By Ankit Jaiswal | Dec 01, 2025
केराकछार गांव की शांत गलियों से उठी एक लड़की ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का परचम लहराया है। मौजूद जानकारी के अनुसार, छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले की संजू देवी ने केवल अपने खेल कौशल से ही नहीं, बल्कि संघर्षों के बीच उठाए गए फैसलों से भी दुनिया का ध्यान खींचा है। हाल ही में ढाका में संपन्न हुए महिला कबड्डी वर्ल्ड कप 2025 के फाइनल में भारत की जीत के साथ संजू को ‘मोस्ट वैल्यूएबल प्लेयर’ के खिताब से सम्मानित किया गया है।
गौरतलब है कि भारत ने इस टूर्नामेंट का पहला संस्करण भी 13 साल पहले जीता था, लेकिन इस बार टीम में शामिल युवा खिलाड़ियों की चमक अलग ही दिखाई दी है। संजू ने 17 साल की उम्र में खेती करने वाले परिवार की आर्थिक मुश्किलों के बीच पढ़ाई और कबड्डी के बीच चुनाव करना पड़ा था। वह बताती हैं कि परिवार की उम्मीदें और खेल के प्रति दिलचस्पी दोनों साथ चलते रहे, लेकिन फैसला आसान नहीं था।
बता दें कि संजू ने पहली बार कबड्डी को क्लास V में ‘मज़े के खेल’ के तौर पर अपनाया था। लेकिन जब उन्होंने अपने दो कज़िनों को कॉलेज में खेलते देखा, तो खेल एक लक्ष्य बन गया। वह बताती हैं कि गांव में लड़कियों के बीच कबड्डी को लेकर रुचि न के बराबर थी, लेकिन माता-पिता और शिक्षकों ने उन्हें हमेशा प्रेरित किया है।
संजू की असली यात्रा 2021 से शुरू मानी जाती है, जब उन्होंने कोरबा में जिला कबड्डी संघ से प्रशिक्षण लेना शुरू किया था। रोज़ 90 मिनट का सफर तय करना, फिर पढ़ाई और अभ्यास में तालमेल बैठाना आसान नहीं था। बाद में उन्होंने चार दिन कोरबा के हॉस्टल में रहकर और दो दिन पाली लौटकर अपनी पढ़ाई और ट्रेनिंग दोनों जारी रखी हैं।
खेल का खर्च, खान-पान और आवास की चुनौतियों के बीच उनका साथ परिवार ने दिया। उनके पिता रामजी साल में केवल लगभग 75,000 रुपये कमाते हैं और घर का पूरा खर्च उन्हीं पर निर्भर है। संजू कहती हैं कि शुरुआती वर्षों में उनके माता-पिता ने कई बार अपनी जरूरतें छोड़कर उनकी ट्रेनिंग को प्राथमिकता दी है।
साल 2023 में राहत तब मिली जब बिलासपुर में खेले इंडिया स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस और गर्ल्स रेजिडेंशियल कबड्डी अकादमी की शुरुआत हुई और उन्हें यहां मुफ्त प्रशिक्षण, भोजन और रहने की सुविधा मिलने लगी है।
ढाका में जब भारत ने चीनी ताइपे को 35-28 से हराकर वर्ल्ड कप जीता, तब संजू को MVP चुना गया। उन्हें 1,500 अमेरिकी डॉलर का पुरस्कार मिला, जिसे देने की बात उन्होंने गर्व से अपने पिता के लिए कही है। वह बताती हैं कि वह इस राशि से घर की संरचना में सुधार करना चाहती हैं।
टूर्नामेंट के दौरान लगी कंधे की चोट के बावजूद संजू ने सेमीफाइनल और फाइनल में अहम योगदान दिया है। वह कहती हैं कि चोट के कारण उन्हें अपनी शैली बदलनी पड़ी, लेकिन रणनीति के अनुरूप खेलते हुए उन्होंने टीम को मजबूत बढ़त दिलाई। चीनी ताइपे के खिलाफ फाइनल में उन्होंने 14 अंक हासिल किए हैं।
संजू का मानना है कि सरकार यदि खिलाड़ियों को शुरुआती चरण में समर्थन दे तो कई प्रतिभाएं उभर कर सामने आ सकती हैं। वह कहती हैं कि तमाम युवा खिलाड़ी सिर्फ आर्थिक तंगी के कारण खेल छोड़ देते हैं और इसी स्थिति में सरकारी मदद और कॉर्पोरेट प्रायोजन बड़ा फर्क पैदा कर सकते हैं।