Kanwar Yatra 2025: 11 जुलाई से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा, जानिए कैसे हुई इसकी शुरूआत और कौन था पहला कांवड़िया

By अनन्या मिश्रा | Jul 11, 2025

सावन मास के शुरू होते ही शिवभक्तों की आस्था की प्रतीक कांवड़ यात्रा भी शुरू हो जाती है। यह हमारे देश में धार्मिक आस्था का प्रतीक मानी जाती है। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालु पवित्र नदियों से जल भरकर लंबी दूरी की यात्रा करते हैं और उस जल को शिवलिंग या फिर ज्योतिर्लिंग पर अर्पित करते हैं। सावन माह शुरू होते ही कांवड़िए भारी-भरकम कांवड़ उठाकर गंगाजल लेने के लिए हरिद्वार, गोमुख और गंगोत्री जैसे पवित्र स्थानों पर जाते हैं। इस बार 11 जुलाई 2025 से सावन माह की शुरूआत हो रही है। तो आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा की डेट, महत्व और कैसे इस यात्रा की शुरूआत हुई।


कांवड़ यात्रा 2025

इस बार आज यानी की 11 जुलाई 2025 से कांवड़ यात्रा की शुरूआत हो रही है, जोकि सावन माह का पहला दिन है। 23 जुलाई 2025 को  यह यात्रा सावन शिवरात्रि के दिन जलाभिषेक के साथ पूर्ण होगी। इस दौरान देवघर जैसे तीर्थ स्थलों पर पूरे सावन के महीने तक श्रद्धालु जल चढ़ाने के लिए कांवड़ यात्रा करते हैं।


ऐसे शुरू हुई थी कांवड़ यात्रा

जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, तो उसमें से 14 रत्न निकले थे, साथ ही खतरनाक विष भी निकला था। जिसको हलाहल कहा गया है। इस विष के कारण पूरी सृष्टि खतरे में पड़ गई थी। तब भगवान शिव ने उस विष को पीकर अपने कंठ में धारण किया था। इस विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और उनको नीलकंठ कहा जाने लगा। इस विष का असर इतना तेज था कि भगवान शिव के शरीर में जलन होने लगी और उनका असहनीय पीड़ा हुई। इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए देवताओं ने भगवान शिव को पवित्र नदियों का ठंडा जल अर्पित करना शुरूकर दिया।


बता दें कि दशानन रावण भगवान शिव का पहला कांवड़िया था, वह कांवड़ में गंगाजल में भरकर लाए थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास महादेव मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। इससे भगवान शंकर को विष की पीड़ा से राहत मिली थी।


कांवड़ यात्रा का महत्‍व

कांवड़ यात्रा करने से भगवान शंकर अति प्रसन्न होते हैं और वह अपने भक्तों को भय, रोग, शोक और दरिद्रता से मुक्त करते हैं। गंगाजल लाकर शिवलिंग का अभिषक करना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। इस यात्रा को करने से जातक के पापों का नाश होता है और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। वहीं सावन महीना भी भगवान शिव को अतिप्रिय होता है, इस महीने भगवान शिव की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है।

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