By अनन्या मिश्रा | Oct 10, 2025
हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। इस बार आज यानी की 10 अक्तूबर को करवा चौथ का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए पूरा दिन निर्जला व्रत करती हैं। यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए सबसे अहम व्रत माना जाता है। करवा चौथ का पर्व पति-पत्नी के रिश्ते का त्योहार है। इस दिन महिलाएं व्रत करती हैं और शाम को चंद्र पूजन के बाद व्रत खोलती हैं। तो आइए जानते हैं करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय का समय और पूजन विधि के बारे में...
इस बार करवा चौथ व्रत का शुभ मुहूर्त शाम 05:57 मिनट से 07:11 मिनट तक रहेगा। वहीं पंचांग के मुताबिक चंद्रदोय का समय रात 08:14 मिनट है। चंद्र दर्शन और पूजन के बाद महिलाएं व्रत का पारण करती हैं।
करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले शुरू हो जाता है। इसलिए सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके सरगी का सेवन कर लें। फिर व्रत का संकल्प लेकर देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करें। करवा चौथ की मुख्य पूजा शाम के समय होती है। इसलिए पूजा की पूरी तैयारी शाम से पहले कर लेना चाहिए। शाम को चौकी पर आटे से करवा का चित्र बनाएं या फिर प्रिंट किया हुआ करवा चौथ का चित्र लगाएं। अब सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें।
इसके बाद मिट्टी के करवा में जल भरकर रखें और इसे पूजा के स्थान पर रख दें। फिर भगवान गणेश के साथ मां पार्वती, भगवान शिव और चंद्र देव की विधि-विधान से पूजा करें। धूप-दीप, फल-फूल और मिष्ठान आदि अर्पित करें। वहीं महिलाएं मां पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करें। इसके बाद करवा चौथ व्रत कथा का पाठ करें और फिर चंद्रदेव के दर्शन कर अपने पति के हाथ से जल पिएं। वहीं पूजा के अंत में देवी-देवताओं से भूलचूक के लिए क्षमायाचना करें और व्रत का पारण करें।
ओम जय करवा मैया , माता जय करवा मैया।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया
ओम जय करवा मैया।
सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी।
यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी..ओम जय करवा मैया।
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती।
दीर्घायु पति होवे , दुख सारे हरती
ओम जय करवा मैया। होए सुहागिन नारी, सुख संपत्ति पावे।
गणपति जी बड़े दयालु, विघ्न सभी नाशे
ओम जय करवा मैया।
करवा मैया की आरती, व्रत कर जो गावे।
व्रत हो जाता पूरन, सब विधि सुख पावे
ओम जय करवा मैया।
करकं क्षीरसंपूर्णा तोयपूर्णमयापि वा। ददामि रत्नसंयुक्तं चिरंजीवतु मे पतिः॥
इति मन्त्रेण करकान्प्रदद्याद्विजसत्तमे। सुवासिनीभ्यो दद्याच्च आदद्यात्ताभ्य एववा।।
एवं व्रतंया कुरूते नारी सौभाग्य काम्यया। सौभाग्यं पुत्रपौत्रादि लभते सुस्थिरां श्रियम्।।
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि मे परमं सुखम। रूपं देहि, जयं देहि, यशो देहि द्विषो जहि।।
मम सुख सौभाग्य पुत्र-पौत्रादि सुस्थिर
श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।।
ऊँ अमृतांदाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तत्रो सोम: प्रचोदयात