जिजीविषा का नाम है पतंग, खुशी का इजहार है पतंग

By मानवेंद्र कुमार | Aug 17, 2016

15 अगस्त को जबरदस्त पतंग बाजी हुई। पतंग खुशी का इजहार है। ऊंचाइयां छूने की ललक है। कुछ विशेष करने का चाहत भी है। यूं ही कुछ नहीं होता। न यूं ही दिन ढलता है न बदलते हैं मौसम। सब एक-दूसरे में पिरोया होता है। जैसे नदी बूंदों के साथ-साथ और अनवरत बहने की घटना का नाम है। वैसे ही त्योहारों के साथ कुछेक मान्यताओं का साथ-साथ चलना सामाजिक घटना है। संक्रांति के साथ पतंग का आसमां में उड़ना प्रतीकात्मक घटना है।

 

पतंग संतुलन का द्योतक है। खिलाफ हवा में जीने का संकल्प है पतंग। जिजीविषा का नाम है पतंग। उसकी प्रतीबद्धता सिर्फ उस हुचके से है, जिसकी डोर से वह बंधी होती है। पतंग समायोजन है। गन्तव्य न भी दिखाई दे तब भी उड़ने और खोजने की अदम्य इच्छा का बिम्बन है पतंग। पतंग आकांक्षा है। सदैव सतह से ऊपर उठने की। सदैव उड़ने की, सदैव नया कुछ करने की आकांक्षा। धूप और ओस के सदमों के बीच क्षितीज के परिसर तक की यात्रा की कसमसाहट। यह सिर्फ खेल नहीं, यह जीवन को व्यक्त करती विधा है।

 

खुन्नस, खुराफात और खूंरेजी के इस घायल दौर में भरोसे का नाम है पतंग। सारी दिशाओं से संवाद करती है पतंग। सारे लोगों और मजहबों से बातचीत करती है पतंग। उम्र और लिंग भेद तोड़कर उड़ती पतंग। सिर्फ एक विश्वास है आकाश में। अपराजित उड़ता हुआ हौसला। पतंग उत्कंठा है। अंतिम सच को हासिल करने की। उत्कंठा है मूलाधार से उठने की। उत्कंठा है वर्तमान को बदलने की। ऐसी उत्कंठा कि प्रकृति से युद्ध न लड़ना पड़े उसके साथ सौहार्द्रता के बीच मनचाहे लक्ष्य को हासिल किया जाए। उसके लिए जड़ से दूरी बनानी पड़े तो बनाई जाए, लेकिन ध्यान रहे जड़ों से नाता न टूटे जैसे जुड़ी रहती है पतंग। तरुणाई और अरुणाई का प्रतीक है पतंग। अक्षय ऊर्जा से लबालब। सिर्फ ऊपर की ओर उठती हुई पतंग ऊर्जा को श्रृखंलाबद्ध कर उठने की ओर संकेत करती है। ऊर्जा विधायी होती है। इसलिए उसमें निरंतरता है। निरंतरता में गति है। निरंतरता ही जीवन है। उसके लगातार होने की वजह से ही उसे आप पहचान पाते हैं। पतंग डोर से कागज तक निरंतर बहती ऊर्जा है। बिल्कुल जीवन की तरह। लिहाजा, जीवन भी ऊर्ध्वगति अर्थात ऊपर की ओर गति करना चाहता है, लेकिन जल्दी ही कुछ लोग हार मान लेते हैं। वे पतंग को नहीं समझते। उसके पीछे की कमियों को नहीं जानते। पतंग ना-उम्मीदी नहीं पूरी-पूरी उम्मीद है। पतंग नाउम्मीद नहीं होती आसमां के भूरे या नीले होने या ऊपर तक ढंक लेने के बावजूद। वह उम्मीद से देखती है आसमां को उड़ती है धरती से और मनुष्य की जीत का रंग आसमां के कैनवास पर भर देती है।

 

पतंग निश्चय है। अनिश्चित समय में धूप, धूल, धूएं के जरिए बिना पांव धोए आती दुर्घटना की दहलीज तक आने पर विधायी और चिरंतर संघर्ष का निश्चय। निश्चय परिवर्तन का, निश्चय अनवरत कर्मरत रहने का। जैसे शब्द की राह से रोशनी के लिए चलता रहता है वक्त से युद्ध वैसे ही अपनी स्थिति के बदलाव के लिए सतह से उठने के लिए एक संघर्ष जारी है जिसकी घोषणा करती है पतंग। मनुष्य की विजय का प्रतीक अकेली पतंग। नन्हें से तरुण होते हाथों को बुलंदी की प्रेरणा देती पतंग संक्रांति का जरूरी गहना है।

 

- मानवेंद्र कुमार

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