By नीरज कुमार दुबे | Dec 13, 2025
जिस तरह इज़राइल ने हिज़्बुल्ला की कमर तोड़ने के लिए उसके पेजरों और वॉकी-टॉकी में विस्फोटक भर दिए थे, उसी तरह भारतीय सुरक्षा बलों ने माओवादियों की रीढ़ तोड़ने के लिए उनके ही संचार उपकरणों को अपना हथियार बना दिया था। फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ धमाके नहीं हुए, बल्कि चुपचाप ट्रैकर और चिप्स फिट कर दिए गए थे और माओवादी संगठन को इसकी भनक तक नहीं लगी। हम आपको बता दें कि हाल ही में आत्मसमर्पण करने वाले शीर्ष माओवादी नेताओं टक्केलपल्ली वासुदेव राव उर्फ अशन्ना और मल्लोजुला वेंकटेश्वर राव उर्फ सोनू से पूछताछ में खुलासा हुआ है कि प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) का पूरा संचार और सप्लाई नेटवर्क भारतीय खुफिया एजेंसियों की निगरानी में था। बताया जा रहा है कि ड्रोन से ‘आधुनिक युद्ध’ की तैयारी कर रहा माओवादी संगठन असल में अपने ही उपकरणों के जरिए बेनकाब होता चला गया और यही उसकी सबसे बड़ी रणनीतिक हार साबित हुई।
हम आपको बता दें कि टक्केलपल्ली वासुदेव राव उर्फ़ अशन्ना और मल्लोजुला वेंकटेश्वर राव उर्फ़ सोनू से हुई पूछताछ की रिपोर्टों से प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) की रणनीतियों और कमजोरियों पर कई अहम खुलासे हुए हैं। इन रिपोर्टों के मुताबिक माओवादियों ने सुरक्षा बलों की रेकी और उन पर हमले के लिए ड्रोन के इस्तेमाल की संभावनाएं टटोलने की कोशिश की थी। हालांकि, संगठन बड़ी संख्या में ड्रोन हासिल नहीं कर सका जिसके चलते ‘ड्रोन युद्ध’ की उसकी योजना कागजों और सीमित परीक्षणों से आगे नहीं बढ़ पाई। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पूछताछ में सामने आया है कि दक्षिण बस्तर इलाके में माओवादियों ने ड्रोन के सीमित ट्रायल रन किए थे। उस समय दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) के सैन्य खुफिया प्रमुख रहे अशन्ना ने बताया कि इन परीक्षणों का उद्देश्य ड्रोन के जरिए निगरानी, टोही और सुरक्षा बलों की गतिविधियों पर नजर रखने की क्षमता को समझना था। मारे गए पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) कमांडर मडवी हिडमा और अशन्ना दोनों के ड्रोन परीक्षण में शामिल होने की बात भी सामने आई है।
इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि खुफिया एजेंसियों ने माओवादियों के संचार उपकरणों जैसे वॉकी-टॉकी सेट में गुप्त रूप से ट्रैकर और चिप्स इंस्टॉल कर दिए थे। साथ ही माओवादी संगठन को यह संदेह होने लगा था कि उसकी सप्लाई चेन का इस्तेमाल उस पर नजर रखने के लिए किया जा रहा है। सोनू की पूछताछ रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि कई शीर्ष नेताओं के मारे जाने से पहले ही माओवादियों का संचार नेटवर्क काफी हद तक भेद दिया गया था। सोनू ने बताया कि बार-बार गुप्त अभियानों के उजागर होने के बाद दंडकारण्य की कम्युनिकेशन टीम ने इन्वर्टर, प्रिंटर, वॉकी-टॉकी, लैपटॉप, चार्जर, मोबाइल फोन और रेडियो जैसे उपकरणों में छिपे ट्रैकर और चिप्स का पता लगाया। ये उपकरण तेलंगाना स्टेट कमेटी क्षेत्र से कूरियर के जरिए अंडरग्राउंड कैडरों तक पहुंचाए गए थे।
इसके बाद संगठन ने उपकरणों में छेड़छाड़ की पहचान के लिए व्यवधानों की जांच शुरू की। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ता शेखर नामक स्पेशल ज़ोनल कमेटी सदस्य और उनकी टीम ट्रैकर पहचानने में काफी दक्ष हो गई थी। तकनीकी विंग पर बढ़ते दबाव और निगरानी कड़ी होने के चलते माओवादियों ने एन्क्रिप्टेड ईमेल सेवाओं खासकर प्रोटॉन मेल का सहारा लेना शुरू किया ताकि गोपनीयता बनी रहे। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि बस्तर क्षेत्र में फिलहाल न तो गोला-बारूद के भंडार है और न ही नकदी के डंप। अशन्ना के अनुसार, आत्मसमर्पण से पहले माड़ क्षेत्र में लगाए गए सभी आईईडी निष्क्रिय कर दिए गए थे। देखा जाये तो ये खुलासे न केवल माओवादी संगठन की रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं को उजागर करते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों ने तकनीकी मोर्चे पर उन्हें किस हद तक पीछे धकेल दिया है।
बहरहाल, इन खुलासों का सबसे अहम संदेश यह है कि आधुनिक संघर्ष अब जंगलों और बंदूकों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि तकनीक उसका केंद्रीय मैदान बन चुकी है। माओवादियों द्वारा ड्रोन जैसे अत्याधुनिक साधनों के इस्तेमाल की कोशिश यह बताती है कि वह भी समय के साथ खुद को नई तकनीक के अनुसार ढालना चाहते थे। लेकिन संसाधनों की कमी, सप्लाई चेन की कमजोरी और सुरक्षा एजेंसियों की तकनीकी बढ़त ने उनकी इन योजनाओं को विफल कर दिया। साथ ही सुरक्षा एजेंसियों द्वारा संचार उपकरणों में ट्रैकर लगाना एक तरफ जहां खुफिया दक्षता का उदाहरण है, वहीं यह भी दिखाता है कि माओवादी संगठन किस हद तक तकनीकी रूप से पिछड़ चुका है। जिस संगठन ने कभी जंगलों में समानांतर शासन चलाया, उसे आज सुरक्षा बलों ने दम तोड़ने पर मजबूर कर दिया है।