भारत के सीमांत गांवों की है कालापानी और लिपुलेख की भूमि: अधिकारी

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 20, 2020

पिथौरागढ़। नेपाल द्वारा हाल में अपने नए नक्शे में नेपाली भूभाग के रूप में दर्शाए गए उत्तराखंड के कालापानी और लिपुलेख क्षेत्र की भूमि पारंपरिक रूप से भारत-नेपाल सीमा पर भारत की ओर स्थित गर्बियांग और गुंजी गांवों के निवासियों की है। पिथौरागढ़ के धारचूला के उपजिलाधिकारी एके शुक्ला ने जमीन के दस्तावेजों के हवाले से बताया कि भारत-नेपाल सीमा पर लिपुलेख, कालापानी और नाभीढांग की सारी जमीन पारंपरिक रूप से धारचूला के गर्बियांग और गुंजी गांवों के निवासियों की है। शुक्ला ने बताया कि कालापानी और नाभीढांग में 190 एकड़ से ज्यादा जमीन गर्बियांग के ग्रामीणों के नाम दर्ज है जबकि लिपुलेख दर्रे पर स्थित भूमि रिकॉर्ड में गुंजी गांव के निवासियों की साझा जमीन के रूप में दर्ज है। वार्षिक कैलाश-मानसरोवर यात्रा हर साल भारत-चीन सीमा पर लिपुलेख दर्रे के जरिए ही होती है। 

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गर्बियांग के ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध से पहले उनके पूर्वज कालापानी में इसी जमीन पर फसल उगाया करते थे। बाद में युद्ध के पश्चात लिपुलेख दर्रे के जरिए चीन के साथ सीमा व्यापार बंद हो गया और वहां फसलें उगाना भी छोड़ दिया गया। गर्बियांग गांव के निवासी और धारचूला में एक आदिवासी सांस्कृतिक संगठन ‘कल्याण संस्था’ के अध्यक्ष कृष्णा गर्बियाल ने कहा कि 1962 से पहले हम कालापानी और नाभीढांग में पाल्थी और फाफर जैसे स्थानीय अनाज उगाया करते थे। उन्होंने बताया कि पहले कालापानी के पार नेपाल में माउंट आपी तक की जमीन गर्बियांग के ग्रामीणों की ही थी लेकिन नेपाल और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच 1816 में हुई सुगौली संधि के बाद उन्होंने इसे छोड़ दिया। इस संधि के बाद नेपाल और भारत के बीच स्थित काली नदी को सीमा रेखा मान लिया गया।

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