Khushwant Singh Death Anniversary: बेहद जिंदादिल इंसान थे खुशवंत सिंह, आज भी लोग पसंद करते हैं उनकी रचनाएं

By अनन्या मिश्रा | Mar 20, 2024

आज ही के दिन यानी की 20 मार्च को देश के जाने-माने लेखक, कवि और स्तंभकार खुशवंत सिंह का निधन हो गया था। उन्हें एक ऐसी शख्सियत के तौर पर जाना जाता था, जो लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला दें। खुशवंत सिंह अपने अंतिम दिनों में कहा करते थे कि भले ही उनका जिस्म बूढ़ा हो चुका है, लेकिन आंखों में बदमाशी आज भी मौजूद है। खुशवंत सिंह को एक जिंदादिल इंसान के तौर पर जाना जाता था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर खुशवंत सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

पाकिस्तान पंजाब के खुशाब के हदाली जिले में 02 फरवरी 1915 को खुशवंत सिंह का जन्म हुआ था। उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की और आगे की पढ़ाई लंदन के किंग्स कॉलेज से पूरी की। वह एक प्रबल राजनीतिक आलोचक भी रहे। खुशवंत सिंह साल 1980 से लेकर 1986 तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। वहीं अगर उनके निजी जीवन के बारे में बात करें तो साल 1939 में खुशवंत सिंह ने कवल मलिक से शादी की थी। खुशवंत सिंह और कवल मलिक के बेटे का नाम राहुल सिंह और बेटी का नाम माला है।

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लेखन के शौकीन

खुशवंत सिंह की एक खास बात यह भी रही कि वह जितने लोकप्रिय भारत में थे, उतने ही लोकप्रिय वह पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी थे। उनकी किताब 'ट्रेन टू पाकिस्तान' काफी ज्यादा लोकप्रिय हुई थी। उनके इस बुक पर फिल्म भी बन चुकी है। इसके अलावा खुशवंत सिंह को तमाम पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। उनको पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया। उनके बारे में कहा गया कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी एक जिंदादिल इंसान के तौर पर पूरी कर्मठता के साथ बिताए थे। 


खुशवंत सिंह का कॅरियर

पेशेवर जिंदगी में खुशवंत सिंह ने एक पत्रकार के तौर पर बहुत ख्याति अर्जित की थी। साल 1951 में वह आकाशवाणी से भी जुड़े थे। इस दौरान उन्होंने साल 1951 से 1953 तक भारत सरकार के पत्र 'योजना' के संपादन का कार्य किया था। इसके अलावा वह साल 1980 तक मुंबई से प्रकाशित फेमस अंग्रेजी साप्ताहिक 'इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया' और 'न्यू डेल्ही' के संपादक रहे।


जाति व्यवस्था के खिलाफ

फिर 1983 तक खुशवंत ने दिल्ली के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक 'हिंदुस्तान टाइम्स' का भी संपादन किया था। बताया जाता है कि हर हफ्ते आने वाले उनके कॉलमों का पाठक बेसब्री से इंतजार किया करते थे। एक व्यक्ति और एक लेखक के तौर पर वह खुशवंत सिंह जाति व्यवस्था के बेहद खिलाफ थे। उनकी रचनाएं राजनीतिक टिप्पणी और समकालीन व्यंग्य तक शामिल हैं।


मृत्यु

खुशवंत सिंह ने जीवन के आखिरी पड़ाव तक लिखना नहीं छोड़ा था। वह 99 साल की उम्र तक भी सुबह 4 बजे उठकर लिखना पसंद करते थे। वहीं 20 मार्च 2014 को खुशवंत सिंह ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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