अधिक रैलियां करेंगे। मोदी-शाह के नेतृत्व में जबर्दस्त चुनाव प्रचार के जरिए भाजपा विधानसभा चुनाव जीतने की तैयारी में है। लेकिन इन सब से इतर टिकट वितरण के चार राउंड पूरा होने के बाद पार्टी के भीतर फूट पड़ती दिखाई दे रही है। झारखंड के वरिष्ठ बीजेपी नेता और कैबिनेट मंत्री सरयू राय मुख्यमंत्री रघुवर दास को ही चुनौती देते नजर आ रहे हैं। खबरों के अनुसार राय जमशेदपुर ईस्ट से रघुवर दास के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरयू राय को बीजेपी की तरफ से कोई अन्य अहम जिम्मेदारी देने की बात कही गई थी। लेकिन टिकट न मिलने से नाराज रघुवर दास निर्दलीय ही इस सीट से चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं।

गौरतलब है कि सरयू राय सीएम रघुवर दास और सरकार के आलोचक माने जाते हैं। कई मौकों पर वो अपनी ही सरकार को निशाने पर लेते दिखते हैं। सरयू राय जमशेदपुर वेस्ट सीट का प्रतिनिधित्व करते आए हैं। लेकिन इस बार उनका नाम भाजपा की चौथी सूची में भी शामिल नहीं है। जिसके बाद से ही जमशेदपुर वेस्ट से सरयू राय को टिकट मिलने की संभावना पर ग्रहण लगता प्रतीत होने लगा था। जानकारी के अनुसार बीजेपी के विकास राजपूत टिकट की रेस में आगे दिखाई दे रहे हैं।

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जहां तक बात इस विधानसभा सीट की करें तो 2005 के चुनाव में भी इसी प्रकार बीजेपी ने विधानसभा स्पीकर मृगेंद्र प्रताप सिंह का नाम पहले होल्ड पर रखा और फिर सरयू राय को बीजेपी का उम्मीदवार बनाया था। एक बार फिर बीजेपी वही दांव खेलती नजर आ रही है।

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झारखंड के सुब्रमण्यम स्वामी कहे जाने वाले सरयू राय की जहां तक बात करें तो सूबे में उनकी छवि बहुत ही ईमानदार नेता की मानी जाती है। बता दें कि राजद नेता और बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद चारा घोटाले के जिस मामले में जेल गये हैं, उस मामले में सबसे पहले राज्य के मंत्री सरयू राय ने वर्ष 1994 में मामला उठाया था। मशहूर चारा घोटाले के अलावा बिटुमन घोटाले का पर्दाफाश भी उन्होंने ही किया था। जनवरी, 2017 में अपनी सरकार द्वारा राज्य की 105 खदानों की लीज को फिर से रिन्यू करने के फैसले की भी सरयू राय ने कड़ी आलोचना की थी। साल 2009 में राय ने खनन घोटाले का खुलासा किया था, जो कि मधु कोड़ा के शासनकाल में हुआ था। पार्टी द्वारा चौथी सूची जारी होने के बाद पार्टी के अंदर विरोध के स्वर काफी उठने लगे हैं। कई नेताओं का कहना है कि दल बदल करने वाले विधायकों और पूर्व विधायकों को तवज्जो मिली है। इनमें पांच वर्तमान और दो पूर्व विधायकों में से दो को छोड़कर सबको टिकट दिया गया है। ऐसे में टिकट नहीं मिलने से नाराज मंगल सिंह सोरेन और कई नेता आने वाले दिनों में आजसू का दामन थाम सकते हैं। भौगोलिक रूप से झारखंड तीन से चार हिस्सों में बंटा है। इनमें एक संथाल परगना है। ये क्षेत्र पश्चिम बंगाल से लगा हुआ है। यहां पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का वर्चस्व है। जमशेदपुर के आसपास का इलाका कोलहन है। वहीं झारखंड मध्‍य का हिस्‍सा छोटा नागपुर के रूप में प्रचलित है। यहां पर कुर्मी वोटरों का प्रभाव है। आजसू के सुदेश महतो का प्रभाव यहीं पर है।

 

 वहीं बात बाबूलाल मरांडी की पार्टी झेवीएम की करें तो कोडरमा, गोड्डा और जमेशदपुर में कुछ हद तक है। झामुमो के अलावा कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल भी प्रमुख खिलाड़ी हैं। कांग्रेस राज्य के गैरसंथाल आदिवासियों के बीच काफ़ी मजबूत है जबकि राजद का आधार उत्तरी झारखंड के ग़ैर-आदिवासियों इलाकों जैसे पलामू, चतरा आदि में है। वहीं सूबे में काबिज बीजेपी की बात करें तो उसकी पहुंच वैसे पूरे प्रदेश यानी इसके तीनों क्षेत्रों में है लेकिन यहां पर बीजेपी हरियाणा के फार्मूले पर काम कर रही है। यानी कि जैसे हरियाणा में सभी पार्टियों का ध्यान जाट वोटरों पर था तो बीजेपी ने गैर-जाट वोटरों पर अपना फोकस किया था। उसी तर्ज पर बीजेपी झारखंड में गैर-आदिवासी वोटरों पर फोकस कर रही है। जिसकी झलक टिकट वितरण में भी देखने को मिल रही है। ऐसे में यह दांव बीजेपी को कितना फायदा पहुंचाता है ये तो वक्त के साथ पता चलेगा।